
Ranchi : राज्य में घरेलू हिंसा का खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है. इससे संबंधित कानूनी प्रावधान होने के बावजूद महिलाओं को राहत नहीं है. कोढ़ में खाज यह है कि एक तो उन्हें घर में मारपीट का सामना करना पड़ रहा है. शारीरिक, मानसिक चैलेंज को फेस करना मजबूरी हो रही है. ऊपर से महिला आयोग में पसरे सन्नाटे के कारण वे न्याय की फरियाद के लिए भटकने को विवश हैं. अब स्थिति यह है कि पिछले तीन सालों में (2018-2020) की अवधि में झारखंड देश के उन तीन टॉप राज्यों में शामिल हो गया है, जहां घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण एक्ट के तहत 218 से अधिक केस रजिस्टर हो चुके हैं.
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देश में क्या हैं हालात


पिछले दिनों सदन में महिलाओं के प्रति अपराध मामले और घरेलू हिंसा एक्ट के तहत देशभर में रजिस्टर्ड मामलों की जानकारी सांसदों ने मांगी थी. इस पर महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति जुबिन इरानी ने बताया था कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) भारत में अपराध नामक अपने प्रकाशन में महिलाओं के विरुद्ध अपराध सहित अन्य मामलों पर डाटा संकलित और प्रकाशित करता है.


एनसीआरबी द्वारा प्रकाशित डाटा के मुताबिक 2020 के दौरान महिलाओं के विरुद्ध 3,71,503 अपराध रिकॉर्ड किये गये. इसमें से घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण एक्ट 2005 के तहत रजिस्टर्ड 446 (2020 में) मामले हैं.
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महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले में सबसे अधिक केस मध्य प्रदेश में 2018 से 2020 के दौरान रजिस्टर्ड हुए. 2018 में 275, 2019 में 248 और 2020 में 180 केस. इसी तरह दूसरे स्थान पर केरल रहा. वहां 2018 में 175, 2019 में 194 और 2020 में 165 केस रजिस्ट किये गये. तीसरे पायदान पर झारखंड था जहां क्रमशः 79, 73 और 66 केस दर्ज हुए.
इस अवधि में देश भर में 2018 में 579, 2019 में 553 और 2020 में 446 केस रिकॉर्ड हुए. टॉप के तीन राज्यों को छोड़ दें तो महाराष्ट्र में तीन सालों में 23, असम में 13 केस (2018 में) दर्ज हुए थे.
इसी तरह अन्य राज्यों में से किसी में भी 2018 से 2020 की अवधि में 10 केस भी नहीं आये. कई राज्यों में तो एक भी मामले पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हुए.
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निःशक्त है महिला आय़ोग
अभी झारखंड में स्थिति यह है कि यहां महिला आयोग के लिए अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति का मामला सालभर से भी अधिक समय से अटका पड़ा है. जून, 2020 में आयोग की अध्यक्ष कल्याणी शरण रिटायर हो गयीं. एक सदस्य तक नहीं हैं. इसके बाद से वहां खामोशी पसरी है. इसके फेर में आयोग से न्याय की आस में राज्य की महिलाएं दर-बदर भटक रहीं हैं.
आयोग की चौखट पर पहुंचने पर भी उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. पिछले वर्ष (2021) जून से लेकर अब तक 1700 से अधिक केस आयोग के पास रजिस्टर्ड हो चुके हैं.
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