
Sanjay Prasad
Jamshedpur : बीमारियों से नहीं, बल्कि मौसम का मिजाज बदलने से 2021 में भारत में लगभग 1700 लोग मारे गये. गत 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा जारी रिपोर्ट में ये चौंकाने वाले आंकड़ें सामने आए हैं. रिपोर्ट के अनुसार मौसम का मिजाज बिगड़ने की वजह से 2021 में देश के 1,700 लोग मारे गये. इनमें सबसे ज्यादा 350 महाराष्ट्र के थे. 223 ओडिशा और 191 मध्य प्रदेश के लोग मारे गये. ये मौतें बिजली गिरने, चक्रवात, भीषण गर्मी, बाढ़ और भूस्खलन से हुईं. झारखंड में भी हर साल बिजली गिरने से मौत होती है.
जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्मी बढ़ी
2012 से 2021 के बीच में भारत के तापमान में सर्वाधिक वृद्धि देखी. 15 में से 11 सबसे गर्म वर्ष बीते डेढ़ दशक में दर्ज हुए. 2022 में भी मार्च महीना सबसे गर्म रहा. इस वजह से राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और हरियाणा में गर्मी का प्रकोप ज्यादा रहा. रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार के प्राकृतिक आपदाओं से जुड़े खर्च में 30 प्रतिशत कमी आई है.


बाढ़ का खतरा बढ़ रहा
भारत, चीन और नेपाल के बीच 25 ग्लेशियर झीलें व जलाशय हैं, जिनमें से अधिकतर का जल क्षेत्र गर्मी के साथ बढ़ रहा है. अकेले नेपाल में 2009 से इनका जल क्षेत्र 40 प्रतिशत बढ़ा है. इससे भारत के सात राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) बिहार, हिमाचल प्रदेश, असम, जम्मू कश्मीर, लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में अचानक बाढ़ के खतरे पैदा हुए हैं.
नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ा
नदियों में प्रदूषण पर निगरानी रख रहे 4 में से 3 निगरानी केंद्रों के अनुसार इनमें लेड, निकल, कैडमियम, आयरन, आर्सेनिक, क्रोमियम और कॉपर आदि अधिक मिल रहे हैं. हर चौथे केंद्र को 117 नदियों और उनकी सहायक में दो या दो से ज्यादा जहरीले तत्व मिले हैं. सबसे पवित्र कही जाने वाली गंगा के 33 में से 10 निगरानी केंद्रों ने पानी में प्रदूषण सुरक्षित स्तर के पार बताया है.




केवल 12 फीसदी कचरा ही रिसाइकल
देश में 12 प्रतिशत प्लास्टिक ही रिसाइकल हो रहा है, तो 20 प्रतिशत जलाया जा रहा है. 2019-20 में देश में 35 लाख टन प्लास्टिक का कचरा निकला था. 68 प्रतिशत प्लास्टिक का क्या हो रहा है, कोई खबर नहीं है. अनुमान हैं कि इनसे कचरे व मलबे के ढेर बन रहे हैं तो इन्हें जमीन में भी गाड़ा जा रहा है. इससे मिट्टी में प्रदूषण बढ़ रहा है.