
- कुणाल के चर्चा में रहने का कारण विपक्षी की राजनीति, तो तो चंपई पर पार्टी दिखा चुकी है भरोसा
- बार-बार प्रेस बयान से यह बताना कि सभी विधायक साथ हैं,कहीं यह डर तो नहीं
Nitesh Ojha
Ranchi : चुनाव के पहले या बाद में पार्टी छोड़ अन्य दलों में जाने की बात भारतीय राजनीति में आम हो गयी है. लेकिन जैसी स्थिति विधानसभा चुनाव ठीक पहले प्रदेश में दिख रही है, वो बताता है कि मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर पार्टियां चुनाव में अपनी जीत को आसान बनाने में लगी हैं. देखा जाए, तो ऐसा करने में सबसे आगे बीजेपी ही दिख रही है.
बीजेपी के पुख्ता सूत्र लगातार दावा कर रहे हैं कि जेएमएम और कांग्रेस के कुछ विधायक पार्टी के संपर्क में हैं. दरअसल माना जा रहा है कि मनोवैज्ञानिक प्रेशर बीजेपी के चुनावी स्टंट का एक हिस्सा है, ताकि विपक्ष की एकता को कमजोर कर उसे आंतरिक कलह में उलझे रखा जाए.
दूसरी तरफ जेएमएम का हर बार प्रेस में बयान देकर बताना कि सभी विधायक मजबूती के साथ हेमंत सोरेन के साथ खड़े हैं, उनका डर माना जा रहा है. मनोवैज्ञानिक प्रेशर से कांग्रेस भी अछूती नहीं है. पार्टी के दो सीटिंग विधायकों के बीजेपी में जाने की अटकलें भी काफी तेजी से हैं. हालांकि इसके पीछे कांग्रेस की आंतरिक कलह को भी एक कारण बताया जा रहा है.
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बीजेपी में शामिल होने की चर्चा जोरों पर
लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश की राजनीति में कहीं विधायकों के बीजेपी में जाने की अफवाह जोरों पर है, इसमें जेएमएम के बहरागोड़ा विधायक कुणाल षाड़ंगी, सरायकेला विधायक चंपई सोरेन, चाईबासा विधायक दीपक बिरुवा, मझगांव विधायक निरल पूर्ति, चक्रधरपुर शशिभूषण सामड एवं खरसावां के दशरथ गगराई जैसा नेता शामिल हैं.
वहीं कांग्रस के लोहरदगा विधायक सुखदेव भगत, पांकी विधायक देवेंद्र कुमार सिंह उर्फ बिट्टू की भी बीजेपी में जाने की चर्चा जोरों पर है. कांग्रेस के सूत्रों की मानें, तो पूर्व लोहरदगा सांसद रामेश्वर उरांव के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद सुखदेव भगत पार्टी में अलग-थलग पड़ चुके हैं. अब वे नये आशियाने की तलाश में हैं.
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बार-बार प्रेस में बयान देना कहीं JMM का डर तो नहीं
सूत्रों का दावा है कि विधायकों के बीजेपी से संपर्क में होने की बात दरअसल विपक्षी दल (जेएमएम प्रमुख है) पर मनोवैज्ञानिक प्रेशर कर रखना है. यह एक तरह से बीजेपी का चुनावी स्टंड है. इस चुनावी स्टंड के चक्रव्यूह में जेएमएम इतनी फंसी है कि उन्हें अपने ही विधायकों पर भरोसा कम दिख रहा है.
यूं कहें, विधायकों के शामिल होने की अफवाह पर पार्टी नेता इतने डरे हैं कि उनके प्रवक्ताओं को प्रेस में बार-बार यह बयान देना पड़ रहा है कि जेएमएम पूरी तरह से एकजुट है और मजबूत है.
गौरतलब है कि 2 सितंबर को पार्टी प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने एक प्रेस काफ्रेंस कर सभी विधायकों के हेमंत सोरेन के साथ खड़े होने की बात कही थी. इस दौरान कोल्हन के 4 सीटिंग विधायक दीपक बिरुवा, निरल पूर्ति, शशिभूषण सामड एवं दशरथ गगराई उपस्थित थे.
इसी तरह 20 सितंबर को एक प्रेस बयान में उन्होंने दावा किया था कि सरायकेला विधायक चंपई सोरेन और बहरागोड़ा विधायक कुणाल षाडंगी पार्टी के साथ मजबूती से खड़े हैं.
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अपवाहों के बीच देखा जाए, तो शिबू सोरेन (गुरूजी) सरीके कद्दावार नेता की विरासत संभाल रहे हेमंत सोरेन के साथ पार्टी के सभी विधायक पूरी तत्परता से खड़े हैं. बात चाहे कोर कमिटी में रहने वाले चंपई सोरेन, दीपक बिरुआ, कुणाल सारंगी की करें (जिनके बीजेपी में जाने की अफवाह तेजी से है) या कोल्हन के कई विधायकों की, सभी हर वक्त हेमंत के साथ मजबूती से चलने की मंशा समय-समय पर जताते रहे हैं.
विधानसभा भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का जब हेमंत सोरेन ने कतिपय कारणों से विरोध किया था, उस वक्त चर्चा थी कि कुणाल, जगन्नाथ महतो जैसे पार्टी विधायक कार्यक्रम में शामिल होंगे.
लेकिन यह चर्चा मात्र अफवाह मात्र बनकर रह गयी थी. वहीं बीजेपी के इस कार्यक्रम में सुखदेव भगत और बिट्टू सिंह बीजेपी विधायकों के साथ उपस्थित हुए थे.
कुणाल बने मुखर वक्ता, तो चंपई पर पार्टी जता चुकी है भरोसा
सूत्रों का यह भी दावा है कि जेएमएम में रहकर बहरागोड़ा विधायक प्रदेश की राजनीति में जैसा चर्चा में रहे हैं, वैसी चर्चा उऩ्हें बीजेपी में कम ही मिल पाती. गौरतलब है कि कुणाल की तरह बीजेपी के गोड्डा विधायक अमित मंडल भी विदेश में पढ़ाई कर चुके हैं.
लेकिन जैसी चर्चा कुणाल की प्रदेश राजनीति में रहती है, वैसी चर्चा अभी तक अमित मंडल को नहीं मिल पायी है, ऐसा इसलिए क्योंकि सत्ता में रहने के कारण वे मुखर नहीं हो पाते हैं. वहीं लोकसभा चुनाव के दौरान चंपई सोरेन पर भरोसा जताकर ही पार्टी ने उन्हें जमशेदपुर से प्रत्याशी बनाया था.
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