
Akshay Kumar Jha
Ranchi: बात 2016 की है. समाज कल्याण विभाग में थर्ड और फोर्थ ग्रेड पर नौ लोगों की बहाली करनी थी. विभाग की तरफ से जिला प्रशासन को इन पदों को भरने के लिए कहा गया.
विभाग का निर्देश मिलने के बाद जिला प्रशासन की तरफ से एक विज्ञापन निकाला गया. विज्ञापन में साफ तौर बहाली आउटसोर्सिंग के जरिये किया जाना लिखा था.


साथ ही विज्ञापन में वेतनमान का भी उल्लेख था. बहाली के लिए काफी संख्या में आवेदन आए. आवदेनों को शॉर्टलिस्ट किया गया. चुने गए अभ्यर्थियों की स्किल टेस्ट के साथ लिखित में परीक्षा ली गयी. इंटरव्यू के बाद लोगों को योगदान देने को कहा गया.


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लेकिन योगदान आउटसोर्सिंग की बजाय सरकारी तरीके से परमानेंट कर्मी के तौर पर कर ली गयी. ऐसा करने से सभी नौ अभ्यर्थियों का करियर हमेशा के लिए खराब हो गया.
वो सभी नौ लोग जिला प्रशासन के लिए काम तो कर रहे हैं, लेकिन ना ही वो सरकारी मुलाजिम है और ना ही आउटसोर्सिंग के कर्मी. हाल यह है कि 26 महीने से उन्हें काम के एवज एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी गयी है.
परमानेंट कर्मी के जैसे वेतन भी उठाया
नवंबर 2016 में सभी नौ लोगों ने योगदान दिया. फरवरी 2017 में वेतन संबंधी अलॉमेंट आया. लेकिन सीपीएफ नंबर नहीं होने की वजह से उन्हें सैलेरी नहीं मिली. मार्च 2017 में उन्हें उनकी नौकरी की पहली सैलेरी मिली. लेकिन सभी को नहीं. नौ लोगों में बहाल हए एक ड्राइवर को सैलेरी नहीं मिली. बताया गया कि ड्राइवर की बहाली ऑनलाइन नहीं दिख रही है. इसलिए उसे सैलेरी नहीं मिल सकती.
इस बीच समाज कल्याण विभाग की तरफ से सभी की बहाली में आपत्ति दर्ज करायी गयी. विभाग की तरफ से सचिव ने लिखा कि बहाली में अनियमितता बरती गयी है. लेकिन जिला ने अपनी रिपोर्ट में लिखा की किसी तरह की कोई अनियमितता नहीं बरती गयी है.
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22 नवंबर 2017 को विभागीय सचिव ने एक बार फिर से जिला को लिखा कि एक महीने की आग्रिम नोटिस देकर सभी को सेवा मुक्त किया जाए. विभागीय आदेश आने के बाद भी जिला प्रशासन ने एक महीने पहले नोटिस देने के बजाय 25 दिंसबर 2017 को सभी को नोटिस थमाया और कहा कि 31 दिसंबर से उन्हें काम पर आने की जरूरत नहीं.
अब ना ही सरकारी और ना ही दैनिक भत्ता वाले कर्मी रहे
बहाल सभी लोगों के विरोध करने के बाद उन्हें फिर से नयी बहाली होने तक सेवा देने को कहा गया. लेकिन दैनिक भत्ते पर. इधर मामला हाईकोर्ट पहुंचा. लेकिन कोर्ट की तरफ से सरकार के फैसला पर स्टे नहीं लगा. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान तीन अप्रैल 2018 को सभी कर्मियों को फैसला आने तक सैलेरी देने को कहा. उन्हें जो सैलेरी पहले मिलती थी वो करीब 20,000 के आस-पास थी.
लेकिन दैनिक भत्ता के आधार पर उनकी एक महीने के सैलेरी सिर्फ 6000 हो गयी. लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद भुगतान नहीं किया गया है. अब 26 महीने बीतने को हैं. उन्हें किसी तरह का कोई भुगतान नहीं किया गया है. ऐसे में उनकी माली स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है.
पूरी बहाली प्रक्रिया जिला प्रशासन की तरफ से की गयी थी. ऐसे में इनके हालात के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार जिला प्रशासन ही है. आखिर कैसे प्रशासन ने कन्फ्यूजन में इन सभी नौ लोगों का करियर खराब कर दिया. अब इसका खामियाजा कैसे भरा जा सकता है.
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