
Ranchi. कोरोना झारखंड में रोज नये कीर्तिमान बना रहा. अप्रैल महीने में ही अब तक 60,000 से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं. नये वेरिएंट के खतरनाक रूप के कारण 602 की मौत हो चुकी है. फिलहाल लगभग 41 हजार एक्टिव केस राज्य में अभी हैं. बढ़ते कोरोना संक्रमण के खतरे के चेन को तोड़ने को राज्य में 29 अप्रैल तक स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा.
इस बीच दूसरे राज्यों से झारखंड लौटते प्रवासियों के चलते चुनौतियां बढ़ने लगी हैं. श्रम विभाग में रजिस्टर्ड 1500 से अधिक श्रमिक वापस लौट चुके हैं. इसके अलावे अब तक 15 हजार से भी अधिक श्रमिकों के वापस लौटने की खबर है. पर उनके वास्ते सुध लेने में ना तो सचिवालय अभी एक्टिव है, ना ही गांव की सरकार.
सचिवालय पर कोरोना की मार


गांव लौटते श्रमिकों के मामले में मुख्य रूप से उनके लिये ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग ही जिम्मेदारी लेता रहा है. पर अबकी दूसरी लहर ने विभाग को ही पस्त कर दिया है. विभागीय सचिव आराधना पटनायक संक्रमित होकर होम आइसोलेशन में हैं. पिछले साल लाखों श्रमिकों को रोजी-रोजगार देने वाला मनरेगा सेक्शन खुद बगैर कमिश्नर के बेरोजगार है.


पिछले महीने मनरेगा आयुक्त के तौर कार्यरत सिद्धार्थ त्रिपाठी का दूसरी जगह ट्रांसफर हो गया. कमिश्नर के नहीं रहने से ना तो मनरेगा की योजनाओं से श्रमिकों को जोड़ने की राह आसान है ना ही उनके भुगतान की. इसके अलावे मनरेगा कर्मियों (मुख्यालय) का भी पेमेंट नहीं हो रहा.
जेएसएलपीएस के जरिये भी पिछले साल कोरोना काल में एसएचजी के माध्यम से कई सार्थक पहल की गयी थी. पर इस साल फरवरी में इसके सीइओ राजीव कुमार के जाने के बाद से इसे प्रभार के भरोसे चलाया जा रहा. इसके अलावे विभाग से विशेष सचिव रवि रंजन और अनल अनल प्रतीक संक्रमित होकर ईलाजरत हैं.
उप सचिव नवीन किशोर सुवर्णो का कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो चुका है. विभाग के विशेष सचिव यतींद्र प्रसाद और उप सचिव नागेंद्र पासवान का अन्यत्र ट्रांसफर हो चुका है. फिलहाल पंचायती राज विभाग के निदेश आदित्य रंजन सरकार के आदेश से स्वास्थ्य विभाग के साथ जुड़कर कोरोना संकट से जुझने वाली मैनेजमेंट टीम के साथ काम कर रहे. ऐसे में केवल एक अवर सचिव मिथिलेश कुमार नीरज ही पदाधिकारी के तौर पर दिख रहे हैं. इन सब परिस्थितियों के कारण मनरेगा, जेएसएलपीएस और ग्रामीण विकास, कार्य की सभी योजनाओं पर गहरा असर पड़ रहा है.
कोरोना काल में मनरेगा रामबाण
कोरोना की पिछली लहर (वर्ष 2020) में मनरेगा के जरिये प्रवासी मजदूरों को राहत देने में मदद मिली थी. 3 मई से प्रवासी मजदूरों की वापसी शुरू हुई थी. महज दो सप्ताह में राज्य में 92 हजार परिवारों के 1.37 लाख प्रवासी मजदूरों का नया जॉब कार्ड खोला गया था. बाद में क्वारंटाइन का समय पूरा करने पर पांच लाख मजदूरों को जॉब कार्ड जारी करने पर काम हुआ था. उन्हें रोजगार देने के लिए सरकार ने तीन योजनाएं शुरू की थीं.
साथ ही पूर्व में चल रही योजनाओं पर भी काम चल रहा था. राज्य में मई में ही पांच लाख लोगों को काम देने का लक्ष्य रखा गया था. इसके बाद प्रवासियों की वापसी के आकंड़े को देखते हुए विभाग ने नया लक्ष्य 10 लाख प्रतिदिन कार्यदिवस सृजित करने का रखा था. झारखंड में हर साल औसतन 14 लाख परिवार के 18 से 19 लाख लोग मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं. पर अबकी सचिवालय पर पड़ी कोरोना की मार ने ग्रामीण क्षेत्रों में विकास योजनाओं को प्रभावित कर दिया है. फिलहाल इस समय मिनी लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में मजदूर गांव में पहले से मौजूद हैं. पहले इनमें से कई लोग शहरों में भी काम करने जाया करते थे, जो अब बंद है.
क्या है गांवों का हाल
राज्य मुखिया संघ के महासचिव अजय कुमार सिंह कहते हैं कि पिछली कोरोना लहर के मुकाबले इस बार खतरा ज्यादा है. पिछली बार गांवों में आने वाले श्रमिकों का डाटा, उन्हें कोरेंटिन किया जाना और किसी प्रकार की मदद देने के लिये फंड, अनाज वगैरह का भी प्रावधान था. इस बार ऐसी कोई पहल होती नहीं दिखी है. ऐसे में जहां तहां से संक्रमित प्रवासी लौट रहे हैं और कोरोना की चेन को तोड़ने की बजाये फैलाने में लगे हैं. रोजी रोजगार से जोडे रखने को भी कोई निर्देश कहीं से नहीं है.