
- हेमंत के आवास पर हुई बैठक में यूपीए के साथ जेवीएम नेता बाबूलाल मरांडी, प्रदीप यादव, माले के विनोद सिंह, निर्दलीय सरयू राय, अमित यादव भी पहुंचे थे
- आरजेडी कोटे से सांसद प्रेम चंद्र गुप्ता और निर्दलीय सांसद परिमल नाथवाणी का अप्रैल में समाप्त हो रहा कार्यकाल
- विधानसभाध्यक्ष के चुनाव में भी सीएम हेमंत सोरेन के समर्थन में आये 55 विधायक
Nitesh Ojha
Ranchi : हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सत्ता में आयी यूपीए सरकार पूरी मजबूती के साथ अपनी एकजुटता बयां कर रही है. इसका साफ इशारा तो विधानसभा के विशेष सत्र को लेकर सोमवार देर शाम देखने को मिल गया. दरअसल मुख्यमंत्री आवास पर बुलायी गयी यूपीए विधायक दल की बैठक और सत्र में यूपीए की इकजुटता देखने को मिली.
बैठक में यूपीए के घटक दल सहित गैर बीजेपी और निर्दलीय विधायक पहुंचे थे. राजनीतिक गलियारों में इस एकता को झारखंड से खाली हो रही राज्यसभा के दो सीटों से भी जोड़कर देखा जा रहा है.
गौरतलब है कि इस साल अप्रैल माह में राज्यसभा की दो सीट खाली होने वाली है. इसमें निर्दलीय चुनाव जीते सांसद परिमल नाथवानी और आरजेडी कोटे के प्रेम चंद्र गुप्ता शामिल हैं. दोनों सांसदों का कार्यकाल 9 अप्रैल 2020 को पूरा हो रहा है.
जिससे चर्चा जोरों पर है कि मजबूती से सत्ता में आयी हेमंत सरकार खाली हो रहे दोनों राज्यसभा सीट जीतकर बीजेपी को एक और झटका देने की तैयारी में है.
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सोमवार को दिखी यूपीए और गैर बीजेपी विधायकों की एकजुटता
बीते साल 29 दिसंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाली हेमंत सरकार को विधानसभा के पहले ही दिन 55 विधायकों का समर्थन मिला है. सत्र के दौरान विधानसभाध्यक्ष के चुनाव के मुद्दे पर यूपीए के साथ गैर बीजेपी विधायकों (कुल 55 विधायकों, जिसमें आजसू भी शामिल है.) ने सीएम हेमंत सोरेन के साथ एकजुटता दिखायी.

वहीं देर शाम सीएम आवास में बुलायी गयी बैठक में यूपीए के घटक दलों (इसमें एनसीपी के कमलेश सिंह भी शामिल है.), माले विधायक विनोद सिंह के अलावा दो निर्दलीय विधायक सरयू राय (कभी बीजेपी के कद्दावार नेता रहे अब बागी होकर पूर्वी जमशेदपुर से चुनाव जीते) और अमित यादव (बरकट्टा विधायक) भी पहुंचे थे.
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अल्पसंख्यक कोटे से भेजे जाने का हो चुका है वादा
लोकसभा चुनाव के पहले ही यह बात सामने आ चुकी है कि 2020 में होने वाले राज्यसभा चुनाव में किसी अल्पसंख्यक कोटे से एक नेता को राज्यसभा भेजा जा सकता है. बीते वर्ष मार्च महीने में जेएमएम अध्यक्ष शिबू सोरेन के आवास पर रविवार को आयोजित संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में महागठबंधन के नेताओं ने कहा था, कि 2020 के राज्यसभा चुनाव में सभी दल मिलकर अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े नेता को उच्च सदन भेजेंगे.

उस दौरान कहा गया था कि इसके पीछे की मंशा यही थी कि राज्य के एक बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को किसी भी हाल में नाराज नहीं किया जाए. ऐसा इसलिए क्योंकि झारखंड की सभी 14 लोकसभा सीटों के लिए महागठबंधन में शामिल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, झारखंड विकास मोर्चा और आरजेडी ने किसी भी अल्पसंख्यक चेहरे को चुनाव मैदान में नहीं उतारा था.
घोषणा के दौरान जेएमएम नेता वर्तमान में सीएम हेमंत सोरेन, कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्य़क्ष डॉ अजय कुमार (अब पार्टी छोड़ चुके हैं), जेवीएम से बाबूलाल मरांडी उपस्थित थे. हालांकि नयी हेमंत सरकार में कांग्रेस में अल्पसंख्यक कोटे से आलमगीर आलम मंत्री बन चुके हैं.

वहीं जेएमएम से हाजी हुसैन अंसारी का मंत्री बनना भी तय माना जा रहा है. जाहिर है कि 12 सदस्यीय मंत्रिमंडल में दो अल्पसंख्यक के मंत्री बनने से इन वादों पर कुछ रूकावट बन सकती है. ऐसे में सीएम हेमंत सोरेन जरूर चाहेंगे कि अल्पसंख्यक कोटे को नाराज नहीं करते हुए दोनों सीट यूपीए के ही पाले में रहे.
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सांसद चुनने के लिए चाहिए 28 प्राथमिक वोट
राज्यसभा में एक उम्मीदवार को चुने जाने के लिए न्यूनतम मान्य वोट चाहिए होते हैं. वोटों की गिनती सीटों की संख्या पर निर्भर करता है. इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि राज्य में विधायकों की कुल संख्या 81 है.

अब प्रत्येक सदस्य को राज्यसभा पहुंचने के लिए कितने विधायकों का समर्थन प्राप्त होना चाहिए, यह तय करने के लिए कुल विधायकों की संख्या को जितने सदस्य चुने जाने हैं, उसमें 1 जोड़कर विभाजित किया जाता है.
अप्रैल माह में राज्य से 2 सदस्यों का चुनाव होना है. इसमें 1 जोड़ने से यह संख्या 3 होती है. राज्य में कुल विधायकों की संख्या 81 है, तो उसे 3 से विभाजित करने पर संख्या 27 आता है. इसमें फिर 1 जोड़ने पर यह संख्या 28 हो जाती है. यानी राज्य से राज्यसभा सांसद बनने के लिए उम्मीदवार को 28 प्राथमिक वोटों की जरूरत होगी.
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