
Sweta Kumari
Ranchi : मदर्स डे पर सभी अपनी-अपनी मां को नमन कर रहे हैं. लॉकडाउन ने इस बार एक अलग सा ही अनुभव लोगों को दिया है, मदर्स डे मनाने के लिए. सुबह से ही सोशल मीडिया पर तरह- तरह के फोटो और पकवान देखने को मिल रहे हैं. जिसके माध्यम से सभी माओं को इस महान दिन पर बधाई दी जा रही है.
सच में मां वो है जो एक संसार को गढ़ती है. नौ महीने अपने बच्चे को कोख में रखती है और शिशु को एक नया जीवन प्रदान करती है. और शिशु के जन्म के बाद भी अपने सभी शौक को मारकर उसे पालती है.


देश में कई ऐसी माएं हैं, जिनकी महानता को लोग आज भी बताते हैं. उनमें से ही एक मां रानी लक्ष्मी बाई भी थी, जिन्होंने अपने बालक को पीठ पर बांधकर रणभूमि में सबके दांत खट्टे कर दिये थे. रानी लक्ष्मी बाई की शौर्यगाथा के बारे में जितना भी उल्लेख करें कम है.


लेकिन देश में भी भी कई ऐसी माएं हैं, जो हर दिन मिसाल पेश कर रही हैं. खासकर कोरोना संकट काल में लॉकडाउन के दौरान हर दिन कहीं ना कहीं से एक तस्वीर ऐसी आ ही जाती है.
ऐसी ही एक मां की तस्वीर फिर से सामने आयी है. जिसके बारे में सुनकर किसी का भी दिल भर आये और रोंगटे खड़े हो जायें. ये मां भी किसी योद्धा से कम नहीं है.
दरअसल लॉकडाउन में अपने घर पहुंचने के लिए दिन-रात प्रवासी मजदूर पैदल चल रहे हैं. उनमें कई ऐसी माएं भी चल रही हैं जो या तो बच्चे को गोद में लिए हैं या गर्भवती हैं. ऐसी ही एक गर्भवती महिला शकुंतला, जो नौ महीने की गर्भवती थी और पति के साथ घर जाने जाने के लिए पैदल ही 5 मई को नासिक से सतना के लिए चल पड़ी. नासिक से सतना की दूरी लगभग एक हजार किलोमीटर है. फिर भी शकुंतला ने पति से साथ पैदल चलने का निर्णय लिया.
ऐसी हालत में 70 किलोमीटर चलने के बाद मुंबई-आगरा हाइवे पर ही शकुंतला ने बच्चे को जन्म दे दिया. हालांकि 4 अन्य महिलाओं ने इसमें उसकी मदद की. बच्चे को जन्म देने के बाद शकुंतला और उसके पति के सामने अब तो समस्या और भी बड़ी हो गयी. दोनों सोंच में पड़ गये.
बच्चे के जन्म को बाद शकुंतला के सामने एक बड़ी बेबसी थी, वो लाचार थी. फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी, क्योंकि उसका आत्मविश्वास बेबसी से कहीं ज्यादा ऊंचा था.
शकुंतला ने नवजात के जन्म के बाद सिर्फ 1 घंटे के बाद ही उसे गोद में लिया और फिर पति के साथ पैदल चल पड़ी. 160 किलोमीटर चलने के बाद एमपी-महाराष्ट्र के बिजासन बॉर्डर पर शनिवार को पहुंची.
शकुंतला किसी योद्धा से कम नहीं है. नवजात को गोद में लिये पैदल चल रही थी. रास्ते में जब धुले पहुंची तो एक सिख परिवार ने कुछ कपड़े और खाना देकर उसकी मदद की. शकुंतला चलते-चलते एमपी-महाराष्ट्र के बिजासन बॉर्डर पर पहुंची तो वहां तैनात पुलिस अधिकारी कविता कनेश ने इन्हें खाना दिया और इनके घर सतना पहुंचाने का भी इंतजाम करवाया.शकुंतला पहले से भी 2 साल की बच्ची की मां थी.
कोरोना जब विश्व को अलविदा कह देगा तो कई ऐसे बदलाव कर जायेगा. जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. लेकिन उससे पहले देश में लागू लॉकडाउन ने भी बहुत कुछ बदल दिया है. की आदतें बदल दी हैं, कई मुश्किलें ला खड़ी की हैं. जो इतिहास बन जायेगा.
इसी लॉकडाउन के इतिहास में शकुंतला का भी नाम होगा. उस मां को नाम होगा, जिसने जिन परिस्थितियों में बच्चे को जन्म दिया और तुरंत ही उसे गोद में लेकर पैदल चल पड़ी. इस मदर्स डे पर एक मां की इस शौर्यगाथा का गुणगान हमेशा गाया जायेगा. और बच्चे के हर जन्म दिन पर इस मां को भी अपनी इस तकलीफ की ठीस जरूर उठेगी. देश की ये मां भी एक योद्धा है. इसे सलाम