
Akshay Kumar Jha
Ranchi/Dhanbad : क्या समरेश सिंह की ढलती उम्र के साथ उनकी राजनीतिक विरासत भी ढल रही है? समरेश सिंह को जाननेवालों के जेहन में अक्सर यह सवाल कौंधता है. लेकिन, आगामी लोकसभा चुनाव के कौतूहल से जो जवाब निकलकर आ रहा है, वह है ‘नहीं’. क्योंकि, उनके तीसरे और सबसे छोटे बेटे संग्राम सिंह अब राजनीति में दो-दो हाथ करने को तैयार हैं. एमएनसी की नौकरी में करीब 15 साल तक अपनी सेवा देनेवाले XLRI से MBA संग्राम सिंह ने राजनीति की अपनी पहली चाल भी चल दी है. अपने तेवर और तरीके के लिए जाने जानेवाले समरेश सिंह के जैसे ही संग्राम सिंह का एक अलग स्टाइल है. उनके पिता के धुर विरोधी कोयलांचल के जाने-माने परिवार सिंह मैंशन से उन्होंने हाथ मिलाया है. जिस परिवार का समरेश सिंह ने हमेशा से विरोध किया, उस परिवार से हाथ मिलाने के मायने राजनीति में कई तरह से निकाले जा रहे हैं. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में धनबाद, सिंदरी और चंदनकियारी सरीखे इलाकों में सिंह मैंशन के सिद्धार्थ गौतम और उनका परिवार संग्राम की मदद करेंगे. रविवार को एक औपचारिक मुलाकात भी संग्राम और सिद्धार्थ ने की है. मुलाकात के दौरान संग्राम सिंह की पत्नी श्वेता उनके साथ थीं. वहीं, सिंह मैंशन के परिवार ने संग्राम की काफी आवभगत की.


कांग्रेस से टिकट का दावा, लेकिन संग्राम ने कहा पिताजी जो कहें




न्यूज विंग के एक सवाल कि आप लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं या नहीं, उन्होंने कहा कि जैसा पिताजी का आदेश होगा, वैसा करेंगे. लेकिन, गौर करनेवाली बात यह है कि संग्राम सिंह चार सालों से मजदूर की राजनीति में सक्रिय हैं. वह क्रांतिकारी इस्पात मजदूर संघ के महामंत्री हैं. कांग्रेस के इंटक में महामंत्री के पद पर हैं. इनकी पत्नी श्वेता सिंह यूथ कांग्रेस की प्रदेश उपाध्यक्ष हैं. ऐसे में यह कयास लगाने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि संग्राम सिंह किस पार्टी से लोकसभा के टिकट के लिए प्रयासरत हैं. उन्होंने टिकट के लिए कांग्रेस के ददई दुबे, रणविजय सिंह और प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार को पछाड़ने की रणनीति पर काम करना भी शुरू कर दिया है.
राजनीति में आकर देश के लिए कुछ करूं, इसलिए छोड़ी मोटी सैलेरी वाली नौकरी
एयरटेल, विप्रो जैसी एमएनसी की मोटी सैलेरी वाली नौकरी छोड़कर संग्राम सिंह अब राजनीति में दो-दो हाथ करने आये हैं. उन्होंने न्यूज विंग से कहा कि 15 साल की नौकरी छोड़कर आया हूं. नौकरी के दौरान विदेशों में भी रहने का काफी मौका मिला है. ऐसे में जब इतनी मोटी सैलेरी वाली नौकरी छोड़कर आया हूं, तो कुछ करने ही आया हूं न. समाज और देश को कुछ नहीं दे सका, तो बेकार है सबकुछ. पिता की पहचान पर कहा, “उनकी अपनी एक पहचान है. लेकिन, राजनीति में कुछ करने के लिए आपकी अपनी भी एक पहचान होनी जरूरी है. मैं पिछले चार साल से यूनियन की गतिविधि में लगा हुआ हूं. बोकारो, पुरूलिया और धनबाद में काफी काम किया है. मेरा पूरा फोकस अभी इसी पर है. बाकी पिताजी का जो आदेश होगा.”
राजनीति को क्यों चुना
इसके जवाब में संग्राम सिंह कहते हैं, “पढ़े लिखे लोग अपने में लगे रहेंगे, तो देश का सबसे जरूरी काम जो है लॉ बनाने का, वह कौन करेगा. सिर्फ घर में बैठकर गाली देने से तो नहीं चलेगा. मैंने अपनी नौकरी अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद ही छोड़ी है. But not to be a rebel. सिस्टम में सुधार लाना है. जब तक जानकार लोग राजनीति में नहीं आयेंगे, तब-तक सुधार कैसे आयेगा. पब्लिक को रिप्रेजेंट करना एक अच्छी बात है, लेकिन रिप्रेजेंट करने की कैपेसिटी भी तो होनी चाहिए. सिर्फ सोचते रहने से ब्यूरोक्रेसी हावी रहेगी और ऐसा हुआ, तो डेमोक्रेसी ध्वस्त हो जायेगी.
मैं बेरोजगारी की समस्या को विस्थापितों से जोड़कर देखता हूं
पिता ने विस्थापितों की राजनीति की, आप क्या करेंगे? इसके जवाब में संग्राम सिंह ने कहा, “पहली बात तो है कि मेरे पिता ने कभी विस्थापित की राजनीति नहीं की है. पापा ने हमेशा से मजदूरों की राजनीति की है. मजदूरों की राजनीति में बेरोजगारों की समस्या आती है. मैं बेरोजगारी की समस्या को विस्थापितों से जोड़कर देखता हूं. वैसे भी अगर किसी ने किसी को विस्थापित किया है, तो कमाई का जरिया देना पड़ेगा.” धनबाद लोकसभा सीट में नयापन आ पायेगा क्या? न्यूज विंग के इस सवाल के जवाब में संग्राम ने कहा, “बदलना तो पड़ेगा. नहीं बदलियेगा, तो प्रॉब्लम है बॉस. इसी से अकाउंटेबिलिटी आती है. आप देख लीजिये, जहां पर अल्टरनेट गवर्नमेंट आती रही है, वहां विकास की रफ्तार सही होती है. तमिलनाडु इसका उदाहरण है.”
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