
Kathmandu : नेपाल की सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (NCP) में लगातार अंदरूनी टकराव हो रहे हैं. अभी तक पार्टी के को-चेयर पुष्प कमल दहल प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे की मांग ही होती रही है.
लेकिन अब अब देश में अलग ही मांग को आवाज मिलने लगी है. नेपाल के कुछ शहरों में प्रजातंत्र को खत्म करने की मांग हो रही है. इनकी मांग है कि दुनिया की आखिरी हिंदू राजशाही को वापस लाया जाये.
कहां-कहां हो रही मांग
नेपाल के कई शहरों में फेडरल डेमोक्रैटिक रिपब्लिकन सिस्टम के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा है. जिसे देश में नेपाल में 2008 में लागू किया गया था. बता दें कि इसे ढाई सौ साल की राजशाही खत्म करने के बाद लागू किया गया था.
राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व आरंभ से किया है. लेकिन इस बर स्थिति अलग है. इसमें आम लोगों के साथ युवा इसमें बड़ी संख्या में कूद पड़े हैं. ये लोग नेपाल के पूर्व राजा और हिंदू राजशाही के समर्थन में आवाज बुलंद कर रहे हैं.
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बढ़ रहा है टकराव
अभी तक नेपाली कांग्रेस और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ऐसे प्रदर्शनों को खारिज करते आये हैं. और इनके पीछे साजिश बताते रहे हैं. एक सूत्र के मुताबिक राजशाही की मांग में प्रदर्शन बढ़ रहे हैं. क्योंकि आमजन का प्रजातंत्र से भरोसा उठ रहा है.
आक्रोश इस बात को लेकर है कि पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ लड़कर सत्ता हासिल करने और अंदरूनी कलह सुलझाने में ही व्यवस्त रहती हैं. इसी के मद्देनजर केपी शर्मा ओली की सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा है.
एक नेपाली अखबार के अनुसार कुछ लोग राजशाही को बहुत ज्यादा पसंद नहीं करते हैं. लेकिन फिर भी इसका समर्थन कर रहे हैं. दरअसल, साल 2008 के बाद सरकारें लोगों के भरोसे पर खरी नहीं उतरी है.
सरकार में जो खामियां पहले थीं, वो अब भी हैं. बता दें कि नेपाल अब भी दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में से एक है. और यहां अपराध करने वालों को सजा देने का प्रभावशाली तरीका नहीं है.
खबरों के अनुसार पूर्व राजा ज्ञानेंद्र जब भी बयान देते हैं, राजनीतिक दल उनके खिलाफ हो जाते हैं. नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र 1769 से चली आ रही राजशाही के मुखिया थे. वह 2001 में तब सत्ता में आए थे जब उनके बड़े भाई और राजपरिवार की हत्या कर दी गयी थी.
इस घटना के बाद चार साल बाद ज्ञानेंद्र ने संसद खत्म कर दी और पूरी तरह से सत्ता पर काबिज हो गए. उन्होंने कहा कि वह देश के हालात सुधार देंगे. लेकिन उनका ये कदम उल्टा पड़ गया और राजशाही के खिलाफ आंदोलन होने लगे.
दस साल के आंदोलन के बाद माओवादी साल 2006 में अंतरिम सरकार का हिस्सा बने. लेकिन बाद में राजशाही को पूरी तरह से खत्म करने की मांग की.
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2008 राजशाही का खात्मा हुआ
बात दें कि 28 मई 2008 को नेपाल में राजशाही का पूरी तरह से खात्मा हो गया. देश की सभी पार्टियों को मिलाकर गठित संविधान सभा को नया संविधान बनाने का जिम्मा सौंपा गया. इस काम में सात साल का समय लगा. 2017 के चुनावों ने तत्कालीन सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन (माओवादी दलों) के कम्युनिस्ट गठबंधन को स्पष्ट जनादेश मिला.
इसके बाद इन सभी दलों ने मिलकर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी या कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल नाम की एक नई पार्टी बनायी. जो अभी भी देश पर शासन कर रही है.
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