
Ranchi : बालिका दिवस के बहाने फिर से बच्चियों के उत्थान, कल्याण की बातें हो रही हैं. सरकार से लेकर राजनीतिक, सामाजिक संगठन अपने अपने स्तर से बालिका कल्याण की बात कर रहे हैं. पर जमीनी हकीकत कड़वी है. अभी से नहीं, राज्य 21 साल पहले से ही. राज्य में अब भी बड़ी संख्या में नाबालिग बच्चियां कच्ची उम्र में ही मां बनने या गर्भधारण को विवश होती हैं. एनएफएस-5 (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5, 2019-2021) की मानें तो ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली बच्चियों में से 11.2 फीसदी को बालिग होने से पहले (15-19 साल) ही गर्भधारण करना पड़ा या मां बनना पड़ा. इसकी तुलना में शहरी क्षेत्र में रहने वाली 5.2 फीसदी नाबालिग को इस हादसे से गुजरना पड़ा है.
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एनएफएस-4 की तुलना में सुधार


एनएफएस-4 (2015-16) के दौरान हुए सर्वे में झारखंड में ओवरऑल 12 फीसदी नाबालिग बच्चियों को गर्भधारण या मातृत्व धारण करने के दौर से गुजरना पड़ा था. इसकी तुलना में एनएफएस-5 के दौरान इसमें कमी दिखी. इसमें 3 फीसदी तक की कमी आयी. यानि इस सर्वे में 9.8 फीसदी नाबालिग लड़कियों को गर्भधारण करना पड़ा था.




सर्वे में शामिल 20-24 आयु वर्ग की 32.2 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उनकी शादी 18 वर्ष से भी कम आयु में हो गयी थी. ग्रामीण क्षेत्र में यह आंकड़ा 19.4 फीसदी का था, जबकि शहरी क्षेत्र में 36.1 फीसदी.
एनएफएस-4 के दौरान ओवरऑल आंकड़ा 37.9 फीसदी का रहा था. कहा जा सकता है कि एनएफएस-4 की तुलना में अगले एनएफएस सर्वे में इसमें करीब 5 फीसदी की कमी दिखी.
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कब हुआ था सर्वे
ये सर्वे 20 जनवरी 2020 से 21 मार्च 2020 के बीच किये गये थे. इसके बाद कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन लगा और सर्वे काम प्रभावित हुआ. जिसके बाद 5 दिसंबर 2020 से 18 अप्रैल 2021 के दौरान सर्वे हुआ.
इस दौरान डीआरएस (डेवलमेंट एंड रिसर्च सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड) की ओर से 22863 घरों को सर्वे में शामिल किया गया. 26,495 महिलाओं और 3414 पुरुषों से जानकारी के आधार पर सर्वे रिपोर्ट को तैयार किया गया था.
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