
Ranchi. राजधानी में भी कोरोना संक्रमितों को मरने के बाद अंतिम संस्कार के लिये अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है. शनिवार की सुबह 10 बजे तक रांची में 19 कोरोना पॉजिटिव मरीजों के शव अपनी मुक्ति के इंतजार में 5 दिनों से रखे हुए थे. प्राप्त सूचना के अनुसार 19 शव अलग-अलग अस्पतालों में पड़े हैं. इनमें रिम्स में 15, मेडिका में 3 और सैम्फोर्ड में 1 के होने की बात कही जा रही है. ये सभी अपनी मुक्ति की राह देख रहे हैं.
दो उदाहरण देखें…
केस 1: मधुपूर, देवघर का एक परिवार जुलाई के तीसरे सप्ताह में रांची आया. घर की 53 साल की एक महिला को सांस लेने में दिक्कत होने पर मेडिका अस्पताल में भर्ती कराया गया. कोरोना पॉजिटिव की जानकारी परिजनों को दी गयी. पांच दिनों तक इलाज का तामझाम हुआ. इसके बाद बेटे को उसके मां के मरने की खबर दी गयी. चूकि हरमू, रांची के शवदाह गृह में गैस बर्नर खराब पड़ा था. सो डेड बॉडी 3 दिनों के बाद ही मिल सकी. गैस बर्नर के इंतजार में तीन दिनों बाद ही बेटा अपनी मां को मुक्ति दिला सका.


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केस 2: 12 अप्रैल को हिंदपीढ़ी, रांची में रहने वाले एक परिवार के एक सदस्य की मौत कोरोना संक्रमण के कारण हो गयी. इसके बाद उसके डेड बॉडी को बरियातू कब्रिस्तान में दफनाने की तैयारी जिला प्रशासन करने लगा. पर वहां विरोध शुरू हो गया. बाद में रातू रोड के कब्रिस्तान या जुमार नदी पुल के पास इसके लिये प्रशासन ने योजना बनायी. यहां भी लाश को जगह नहीं दी गयी. अंत में रात को 01.15 पर प्रशासन हिंदपीढ़ी के ही एक बच्चा कब्रिस्तान में उसे दफनाने में कामयाब हुआ.
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ये बानगी है कि कोरोना से पीड़ित मरीजों को मौत के बाद भी मुक्ति आसान नहीं है. यह ऐसी आपदा है जिसमें अस्पताल में ही संक्रमित शख़्स की मौत हो गई. पर ना तो उसके रिश्तेदार उसे आख़िरी बार देख पाए और ना मरीज़ ही अंतिम समय में अपनों को देख सका. ऐसे में ये उन रिश्तेदारों के लिए किसी सदमे से कम नहीं होता है कि वो अपने पारिवारिक सदस्य के अंतिम संस्कार में शामिल भी नहीं हो सके. ऐसे हालात में अपनों की डेड बॉडी को मुक्ति दिलाने का दर्द तो और भी तकलीफदेह है.
खुले में जलाने की जगह अब तक नहीं
शवदाह गृह, हरमू के एक गैस बर्नर से 4 जून से कोरोना पॉजिटिव डेड बॉडी को जलाया जा रहा है. जानकारी के अनुसार, अब तक 45 केस यहां रिकॉर्ड किये जा चुके हैं. मारवाड़ी सहायक समिति के अनुसार शुरुआती दौर में औसतन हर दिन 1-2 केस यहां आते थे. पिछले 10-13 दिनों से यहां हर दिन 4-4 डेड बॉडी को जलाया जा रहा है. पर डेथ केस की संख्या बढ़ने से यह मुश्किलों भरा काम साबित होता जा रहा है. रांची में ही कुछ ऐसे केसेज सामने आ रहे हैं, जिनकी डेड बॉडी का निपटारा अभी तक नहीं किया जा सका है.
कोरोना संक्रमित और पॉजिटिव केस की स्थिति में डेड बॉडी को जिला प्रशासन की निगरानी में ही जलाना या दफनाया जाना है, पर रांची के हरमू में स्थित एकमात्र गैस बर्नर पर ही सभी आस लगाये बैठे हैं. तीन दिनों पहले यह बर्नर भी खराब हो गया था. इससे स्थिति और मुश्किल हो गयी है. खुले में लकड़ियों के ढेर पर लाश को जलाने के लिये रांची जिला प्रशासन रांची टाटा रोड में बुंडू के आसपास एक जगह की तलाश कर रहा था. बात नहीं बन पायी है. रांची नगर निगम घाघरा के पास एक इलेक्ट्रिक शव दाह गृह है, जिसे चालू किये जाने का सोचा ही जा रहा है.
3 दिनों तक बना रहता है खतरा
कोरोना वायरस कोई वैक्सीन अभी भी नहीं बन सका है. सिर्फ बचाव ही एकमात्र तरीका है, ऐसे में किसी व्यक्ति के कोरोना संक्रमण से मौत के बाद उसके डेड बॉडी को जल्दी से जल्दी निपटा देने की कोशिश हर जगह की जाती है. असल में मरने के बाद भी 3-4 दिनों तक मरने वाले के शरीर में वायरस का असर बने रहने की बात कही जाती रही है. यानी इतने दिनों के भीतर जितनी जल्दी हो, डेड बॉडी को जला दें या दफना देना ही ठीक है.
क्या कहते हैं एसडीओ
न्यूजविंग ने एसडीओ रांची से रिम्स में पड़े डेड बॉडी को जलाने या दफनाने के लिये इंतजार में पड़ी लाशों के बारे में जानकारी मांगी. उन्होंने केवल इतना बताया कि रिम्स में 15 कोरोना पॉजिटिव डेड बॉडी पड़े होने की सूचना सही नहीं है. किसी ऐसे मामले की सूचना सामने आते ही मृतक के धर्म के अनुसार, अंतिम क्रिया कर्म प्रावधानों के अनुसार करा दिया जा रहा है.
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