
Lohardaga: कहने को तो राज्य सरकार, झारखंड के आदिवासियों के लिए कई तरह की कल्याणकारी योजनाएं चला रही है. लेकिन इन योजनाओं का कितना लाभ जरुरतमंदों को मिल रहा है, इस बात का अंदाजा आप इससे लगा सकते है कि लोहरदगा में गरीबी और मुफलिसी से तंग आकर एक मां ने अपनी ही नवजात का सौदा कर डाला. जिले के सेरंदाग निवासी स्व० बिहारी असुर की बेटी संगीता देवी की ने गरीबी से लाचार होकर अपनी नवजात बच्ची का दस हजार रुपए में सौदा कर डाला. उसने इसके लिए 5 हजार रु अडवांस भी ले लिया है.
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10 हजार में मासूम का सौदा
35 वर्षीय संगीता ने रोते-रोते अपना दर्द बयां करते हुए बताया कि वह 7वीं तक पढ़ी है. वही 2010 में उसने गांव के जयनाथ खेरवार से शादी कर ली. उसके दो बेटे है. वही जब संगीता तीसरी बार गर्भवती हुई तब एकदिन अचानक उसका पति उसे छोड़कर चला गया. बाद में ससुराल वालों ने भी उसे छोड़ दिया. अब संगीता अपनी मां के साथ कचरा चुनकर किसी तरह से जिंदगी काट रही है. संगीता कहती है कि अपने बच्चों की परवरिश के लिए उसने ये कदम उठाया. नाम पता बताने में असमर्थ संगीता ने रोते हुए बताया कि लोहरदगा में किसी निःसंतान परिवार के पास दस हजार रुपए में अपनी मासूम बच्ची का सौदा कर दिया. और पांच हज़ार एडवांस भी लिया और बाकी का पांच हज़ार बच्ची को चलने फिरने लायक होने के बाद सौंपने पर लेने की बात तय हुई.
आखिर क्यों आयी ऐसी नौबत
गौरतलब है कि असुर जनजाति झारखंड की आदिम जनजाति में से एक है. और सरकार इनके कल्याण के लिए योजना चलाने का दावा करती है. लेकिन वाकई इन योजनाओं का लाभ जरुरतमंदों को मिलता तो आज संगीता और उसके तीन बच्चों की जिंदगी ऐसी नहीं होती. हो सकता है नवजात के सौदे की बात सामने आने पर पुलिस-प्रशासन हरकत में आये. लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसी नौबत ही क्यों आयी कि संगीता को अपनी दूधमुंही बच्ची को बेचने के लिए विवश होना पड़ा.
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