
Ranchi: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने आज कहा कि हमें अतीत के प्रति गौरव, वर्तमान की चिंता और भविष्य की आकांक्षाओं को लेकर कार्य को आगे बढ़ाना होगा. इस निमित्त समाज को जागृत रखना होगा. रांची महानगर द्वारा रांची के फुटबॉल ग्राउंड में आयोजित महानगर एकत्रीकरण में उपस्थित स्वयंसेवकों व नागरिक बंधु भगिनी को अपने सम्बोधन में कहा कि अपना समाज भिन्न भिन्न भेदों के कारण असंगठित हुआ था. इसका लाभ अंग्रेजों ने लिया. फुट डालो शासन करो की नीति को यहां लागू किया. इस तरह के उदाहरण कई बार हमें देखने को मिले. पानीपत का युद्ध इसका उदाहरण है. जो समाज जाति, भाषा, धर्म, मत, सम्प्रदाय में विभक्त हो, उस समाज की नियति ऐसी ही होती है. महानगर एकत्रीकरण में मंच पर होसबले के साथ क्षेत्र संघचालक देवव्रत पाहन एवं महानगर संघचालक पवन मंत्री भी थे. इस अवसर पर क्षेत्र से मोहन सिंह, रामनवमी प्रसाद, अजय कुमार, प्रेम अग्रवाल के अलावा सच्चिदानंद लाल अग्रवाल, अशोक श्रीवास्तव, संजय कुमार, राकेश लाल, गोपाल शर्मा, राजीवकान्त सहित सैकड़ों गणमान्य बन्धु भगिनी भी उपस्थित थे.

लाल किला पर तिरंगा फहराना असल आजादी नहीं
दत्तात्रेय ने कहा कि अपने समाज मे अनेक चुनौतियाँ हैं. जाति का, भाषा का, मत व सम्प्रदाय का, भ्र्ष्टाचार का. हमारा नागरिक आचरण कैसा हो. यह देखना होगा. लाल किला पर तिरंगा फहरा लेना ही असल आज़ादी नहीं है. इस समाज का जो आत्मतत्व है, वह कहां विलीन है, यह समझना होगा. देश एक है, भारत एक है. आज से नहीं, 1947 से भी नहीं बल्कि उसके भी हज़ारों वर्षों से भी पहले भारत एक था, एक राष्ट्र था. यहां की संस्कृति ने भारत को एक राष्ट्र बनाया है. उस संस्कृति का नाम है हिन्दू संस्कृति. भारत मे विविधता है किंतु इस विविधता में अलगाव नहीं है. हिन्दू भाव को हम जब जब भूले हैं, यह राष्ट्र घोर विपदा को झेला है. इसी हिंदुत्व को भूलने के कारण हमारे भाई टूटे, हमारा धर्मस्थल टूटा और हमसे हमारा भूभाग टूटा. जब हमारी संस्कृति का भाव कहीं भी ऊपर उठता है तो हर हिन्दू का मस्तक गर्व से ऊपर उठता है. आज भारत ऊपर उठ रहा है.
आज विश्व के लोग भारत को, भारतीयों को, भारत की बात को गौर से सुनता है. आज विश्व की मानवता भारत की ओर आशा भरी नजरों से देखती है. पिछले कुछ वर्षों में भारत ने मानवता से भरी राह पर मज़बूती से चलना प्रारम्भ कर दिया है. कोविड जैसे महामारी के समय विश्व ने हमारे आचरण, हमारे व्यवहार और वसुधैव कुटुम्बकम के भाव को देखा. आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका की हो या वैक्सीन की बात हो, भारत ने निस्वार्थ सहयोग कर विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया. भारत यदि शक्तिशाली होता है तो दुनिया का मङ्गल करने के भाव के चलते. विश्व के किसी कोने में रहनेवाले लोगों के बारे में सोचने, मदद करने एवं संकट से उबारने के लिए आगे बढ़कर भी यह कार्य होता है.
भारत ने कभी किसी देश को गुलाम करने के लिए नहीं बल्कि सद्भाव के लिये, ज्ञान के लिए, योग के लिए, शिक्षा के लिए ही दूसरे देशों में अपना प्रतिनिधि भेजा है. आज भी भारत के लाखों लोग दुनिया के अनेक देशों में रहते हैं. वहां भी ये लोग उस देश के नियमानुकूल रहकर उस देश के विकास में जो योगदान दे रहे, वह अद्वितीय है. आंकड़े बताते हैं कि विदेशी जेलों में भारत की संस्कृति को आत्मसात कर जीवन जीनेवाले की प्रतिशतता नगण्य है या काफी कम है.