
Prakash Mishra
Bokaro: सरकारी पैसे की लूट का खेल देखना है तो बोकारो जिले के चास प्रखंड स्थित सुनता पंचायत पहुंचे. इस पंचायत के कई टोलों को जोड़ने वाली घटियाली और मोहनडीह गांव के बीच आरईओ पथ से जोड़ने के लिए सड़क एक साल पहले ही बनी थी. करीब तीन किलोमीटर लम्बी सड़क प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनायी गयी थी.
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चौड़ीकरण के नाम पर उखाड़ी सड़क
महज एकसाल पहले बनी सड़क को अब उसके चौड़ीकरण के नाम पर पथ निर्माण विभाग बोकारो की ओर से उखाड़ने का काम किया जा रहा है. ताकि वहां पर करीब पांच मीटर चौड़ी सड़क का निर्माण हो सके. यह सड़क पश्चिम बंगाल की सीमा तक बनी हुई है.
जबकि एक साल पहले तक यह सड़क चलने लायक नहीं थी. चारों तरफ पत्थर बिखरे हुए थे. आमलोग इस सड़क का उपयोग न कर कच्ची सड़क पर चलना पसंद करते थे.
लेकिन जब सड़क ठीक से बन गई. लोग जब इस सड़क का इस्तेमाल करने लगे तो चौड़ीकरण के नाम पर करीब एक करोड़ 22 लाख की लागत से बनी सड़क को उखाड़ने का काम शुरु हो चुका है. जिससे लोगों में काफी आक्रोश भी है.
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एक ही सड़क पर विभाग फिर करेगा करोड़ों खर्च
एक वर्ष पूर्व बनी प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत ग्रामीण विकास विभाग(ग्रामीण कार्य मामले) कार्य प्रमंडल बोकारो की ओर से निर्माण कराया गया था. उस समय सड़क निर्माण की लागत एक करोड़ 22 लाख आयी थी.
जबकि इसे पांच वर्षो से सामान्य मरम्मति का काम भी संबंधित एजेंसी द्वारा किया जाना है. लेकिन इस बीच इसके चौड़ीकरण के नाम पर फिर से विभाग करोड़ो खर्च कर रहा है. जिससे स्पष्ट हो रहा है कि विभाग के द्वारा डीपीआर बनाते वक्त इसका ध्यान नहीं रखा गया और आनन-फानन योजना को बनाकर इसकी निविदा निकाल दी गई.
अधिकारियों ने साधी चुप्पी
अब इस मामले को लेकर पथ निर्माण विभाग के अधिकारियों के पास कोई जबाव भी है.
एक सड़क को दो अलग-अलग विभागों के द्वारा एक साल के अंतराल में बनाया जाना, इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है.
वहीं चुनावी मौसम में किसी भी दल के नेता इस पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. लेकिन मामले की जांच करायी जाये, तो डीपीआर बनाने में बरती गई लापरवाही के मामले में पथ निर्माण विभाग के कई अधिकारी फंस सकते हैं.
मामले पर पथ निर्माण विभाग बोकारो प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता प्रेम प्रकाश सिंह ने कहा कि उन्होंने कुछ दिन पहले ही बोकारो में कार्यभार संभाला है.
ऐसे में उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. साथ ही कहा कि अगर ऐसा हो रहा है तो डीपीआर बनाते वक्त इसका ध्यान नहीं रखा गया है. मामले को देखा जायेगा, उसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है.
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