क्या भारतीय राजनीति को आपराधिक तत्वों से मुक्त करने की दिशा में कदम उठाए जाएंगे
ADR द्वारा जारी लिस्ट में 64 सांसदों-विधायकों के नाम
Faisal Anurag
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपराधिक मामलों में दोषी सांसदों और विधायकों के मामले की त्वारित जांच कराने का वादा किया था. 51 माह बीत जाने के बाद एडीआर ने ऐसे दोषी 64 सांसदों और विधायकों की सूची जारी की है जिनपर गंभीर किस्म के आपराधिक मामले चल रहे हैं. ये सांसद और विधायक विभिन्न राजनीतिक दलों में है. इस सूची में सबसे ज्यादा नाम भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों का है. सवाल यह है कि आखिर इन ताकतों के खिलाफ त्वारित कार्रवाई की राह प्रशस्त क्यों नहीं की जा रही है.
अनेक संगठनों के अभियान के बाद भी राजनीति में आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने वाले तत्व बने हुए हैं.
राजनीतिक दलों में यह होड़ है कि जीतने वाले प्रत्याशियों को ही वह महत्व देता है और इस हालात के लिए ऐसे तत्व ज्यादा मुफीद माने जाते हैं. भारतीय राजनीति में वह दौर पहले ही खत्म हो चुका है जब राजनीतिक दल आपराधिक तत्वों की मदद लिया करते थे. अब तो इन तत्वों ने कई राजनीतिक दलों को हाइजेक कर लिया है और नेशनल दल भी उन्हें नजरअंदाज नहीं कर पाते हैं. राजनीति और अपराध के गहरे रिश्ते अनेक बार उजागर हो चुके है.
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अबतक यह नहीं हो पाया है कि इन तत्वों के मामले को त्वरित तरीके से निपटाने की पहल ली गयी हो. सांसद-विधायक बनने के अलावे भी अपराधिक तत्वों की राजनीति में दखल के अनेक उदाहरण मौजूद है. सरकारी योजनाओं में इन तत्वों के दखल और संसाधनों की हिस्सेदारी भी एक गंभीर मामला है. सवाल तो यह उठता है कि केवल चुनावी होड़ के लिए इन तत्वों की मदद लेने से क्या सच में राजनीतिक दल कभी परहेज करेंगे.
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आंदोलनों के कारण भी अनेक व्यक्तियों पर मामले दर्ज होते हैं. इस तरह के मामलों पर भी उन्हीं धाराओं का इसतेमाल किया जाता है जो गंभीर किस्म के अपराधों के लिए बने हुए हैं. लेकिन एडीआर की रिपोट के अनुसार, सूची में वास्तव में किए गए गंभीर अपराधों के लिए दोषी सांसदों और विधायकों के नाम शामिल हैं. इसमें अपवाद में चार या पांच नाम हो सकते है. लेकिन ज्यादातर लोगों के बारे में जनता में यह परसेप्सन है कि वे लोग अपराध जगत के सरगना ही हैं. राजनीतिक मामलों और अपराधिक मामलों का अंतर भी इस रिपोर्ट से साफ दिखता है.
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भारत में जिस तरह के हालात हैं कई सरकारों ने अपने विरोधियों को आपराधिक मामले में भी फंसाया है. बावजूद इसके यह साफ है कि राजनीति में आपराधिक गतिविधियों से उभरे लोगों को जिस तरह तरजीह दी जाती है, वह एक गंभीर चिंता की बात है. कमजोर सामाजिक समूहों के खिलाफ इन आपराधिक तत्वों का इसतेमाल आम है. भारतीय लोकतंत्र का यह एक स्याह पक्ष है.
सुप्रीम कोर्ट भी इस पर कई बार चिंता प्रकट कर चुका है. बावजूद अदालतों में इन तत्वों के मामले लंबे समय तक सुने ही नहीं जाते. माना जाता है कि मामलों को अदालतों में लटकाने की दक्षता भी इन तत्वों के पास है. वर्तमान संसद का कार्यकाल पूरा होने में अब बहुत कम समय बचा हुआ है. अगले चुनाव की रणनीतियों में विभिन्न राजनीतिक दल फिर ऐसे ही तत्वों को महत्व देगें. क्योंकि इनमें जीत की गारंटी देखी जाती है.
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प्रधानमंत्री ने राजनीतिक दलों को आपराधिक तत्वों से मुक्त करने की बात जरूर की थी. लेकिन कोई पहल नहीं लिए जाने के कारण इन तत्वों के राजनीतिक वर्चस्व को प्रभावित नहीं किया जा सका है. अनेक राजनीतिक प्रेक्षक अभी से कह रहे हैं कि अगले चुनाव में इन तत्वों के महत्व को देखते हुए ही केंद्र कोई कदम उठाने से हिचक रहा है. एडीआर समय-समय पर केंद्र के समक्ष हालात को रखता रहा है. फिर सूची जारी कर उसने केंद्र सरकार के सामने यह मुद्दा उठा दिया है. राजनीतिक दलों और मीडिया के बड़े सेक्शन में इस रिपोर्ट को लेकर ठंढा रूख अपनाया है. यहां तक कि इस रिपोर्ट पर राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं ने भी कुछ नहीं कहा है. यह चुप्पी बताती है कि राजनीति और अपराध के रिश्ते को कमजोर निकट भविष्य में शायद ही किया जाए.
(लेखक न्यूज विंग के वरिष्ठ संपादक हैं और ये उनके निजी विचार हैं.)
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