
Dilip Kumar
Medininagar: झारखंड के बहुचर्चित चतरा संसदीय क्षेत्र का भुगोल और इतिहास चैंकाने वाला है. बाहरी उम्मीदवारों के लिए चतरा सदा चर्चित रहा है. आज भी चर्चा में इसलिए है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कोई परिवर्तन दिखायी नहीं दिया.
अभी तक के परिदृश्य के अनुसार किसी भी बड़े राजनीतिक दल ने चतरा संसदीय क्षेत्र के स्थानीय को उम्मीदवार नहीं बनाया है.


इस संसदीय क्षेत्र में चतरा जिले के अलावा, पलामू का पांकी विधानसभा क्षेत्र एवं लातेहार जिले के लातेहार तथा मनिका विधानसभा क्षेत्र आते है.


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1957 से अबतक बाहरी प्रत्याशी ही चुनाव जीतते रहे
वर्ष 1957 से अब तक चतरा संसदीय क्षेत्र का सांसद बनने का सौभाग्य चतरा के स्थानीय लोगों को नहीं मिला है. कोडरमा एवं हजारीबाग संसदीय क्षेत्र से विभाजित होकर चतरा संसदीय क्षेत्र का निर्माण हुआ.
अभी तक चतरा संसदीय क्षेत्र से जितने भी सांसद निर्वाचित हुए हैं, सभी चतरा जिले के बाहर के मतदाता रहे हैं. चतरा संसदीय क्षेत्र से 1957 में पहली बार महारानी विजया राजे सांसद बनी.
उनका संबंध पदमा (रामगढ़) के राजघराने से था. वह मूलतः हजारीबाग संसदीय क्षेत्र की मतदाता थी. वह लगातार तीन बार चतरा से सांसद बनी.
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ज्यादातर बिहारी ही रहे चतरा के सांसद
वर्ष 1971 के चुनाव में शंकरदयाल सिंह चतरा के सांसद निर्वाचित हुए. वे अविभाजित बिहार के औरंगाबाद जिले के थे. वर्ष 1977 में सुखदेव प्रसाद वर्मा सांसद चुने गए. श्री वर्मा बिहार के जहानाबाद के रहने वाले थे.
इसके बाद 1980 में गया निवासी रंजीत सिहं चतरा के सांसद बने. वर्ष 1984 में धनबाद के योगेश्वर प्रसाद योगेश चतरा से सांसद निर्वाचित हुए. लगातार दो बार 1989 और 1991 में चतरा के लिए निर्वाचित सांसद उपेन्द्रनाथ वर्मा का संबंध गया के मानपुर से था.
धीरेन्द्र, नागमणि भी बिहार के निवासी
इनके बाद धीरेन्द्र अग्रवाल को वर्ष 1996 एवं वर्ष 1998 में लगातार दोबार चतरा के लिए सांसद बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
वह भी गया के निवासी थे. चतरा संसदीय क्षेत्र से 1999 में संसद सदस्य बनने वाले नागमणि मूलतः जहानाबाद जिले के निवासी हैं. वर्ष 2004 में एक बार फिर धीरेन्द्र अग्रवाल को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ.
पलामू के इंदर सिंह नामधारी बने 2009 में निर्दलीय सांसद
वर्ष 2009 के संसदीय आम चुनाव में चतरा के मतदाताओं ने इतिहास रचते हुए झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी को मौका दिया.
श्री नामधारी ने यह चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा था. श्री नामधारी का संबंध पलामू के डालटनगंज से है.
2014 में बिहार-बक्सर के सुनील सिंह बने सांसद
इसके बाद पिछले चुनाव 2014 में बक्सर एवं रांची से ताल्लुक रखने वाले सुनील कुमार सिंह ने चतरा के मार्फत लोकसभा में प्रवेश किया. इस प्रकार चतरा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद चतरा के मतदाता नहीं रहे. बाहरी उम्मीदवारों का दबदबा रहा और चतरा के निवासी यह बर्दाश्त करते रहे.
अब इंतजार है 2019 के संसदीय चुनाव की. देखना है चतरा के मतदाता इस बार क्या गुल खिलाते हैं? हालांकि विभिन्न पार्टियों के उम्मीदवारों ने चतरा के दौरा शुरू कर दिया है.
पुराने चेहरे सुनील सिंह को भाजपा से फिर मिला मौका
वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव में भी भाजपा ने अपने पुराने चेहरे सुनील कुमार सिंह को एक बार फिर मौका दिया है. हालांकि उनका विरोध चतरा के भाजपा कार्यकर्ता खुलकर कर रहे हैं.
इधर, महागठबंधन के सर्वसम्मत फैसले के अनुसार यह सीट कांग्रेस को आवंटित की गयी है. लेकिन कांग्रेस द्वारा अपना उम्मीदवार घोषित करने से पहले ही राजद ने पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद और तेजस्वी के चहेते सुभाष यादव को लालटेन थमा कर महागठबंधन के इरादों को जोर का झटका दे दिया.
महागठबंधन के कांग्रेस और राजद के उम्मीदवार चुनाव मैदान में
कुछ दिन इंतजार करने के बाद कांग्रेस ने मनोज यादव को टिकट थमा दिया. कांग्रेसी प्रत्याशी मनोज यादव बरही के विधायक हैं.
उनका चतरा क्षेत्र से कोई दूर-दूर का रिश्ता नहीं है. इधर राजद के सुभाष यादव की कर्मभूमि बिहार है. लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों से सुभाष इस क्षेत्र में काफी सक्रिय थे.
बिहार और झारखंड में वह बालू माफिया के रूप में विख्यात हैं. हालांकि हर उम्मीदवार स्वंय को चतरा का रिश्तेदार बताता है. इस तरह चतरा संसदीय क्षेत्र आज भी किसी स्थानीय के लिए तरस रहा है.
आखिर इस अभिशाप से यह कब मुक्त होगा. एक शेर है, जो चतरा पर फिट बैठता है-
अब सिर्फ चतरा के अफसाने रह गए हैं
अपना नहीं है कोई, बेगाने रह गए हैं
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