
Zeb Akhtar

हॉट स्टार की नई वेब सीरीज़ ‘स्पेशल ऑप्स’ 17 मार्च को रिलीज़ हो चुकी है. इस वेब सीरिज से बॉलीवुड के दो दिग्गज निर्देशकों ने डिजिटल डेब्यू की है. एक हैं ए वेडनस डे जैसी फिल्म का निर्देशन करने वाले नीरज पांडेय और दूसरे नाम शबाना और आहिस्ता-आहिस्ता जैसी यादगार फिल्म बनाने वाले शिवम नायर. केके मेनन वेब सीरीज़ में मुख्य भूमिका में हैं. गौरतलब है कि साल 2020 में अब तक आई वेब सीरीज़ में से यह पहली भारतीय स्पाई थ्रिलर है. जो कहानी और ट्रीटमेंट की वजह से अलग से ध्यान खींचती है. नीरज पांडेय के आइडिया पर आधारित पर उनके कैंप के लेखकों ने इसे सिनेमिटक स्क्रीनप्ले के फार्म में ढाला है. इसे व्यापक सराहना भी मिल रही है. हमने इस वेब सीरीज पर निर्देशक शिवम नायर से बात की है. और इस बहाने से वेब सीरीज का भारत में भविष्य और इसकी जरूरतों को समझने की कोशिश की:

- आपका नाम पहली बार किसी वेब सीरीज से जुडा है, इसका अनुभव कैसा रहा ?
- एक नये तरह का अनुभव रहा. बहुत एक्साइटिंग जर्नी रही. अभी तक फिल्म ही करता आया हूं. इसलिए दोनों के डाइमेंशन का फर्क समझ में आया. फिल्मों में जहां स्टार और प्लाट हावी होते हैं, वहीं वेब सीरीज में कैरेक्टर अहम हो जाता है. प्लाट को कैरेक्टर लेकर आगे बढ़ता है. सिनेमा और वेब सीरीज में यह एक बड़ा फर्क है.
- फिर भी प्लाट तो फिल्मों में भी होता है, इसकी अहमीयत से कैसे इनकार किया जा सकता है…
- फिल्मों में कैरेक्टर को खुलकर सामने आने का मौका नहीं मिलता है. आप कैरेक्टर को पूरे लेंथ, पूरी गहरायी के साथ नहीं दिखा सकते. फिल्मों में आपको डेढ़ से दो घंटे में सब दिखा देना होता है. मेरे लिए वेब सीरीज इसी लिए एक्साइटिंग है कि आप कैरेक्टर को पूरी तरह से खिलने और खुलने का मौका दे सकते हैं. एक कैरेक्टर के कई लेयर हो सकते हैं. सिनेमा में अगर आप बहुत ईमानदारी के साथ भी, कैरेक्टर के साथ होते हैं, तो भी मुश्किल से उसके एक या दो लेयर ही आप दिखा सकते हैं. वेब सीरीज में तो ऐसा है कि अगर आप एक कैरेक्टर के साथ प्ले कर रहे हैं, और उसके कई लेयर हैं, तो आप उसे दूसरे-तीसरे सीजन में उभार सकते हैं. इस नजरिये से देखें तो वेब सीरीज कैरेक्टर की जर्नी है. प्लाट उसके बाद वर्क करते हैं.

- इस वेब सीरीज को हम क्यो देखें, अगर सवाल किया जाये तो ?
- केके मेनन वेब सीरीज के लीड रोल में हैं. जिन्होंने रॉ ऑफिसर हिम्मत सिंह की भूमिका निभायी है. इस कैरेक्टर की अपनी एक व्याय…आवाज है. किसी को उसकी बात पर यकीन नहीं है. लेकिन वो फाइट कर रहा है. कहानी का मेन प्लाट दिसंबर 2001 में हुआ पार्लियामेंट पर अटैक है. जिसमें पांच लोगों का नाम आया था. और वे सभी मारे गये थे. पूरी दुनिया ने यही जाना. लेकिन इस अटैक में छठा आदमी भी इंवाल्व था. जिसे हिम्मत सिंह ने देखा था. लेकिन उसकी ये बात नहीं सुनी जाती है. उल्टे उस पर शक किया जाता है. उस पर ऑडिट कमिटी फार्म कर दी जाती है कि हिम्मत सिंह को मिलने वाला सरकारी पैसा कहां खर्च हो रहा है. इस लिहाज से हिम्मत सिंह की लड़ाई तीन स्तरों पर चलती है. एक उस छठे आतंकवादी को ढूंढ निकालने की. दूसरे उसकी फैमिली की. तीसरे इस ऑडिट कमिटी से निबटने की. आप इस सीरीज को सिर्फ इसी एक वजह से देख सकते हैं कि एक साधारण सा दिखने वाला आदमी किस तरह से अपने कंवीक्सन को बनाये रखता है. तमाम रुकावटों के बावजूद. और, जब आप किसी के कंवीक्सन पर शक करने लगते हैं तो उस आदमी का कंफिडेंस टूटता है. उसका कंवीक्शन टूटता है. और ये सब हिम्मत सिंह के साथ हो रहा है. इस सिचुएशन में अगर हमने हिम्मत सिंह की आवाज को लोगों तक पहुंचा दिया है, तो समझिये हम और हमारी टीम कामयाब है.
- बेसिकली ये सीरीज एक थ्रीलर है. और एक थ्रीलर को आम आदमी से जोड़ना एक अलग तरह का चैलेंज होता है. जैसे दीवार एक एक्शन और बहुत हद तक एक थ्रीलर फिल्म थी. लेकिन उसके हीरो की आवाज एक आम आदमी की आवाज बन जाती है. इस फिल्म की सफलता का एक बड़ा कारण शायद ये भी था. इस सीरीज में ऐसा क्या है जिससे एक आदमी इससे जुड़ा हुआ महसूस करे…
- देखिये हमारी लाइफ में कितने आइएएस, आइपीएस आते हैं. सभी तो नहीं न. इस कैटेगरी से जो भी कैरेक्टर हमारी लाइफ में आते हैं, वो फील्टर होकर आते हैं. तभी सोसायटी का बैलेंस बना रहता है. और इसीलिए वे हीरो होते हैं. इसी तरह इस सीरीज में एक कमिटेड रॉ अफसर की कहानी है. और रॉ हमारे देश का ऐसा विंग है, जिसके अफसर बहुत ज्यादा फील्टर होकर हमारे सामने आते हैं. सीरीज का मुख्य किरदार हिम्मत सिंह, इसी तरह का कैरेक्टर है. लेकिन वो खुद एक आम आदमी है. उसकी फैमिली है. उसके पर्सनल फीलीग्स हैं. और इन सबसे ऊपर उसका कंवीक्सन. फिर भी ये आदमी या कैरेक्टर या इसका कंवीक्शन एक आम आदमी से जुड़ा हुआ है. इस लिहाज ये कहानी एक आम आदमी से जाकर भी जुड़ती है. बिना अपने प्लाट से भटके.

- भारत में वेब सीरीज का आप क्या भविष्य देखते हैं ?
- भारत में अभी वेब सीरीज कल्चर की शुरुआत हो रही है. हमें बहुत कुछ सीखना है. अभी तक हम कहानी पर काम करते रहे हैं. लेकिन वेब सीरीज एक कंप्लीट उपन्यास पर काम करने जैसा है. चैप्टर बाइ चैप्टर. हॉलीवुड और दुनिया कुछ औऱ देशों में वेब सीरीज लंबी जर्नी तय कर चुके हैं. हमको अभी ये जर्नी तय करनी है. वेब सीरीज ने लेखकों और निर्देशकों को एक बड़ा प्लेटफार्म दे दिया है. अब देखना है कि इस ओपोरच्यूनिटी का इस्तेमाल हम और हमारे लेखक कहां तक कर पाते हैं. लेकिन भविष्य अच्छा दिखाई दे रहा है. छोटे शहरों के लोग भी अब वेब सीरीज को देख रहे हैं. औऱ गंभीरता से देख रहे हैं. इसके अलावा, हमारे पास बहुत सारी कहानियां होती हैं, बहुत सारे कैरेक्टर होते हैं, जिस पर हम फिल्म नहीं बना सकते थे. इसमें नक्सल, मेडिकल, फोरेस्ट आतंकवाद वगैरह हैं. लेकिन वेब सीरीज में इनको विषय बनाया जा सकता है. लेकिन शर्त ये है कि आपको क्वालिटी की राइटिंग करनी होगी. इस लेवल की रिसर्च करनी होगी. क्योंकि जब आप वेब सीरीज बनाते हो तो, आपको ग्लोबल स्तर पर कंपीट करना होता है. सिर्फ बॉलिवुड की हिंदी फिल्म से हमें कपींट नहीं करना होता है. और मुझे लगता है कि वेब सीरीज सिनेमा के सामानंतर एक अलग प्लेटफार्म बनकर उभर कर सामने आ रहा है.
- आपके आगे के प्रोजेक्ट ?
- फिलहाल नीरज पांडेय कैंप के लिए ही एक फिल्म है. उसकी स्क्रीप्टिंग लगभग खत्म होने को है. साथ ही स्पेशल ऑपरेशन का भी अगला सीजन आयेगा. हम प्लान कर रहे हैं.