
Akshay Kumar Jha
Ranchi: आज 14 फरवरी है. पूरा विश्व इस दिन को प्यार करनेवालों का दिन यानी वेलेनटाइन डे के नाम से जानता है. लेकिन भारत के लिए 14 फरवरी 2019 के बाद यह दिन शहादत के दिन से जाना जा रहा है.
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में इसी दिन सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकियों ने हमला किया था जिसमें 44 सीआरपीएफ के जवान शहीद हो गये थे.
उन शहीदों में एक झारखंड का भी लाल था. नाम था विजय सोरेंग. वो गुमला ज़िले के फरसामा गांव के रहनेवाले थे. शदीह सोरेंग के पिता वृष सोरेंग भी सेना से रिटायर हैं.
विजय सोरेंग का पार्थिव शरीर 16 फरवरी को रांची एयरपोर्ट पहुंचा. तत्कालीन सीएम रघुवर दास ने भी पार्थिव शरीर को कंधा दिया. कंधा देने के बाद उन्होंने घोषणा की कि विजय सोरेंग को उनके कैबिनेट के सभी मंत्री एक महीने के वेतन देंगे. लेकिन घोषणा के बाद 11 महीने की सैलेरी वो और उनके कैबिनेट के सभी मंत्रियों लेते हैं, लेकिन शहीद परिवार के लोगों से किया हुआ वादा पूरा नहीं होता है.
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सीसीएल और बीसीसीएल पारिवारिक विवाद के उलझन में
सीसीएल और बीसीसीएल कंपनियां चाह कर भी विजय सोरेंग की मदद नहीं कर पा रही हैं. सीसीएल और बीसीसीएल की तरफ से घोषणा की गयी थी कि वो अपने कर्मियों और अधिकारियों की एक दिन की सैलेरी जमा कर शहीद विजय सोरेंग के घरवालों को मदद के तौर पर देंगे.
सीसीएल और बीसीसीएल की तरफ से फरवरी महीने में ही एक दिन का वेतन काट कर बैंक में जमा कर रख लिया गया है. लेकिन पैसा शहीद के घरवालों को नहीं मिल पाया है.
इसके पीछे की वजह पारिवारिक उलझन है. दरअसल विजय सोरेंग की दो पत्नियां हैं. उनकी पहली पत्नी कारमेला बा जैप की जवान हैं. वह रांची में अपने 24 साल के बेटे अरुण के साथ रहती हैं.
दूसरी पत्नी विमला देवी सिमडेगा जिले में रहती हैं. उनके चार बच्चे हैं, इनमें से एक लड़की बोल नहीं पाती. बाकी बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. सीसीएल और बीसीसीएल अब इस उधेड़बुन में है कि आखिर परिवार में किनको कितनी राशि दी जाये. दोनों कंपनियों ने करीब पौने दो करोड़ रुपये शहीद के परिवार के लिए जुटाये हैं.
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अपना घर मान कर इस मसले को सुलझाने की जरूरतः गोपाल सिंह, सीएमडी

जिस वक्त विजय सोरेंग शहीद हुए थे, उस वक्त सीसीएल और बीसीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह थे. मामले पर न्यूज विंग ने गोपाल सिंह से बात की. उन्होंने कहा कि विजय सोरेंग के परिवार से हमलोग रेगुलर कॉन्टेक्ट में हैं.
उनके पिता को भी एक बार कार्यालय बुलाया गया था. दरअसल विजय सोरेंग की दो पत्नियां हैं. परिवार में आपसी सामन्जस्य अभी तक नहीं बैठ पाया है. जमा की गयी कितनी राशि किसे दी जाये घरवाले तय नहीं कर पाये हैं.
मैंने शहीद विजय के पिता से कहा है कि आप घर के गार्जियन के तौर पर एक फैसले पर आयें. अगर वो फैसला जल्दी नहीं लेते हैं तो मैं एक दिन उनके गांव जाऊंगा. मीडिया के भी कुछ बंधु मेरे साथ चल सकते हैं.
दरअसल उनके घरवाले अभी काफी दुख में हैं. हो सकता है इसलिए वो कोई फैसले पर नहीं आ पा रहे हों. लेकिन जल्द ही इस मामले का निबटारा कर लिया जायेगा. नहीं होगा तो गांव की पंचायत का सहारा लिया जायेगा.
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