
Surjit Singh
कोरोना काल ने मिडिल क्लास की कमर तोड़ दी है. यह अलग बात है कि मिडिल क्लास तकलीफ सह कर भी खुश है. उसे न तो सरकार से कोई शिकायत है, न ही उसके पास सवाल पूछने की ताकत बची है.
खैर, बात मिडिल क्लास की आर्थिक स्थिति की कर लें. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (CMIE) ने अप्रैल, मई व जून का ताजा आंकड़ा जारी किया है. जिसमें चौंकानेवाले तथ्य सामने आये हैं.
रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि इस साल सिर्फ 6.7 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उनकी आय में बढ़ोतरी हुई है. पिछले साल इसी तरह के सर्वे में 33 प्रतिशत लोगों ने आमदनी बढ़ने की बात कही थी.
यह तथ्य बताता है कि इस साल 95.3 प्रतिशत लोगों की आमदनी में या तो बढ़ोतरी हुई ही नहीं या कम हो गयी है. जबकि महंगाई बढ़ती ही जा रही है.
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CMIE ने अपनी रिपोर्ट में 6000 रुपये से कम आयवाले लोगों से जब यह पूछा कि क्या उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हुई है. इस सवाल के जवाब में सिर्फ 1 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि उनकी आय में बढ़ोतरी हुई है. पिछले साल इसी दौरान 14 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि उनकी आय में बढ़ोतरी हुई है. मतलब 99 प्रतिशत लोगों की आय में कोई भी बढ़ोतरी नहीं हुई. जबकि महंगाई की वजह से खर्च उनका भी बढ़ा है. पिछले साल से आमदनी बढ़ने की तुलना करें, तो न तब हालात अच्छे थे और न ही अब. मतलब यह कि प्रति माह 6000 रुपये से कम कमानेवाले लोगों की आय बढ़ाने के मामले में मोदी सरकार वर्ष 2019 में ही फेल हो चुकी थी. यह अलग बात है कि इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को इस वर्ग का भी भरपूर समर्थन मिला.
अब बात लोअर मिडिल क्लास की. जिनकी आय प्रति माह 42 हजार रुपये से कम है. पिछले साल अप्रैल, मई व जून के सर्वे में 50 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि उनकी आय में बढ़ोतरी हुई थी. लेकिन इस साल सिर्फ 15 प्रतिशत लोगों ने आमदनी बढ़ने की बात को स्वीकार किया है. मतलब यह कि देश के 85 प्रतिशत मिडिल क्लास, जिनकी आय प्रति माह 6000 रुपये से अधिक और 42000 रुपये से कम है, उनकी आय में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं हुई है. लेकिन खर्च बढ़ गया है. क्योंकि महंगाई बढ़ गयी है और जीएसटी समेत अन्य तरह के टैक्स में मिडिल क्लास को ज्यादा रकम का भुगतान करना पड़ा है. अब चूंकि आय नहीं बढ़ी है, तो इसका असर बाजार पर भी पड़ना लाजिमी है.
अपर मिडिल क्लास के लोगों की बात करें, तो स्थिति निराशाजनक है. सर्वे के मुताबिक जिन लोगों की आय प्रतिमाह 42000 रुपये से अधिक और 83000 हजार रुपये से कम है, उनमें 0 (शून्य) प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. जबकि पिछले साल 60 प्रतिशत लोगों ने आय बढ़ने की बात कही थी.
इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि मिडिल क्लास (जिनकी आमदनी 6000 रुपसे से अधिक व 42000 से कम, 42000 से अधिक व 83000 से कम) है, उनकी आमदनी में न के बराबर वृद्धि हुई है. पर, खर्च (पेट्रोल, डीजल, टेलिफोन, इंटरनेट, सब्जी, कपड़े, राशन आदि) में बड़ी बढ़ोतरी हुई है. यही वर्ग है जो बाजार में सबसे अधिक खरीदारी करता है. इससे यह संदेह पैदा होता है कि आनेवाले दिनों में बाजार में मंदी बनी रहेगी.
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अपर क्लास, जिनकी मासिक आय लाख रुपये से से अधिक है, की बात करें तो सर्वे में उन्हें भी नुकसान हुआ है. पिछले साल जहां 70 प्रतिशत लोगों की मासिक आमदनी बढ़ी थी, वहीं इस साल 33 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि आमदनी बढ़ी है. मतलब 66 प्रतिशत लोगों की आमदनी में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं हुई है.
अब सवाल यह उठता है कि इतने खराब हालात के बाद भी लोग सरकार से सवाल क्यों नहीं पूछ रहे. इसका जवाब यह है कि इसके लिए मिडिल क्लास सरकार को जिम्मेदार मानता ही नहीं है. कुछ लोग इसे किस्मत की बात मानते हैं, तो कुछ लोग 70 साल की नाकामी. पर, सच यह नहीं है. मिडिल क्लास ऐसा मानता है, क्योंकि यही उन्हें बताया जा रहा है. टीवी, अखबार और सोशल मीडिया में. उन्हें सच बताया ही नहीं जा रहा है कि पिछले छह सालों से देश की हालत क्या है. कैसे वह धीरे-धीरे गरीबी के नजदीक पहुंचते चले जा रहे हैं.
उन्हें खुश रखने के लिए ही मेन स्ट्रीम मीडिया कभी धार्मिक माहौल पर शोर मचाता है, खबरें दिखाता व लिखता है, तो कभी पाकिस्तान-चीन-नेपाल के मुद्दे उछालता है, तो कभी सुशांत सिंह राजपूत की मौत जैसे मामलों में हो-हल्ला करके उलझा देता है. अब सवाल उठता है कि इसका फायदा किसे हो रहा है. तो जवाब है कि इसका फायदा सत्ता को हो रहा है. लोग सत्ता से सवाल नहीं पूछ रहे हैं. इसलिए सरकार निश्चिंत है. पर कब तक? आज नहीं तो कल इस पर से परदा उठेगा और तब सरकार को जवाब देना ही पड़ेगा.
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