
Pravin kumar
Ranchi : ‘मैं आप से मिलने रांची आ रहा हूं’ लिखे हुए पोस्टरों और होर्डिंग से रांची के एक समुदाय विशेष की बसाहट वाले हिस्सा पट गया है. यह ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) के झारखंड विधानसभा चुनाव में सक्रियता से भाग लेने की तैयारी का आहट है.
संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी इसी सिलसिले में राज्य के दौरे पर आ रहे हैं. वे यहां अपने संगठन के लिए जमीन तलाशेंगे. ओवैसी मंगलवार को वे कई कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे.
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कई राजनीतिक दलों में बेचैनी
विधानसभा चुनाव को देखते हुए राज्य में राजनीतिक तापमान बढ़ता जा रहा है. इसी कड़ी में ओवैसी ने रांची आने का ऐलान किया. विधानसभा चुनाव के मात्र ढाई महीने पहले ओवैसी की इस यात्रा को लेकर कई राजनीतिक दलों में बेचैनी भी है. हालांकि वे अपनी बैचेनी प्रकट नहीं कर रहे हैं.
इसके साथ ही यह स्पष्ट हो गया हे कि ओवेसी की पार्टी झारखंड विधानसभा चुनाव में उतरेगी. राजनीतिक जानकार मानते है कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन को राज्य में चुनावी जीत की संभावना तो नहीं दिखती है लेकिन इस पार्टी से विपक्षी दलों को नुकसान हो सकता है. हालांकि यह कहना जल्दबाजी है. लेकिन इस अनुमान को खारिज नहीं किया जा सकता है.
मुस्लिम युवाओं में राजनीतिक निराशा
लोकसभा चुनाव के बाद से ही मुस्लिम युवाओं में राजनीतिक निराशा का आलम है. बातचीत में यह उभर कर आती भी है. विपक्षी दलों की धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धता को ले कर भी कई तरह के सवाल उनके मन में हैं.
विपक्षी दल जिस तरह हार के शिकार हुए हैं उसका असर अनेको वोट समूहों पर भी पडा है. लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही कुछ युवा यह संदेश दे रहे हैं कि आवेसी का झारखंड की राजनीति में आना जरूरी है.
ऐसा नहीं है कि सेकुलर माने जाने वालें वोटरों के भीतर ओवैसी को लेकर व्यापक सहमति है. अनेक जानकार झारखंड विधानसभा चुनाव में ओवैसी का उतरना भाजपा की रणनीति और राजनीति का ही हिस्सा बताते हैं. इससे होने वाले वोट शेयर का विभाजन भाजपा को ही लाभ पहुंचायेगा.
लेकिन एक तबके की धारणा है कि विपक्ष के अधिकांश दल अपनी प्रतिबद्धताओं पर खरे नहीं उतरे हैं और न ही वे मुखरता से कमजोर तबकों के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं.
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ओवैसी की पार्टी 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी उतरी थी
2015 के बिहार विधानसभा के चुनाव में भी ओवैसी चुनावी राजनीति में उतरे थे लेकिन वोटरों ने उनके तमाम अनुमानों को खारिज कर दिया था. आवेसी के उम्मीदवार बड़े पैमाने पर वोट बांटने में कारगर साबित नहीं हुए थे.
लोकसभा 19 के चुनाव में भी किशनगंज संसदीय सीट पर ओवैसी के उम्मीदवार की काफी चर्चा थी. पार्टी भले चुनाव हार गयी लेकिन 3 लाख से ज्यादा वोट हासिल करने में वह कामयाब रही. वहां कांग्रेस उम्मीदवार की जीत का अतंर कम किया.
महाराष्ट्र के पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार कामयाब हुए और लोकसभा चुनाव में दलित नेता प्रकाश अंबेडकर कें साथ मोरचा बना कर एक सीट जीत लिया. हालांकि प्रकाश अंबेडकर की पार्टी को आवेसी के कारण कोई लाभ नहीं मिला. लेकिन इस गठबंधन ने कांग्रेस-एनसीपी के वोट काटे और भाजपा के लिए जीत की राह आसान की.
विपक्ष के लिए हो सकता है घातक
वर्तमान राजनीतिक संदर्भ में ओवेसी की पार्टी को विपक्ष के लिए हलके में लेना घातक कदम साबित हो सकता है.
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन के झारखंड अध्यक्ष हब्बान मलिक कहते हैं, वर्तमान सरकार के कार्यकाल में आदिवासी दलितों और अल्पसंख्यकों का दमन बढ़ा है जिसका प्रतिवाद आदिवासी और अल्पसंख्यकों के वोट पाने वाली पार्टियों ने नहीं किया है. ऐसे में पार्टी विधानसभा चुनाव में वोट बैक की राजनीति को खरिज करते हुए आवाम की अवाज बनेगी.
पार्टी ने 20 विधानसभा सीट को किया है टारगेट
पार्टी के द्वारा पाकुड़, साहिबगंज, जामताडा, महेशपुर, बरहेट, मधुपुर, गांडेय, राजधनवार, बगोदर, बरकट्ठा, सिंदरी, हटिया, कांके, पाकी, बिश्रामपुर, जमशेदपुर वेस्ट, इचागढ़, लोहरदगा, सिसई, गुमला, खिजरी विधानसभा को टारगेट किया है.
क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार
झारखंड आंदोलनकारी व राजनीतिक जानकार बसीर अहमद कहते हैं, आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव के मद्देनजर असदउद्दीन ओवैसी का झारखंड दौरा कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा सकता है. इस दौरे से उनकी पार्टी AIMIM को राजनितिक तौर पर कितना लाभ मिलेगा यह कहना मुश्किल है पर यदि उनकी पार्टी झारखंड में चुनाव लड़ती है तो झारखंड के सेकुलर पार्टियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
और यदि झारखंड की सेकुलर पार्टिया AIMIM को अपने गठबंधन में शामिल भी कर लें तब भी उन्हें गैरमुस्लिम वोटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है.
हां, किसी हद तक मुस्लिम बहुल इलाके के आरक्षित सीट से यदि कोई आदिवासी या दलित नेता या पार्टी अपने निजी जनाधार के बूते AIMIM से गठबंधन करता है तो वहां चुनावी नतीजे चौकाने वाले हो सकते हैं.
वैसे उत्तर भारत बिहार/यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में AIMIM की भूमिका और पहचान केवल हस्ताक्षेप कर वोट काटने की ही रही. मॉब लिंचिंग की हालिया घटनाओं में सेकुलर राजनीतिक दलों की उदासीनता ने झारखंड की राजनीति में AIMIM के लिये भी कुछ जगह जरूर बना दी है.
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