
Ranchi : विनोबा भावे विश्वविद्यालय के प्राइवेट बीएड कॉलेजों के एफलिएशन अपडेशन के लिए कराये जाने वाले निरीक्षण के लिए जो पत्र कुलसचिव द्वारा निर्गत हुआ, वह नियम विरुद्ध था. और गलत मंशा की ओर इशारा करता है.
निरीक्षण की बाबत निर्गत पत्र जो निरीक्षण दल और संबंधित महाविद्यालय को लिखा गया था, उसमें उल्लेख था कि निरीक्षण दल एक सत्र, दो सत्र, तीन सत्र और स्थायी एफलिएशन के लिए निरीक्षण कर प्रतिवेदन विश्वविद्यालय को उपलब्ध कराया जाये. इस पत्र ने निरीक्षण दल के अधिकार को सीमित कर दिया.
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एनसीटीइ से लेकर हाइकोर्ट के निर्णय तक की हुई अनदेखी




एनसीटीइ नियमावली 1993 के चैप्टर 4 के सेक्शन 14 के सब सेक्शन 6 में अस्थायी एफलिएशन का कोई प्रावधान नहीं है. इसी नियमावली के आलोक में दिसंबर 2018 में पटना हाइकोर्ट भी स्थायी एफलिएशन देने का निर्णय सुनाया था. सिंडिकेट की 104 वीं बैठक में यह निर्णय हुआ था कि जो टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज चार सत्रों से संचालित है, उसे स्थायी एफलिएशन दे दी जाये.
निरीक्षण बाबत निर्गत पत्र में एनसीटीइ एक्ट, हाइकोर्ट का निर्णय और सिंडिकेट के निर्णय को भी ध्यान में नहीं रखा जाना, कॉलेजों को स्थाई एफलिएशन हेतु निरीक्षण कराना और किसी महाविद्यालय को तीन सत्रों के एफलिएशन हेतु निरीक्षण कराना कुलसचिव के कार्यप्रणाली व मंशा पर गंभीर प्रश्न चिन्ह है.
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निरीक्षण दल गठन में ही था विवाद
विभिन्न कॉलेजों के निरीक्षण हेतु जो निरीक्षण दल बनया गया, उसमें भी विवाद रहा. पहले गठित निरीक्षण दल में कांट्रेक्ट पर कार्यरत शिक्षकों को सम्मिलित कर लिया गया था. पर जब इस पर विवाद हुआ तो वैसे शिक्षकों को निरीक्षण दल से हटा लिया गया.
कांट्रैक्ट वाले शिक्षकों को बाद में हटा तो लिया गया पर वे जिन महाविद्यालयों के निरीक्षण कर लिए थे, उन कॉलेजों का दोबारा निरीक्षण न कराकर उन्हीं के निरीक्षण प्रतिवेदन को विश्वविद्यालय ने स्वीकार कर लिया. जब विवि ने उन कांट्रेक्ट शिक्षकों को निरीक्षण दल में सम्मिलित होना गलत मान लिया है और उन्हें निरीक्षण दल से हटा दिया गया तो फिर उनके द्वारा तैयार निरीक्षण प्रतिवेदन को कैसे सही मान कर विवि ने स्वीकार किया.
निरीक्षण दल को नियमों की नहीं थी जानकारी
निरीक्षण दल में सम्मिलित शिक्षकों को एनसीटीइ एक्ट, न्यायालयों के निर्णयों, सिंडिकेट के निर्णय से संबंधित कागजात नहीं उपलब्ध कराया गया. और न ही इन लोगों को इन नियमों की जानकारी दी गयी. निरीक्षण दल में शामिल सदस्यों को इस बात की जानकारी भी नहीं थी कि एक बीएड कॉलेज में कितनी भूमि होनी चाहिए. कितने क्लास रूम होने चाहिए, पुस्तकालयों में कितनी किताबें हो, प्रयोगशाला में क्या-क्या होना चाहिए, क्लास रूम,प्रयोगशाला आदि क्या क्या साइज होना चाहिए आदि.
एफलिएशन का बढ़ाने की प्रक्रिया नवंबर-दिसंबर से जारी थी फिर भी निरीक्षण दल निर्धारित समय पर निरीक्षण प्रतिवेदन विवि को नहीं सौंपी. इतना ही नहीं बगैर सिंडिकेट के ही एफलिएशन का प्रस्ताव निदेशालय नियत 20 मार्च तक भेजने का सुनियोजित योजना पर विश्वविद्यालय काम कर रही थी.
विवि की सोच थी कि केवल एफलिएशन समिति से ही निरीक्षण प्रतिवेदन के मद्देनजर संबंधन बाबत निर्णय लेकर प्रस्ताव को निदेशालय भेज दिया जाये और जब सरकार से अनुमोदन हो जायेगा तब सिंडिकेट में इसको रखा जायेगा.
पर कई सिंडिकेट के सदस्यों द्वारा विरोध करने पर आनन फानन में 19 मार्च को सिंडिकेट की बैठक हुई और इस बैठक में नियम परिनियम की बात करने वाले सदस्यों को यह कह कर समझा दिया गया कि अब समय नहीं है. 20 मार्च तक ही प्रस्ताव को निदेशालय भेजना है.
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