
Saurav Singh
Ranchi: झारखंड की कमान हेमंत सोरेन के हाथ में है और राज्य की जनता ने गठबंधन को पूर्ण बहुमत दिया है. इस सरकार से उम्मीदें अपार हैं. लेकिन हेमंत सरकार के लिए नक्सलवाद बड़ी चुनौती हो सकती है. नक्सलवाद पर नकेल कसना हेमंत सोरेन सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी. नक्सलवाद राज्य की पुरानी समस्या रही है. कई उग्रवादी संगठन समय-समय पर झारखंड में अपनी मौजूदगी दिखाने का प्रयास करते आ रहे हैं.
नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म करने के लिए राज्य सरकार को बड़े कदम उठाने होंगे. गौरतलब है कि इससे पहले कि रघुवर सरकार ने कई बार राज्य से नक्सलवाद को खत्म करने का दावा किया और राज्य में नक्सली भले कमजोर पड़ गये. लेकिन नक्सलवाद को खत्म करने में रघुवर सरकार सफल नहीं रही. राज्य के अभी 13 जिले अतिनक्सल प्रभावित हैं.
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कई दशकों से जारी है नक्सल हिंसा
झारखंड में नक्सलवाद के अंतर्गत आने वाले जिले में हिंसा पिछले कई दशकों से जारी है, राज्य के 13 जिलों को प्रभावित करने वाला नक्सलियों का यह इलाका आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है. इन इलाकों में नक्सली अपहरण, फिरौती, डकैती, बम विस्फोट,निर्ममता से हत्याएं, अवैध वसूली, विकास को बाधित करने की कोशिशें कर रहे हैं.
रघुवर सरकार नक्सल मुक्त झारखंड का दावा हुआ फेल
रघुवर सरकार के द्वारा अपने कार्यकाल में कई बार राज्य से नक्सलवाद का सफाया करने का दावा किया गया. लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल सकी. हालांकि इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस दौरान नक्सली संगठन कमजोर पड़ गए.
राज्य के तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय ने भी 2016 में घोषणा की थी कि दिसंबर 2017 में पूरे झारखंड राज्य से नक्सलियों का सफाया हो जाएगा. जबकि ये मुमकिन नहीं हो पाया और ये डेडलाइन एक साल बढ़ गयी.
इसके बाद साल 2017 में राज्य को उग्रवाद से मुक्त कराने का दावा करने वाले राज्य के पुलिस महानिदेशक डीके पांडेय ने दावा किया कि साल 2018 के अंत तक राज्य को पूरी तरह से नक्सल मुक्त कर दिया जायेगा. लेकिन ये भी दावा फेल हो गया. झारखंड में अभी भी नक्सली संगठन समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं.
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देश के 30 नक्सल प्रभावित जिलों में 13 जिले झारखंड के
झारखंड में भले नक्सली कमजोर पड़ गए हैं और झारखंड पुलिस लगातार नक्सलियों के खात्मे की अभियान चला रही है. इसके बावजूद भी देश के 30 नक्सल प्रभावित जिलों में 13 जिले झारखंड के हैं, जो सर्वाधिक नक्सल प्रभावित जिलों की सूची में हैं.
सर्वाधिक नक्सल प्रभावित जिले के मामले में झारखंड पहले स्थान पर है, तो छत्तीसगढ़ के 8 जिले सर्वाधिक नक्सल प्रभावित जिलों के साथ दूसरे स्थान पर है. झारखंड के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित जिलों में खूंटी, गुमला, लातेहार, सिमडेगा, पश्चिम सिंहभूम, रांची, दुमका, पलामू, गढ़वा, चतरा, लोहरदगा, बोकारो और सरायकेला हैं.
झारखंड में बचे हैं 550 नक्सली
झारखंड में अब प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी, टीपीसी और पीएलएफआई कमजोर पड़ गए हैं. नक्सली वारदातों में कमी आयी है. प्रभावित कई इलाकों से नक्सलियों के पैर उखड़ गए हैं. पिछले कुछ वर्षों में पुलिस की ओर से लगातार चलाए गए अभियान की वजह से ऐसा संभव हुआ है.
झारखंड पुलिस के अनुसार, राज्य में अब मात्र 550 माओवादी बचे हैं. बचे 550 माओवादियों के खात्मे के लिए भारी संख्या में सुरक्षा बल लगे हुए हैं. इनमें सीआरपीएफ की 122, आईआरबी की 5 और झारखंड जगुआर की 40 कंपनी फोर्स लगी हुई है.
पिछले एक महीने में नक्सलियों ने दिया 16 घटनाओं को अंजाम
झारखंड में नक्सलियों के खात्मे के लिए सुरक्षाबलों के द्वारा लगातार अभियान चलाया जा रहा है. लेकिन इसके बावजूद झारखंड में सक्रिय नक्सली सुरक्षाबलों के लिए चुनौती बने हुए हैं. झारखंड में हर दूसरे दिन नक्सली औसतन एक घटना को अंजाम दे रहे हैं.
पिछले एक महीने की बात की जाये तो झारखंड में नक्सली और उग्रवादी संगठनों के द्वारा 16 हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया जा चुका है. झारखंड के कई ऐसे जिले हैं, जहां नक्सली कमजोर हो चुके हैं. लेकिन अब इस ब्लास्ट के बाद वहां फिर से नक्सली अपनी सक्रियता बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. गौरतलब है कि इस वर्ष पुलिस और नक्सली के बीच हुए मुठभेड़ में 14 जवान शहीद हो चुके हैं और 26 नक्सली मारे गये हैं.
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झारखंड के क्षेत्रों में अपने पुराने सहयोगियों से संपर्क कर रहे हैं नक्सली
जानकारी के अनुसार, हाल के वर्षों में नक्सली झारखंड में कमजोर हुए अपने संगठन को दोबारा मजबूत करने के लिए फिर से सक्रिय हो रहे हैं. पिछले एक महीने के अंदर जिस तरह से नक्सलियों की सक्रियता बढ़ी है, उससे साफ जाहिर हो रहा है कि नक्सलियों ने अपनी सक्रियता को बढ़ाना शुरू कर दिया है.
सूत्रों के मुताबिक, नक्सली अपने संगठन को दोबारा मजबूत करने के इरादे से झारखंड के क्षेत्रों में अपने पुराने सहयोगियों से संपर्क करना शुरू कर रहे हैं. एक ओर पुलिस नक्सलियों के खिलाफ अभियान तेज करने और उन्हें आर्थिक क्षति पहुंचाने की कवायद कर रही है.
वहीं नक्सली भी अब टूट चुके संगठन को फिर से संगठित करने के लिए लगातार वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. इसके पीछे नक्सलियों का मुख्य मकसद लेवी वसूलना है, ताकि लेवी के पैसे से वे फिर से संगठन को खड़ा कर सकें.
झारखंड के इन जिलों में है सक्रिय माओवादियों का दस्ता
गढ़वा, लातेहार व गुमला के सीमावर्ती क्षेत्र में विमल यादव और बुद्धेश्वर यादव का दस्ता सक्रिय है. चाइबासा के सरायकेला, छोटानागपुर और गोयलकेरा में माओवादी पोलित ब्यूरो सदस्य व एक करोड़ के इनामी किशन दा उर्फ प्रशांत बोस, महाराजा प्रमाणिक, अनमोल उर्फ समर जी, मेहनत उर्फ मोछू, चमन उर्फ लंबू, सुरेश मुंडा व जीवन कंडुलना का दस्ता सक्रिय है.
गिरिडीह-जमुई और कोडरमा-नवादा बॉर्डर पर सैक सदस्य करुणा, पिंटू राणा व सिंधू कोड़ा का दस्ता सक्रिय है. हजारीबाग-चतरा-गया बॉर्डर पर माओवादी रिजनल कमेटी सदस्य इंदल गंझू और आलोक का दस्ता सक्रिय है. बोकारो जिला के बेरमो अनुमंडल के नक्सल प्रभावित चतरोचट्टी और जगेश्वर बिहार थाना के जंगली क्षेत्र में एक करोड़ का इनामी माओवादी नेता मिथिलेश सिंह दस्ता सक्रिय है.
औरंगाबाद,पलामू,गया, चतरा बॉर्डर पर सैक सदस्य संदीप दस्ता, संजीत और विवेक का दस्ता सक्रिय है. इसके अलावा घाटशिला,पटंबा,पुरुलिया सीमा पर माओवादी पोलित ब्यूरो सदस्य असीम मंडल और मदन का दस्ता सक्रिय है.
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