
Ranchi: फादर स्टेन स्वामी अभी चर्चा में हैं. उन्हें एनआइए ने गिरफ्तार किया है. उन पर भीमा-कोरेगांव हिंसा की साजिश में शामिल होने का शक है. 83 साल की दुबली-पतली काया वाले इस शख्स पर नक्सलियों से संबंध रखने के भी आरोप हैं. हालांकि झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इनका बचाव किया है.
जानिये कौन हैं स्टेन स्वामी
स्टेन स्वामी को सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में भी जाना जाता है. झारखंड में चल रहे जल, जंगल जमीन, विस्थापन जैसे आंदोलन को उन्होंने बौद्धिक समर्थन दिया. फादर स्टेन स्वामी साठ के दशक में तमिलनाडु के त्रिचि से झारखंड पादरी बनने आये थे. थियोलॉजी (धार्मिक शिक्षा) पूरी करने के बाद वह पुरोहित बने, पर ईश्वर की सेवा करने के बजाय उन्होंने आदिवासियों और वंचितों के साथ रहना चुना.
बिंदराय इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च स्टडी एंड एक्शन के फाउंडर मेंबर जेवियर डायस कहते हैं, “फादर स्टेन स्वामी ने आदिवासियों और शोषितों के लिए काम करना चुना. उनका (फादर) कहना था कि ईश्वर के लिए काम करनेवाले बहुत हैं, मैं लोगों के लिए काम करूंगा.”
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तमिलनाडु के किसान परिवार से हैं स्टेन स्वामी
फादर स्टेन स्वामी तमिलनाडु के त्रिचि से हैं. पिता किसान थे. स्टेन की प्रारंभिक स्कूली और कॉलेज की पढ़ाई त्रिचि में हुई. फादर (पुरोहित) बनने की इच्छा के साथ वह जमशेदपुर पहुंचे. वह संभवत: 1960 का दशक था. पढ़ाई करते हुए ही उनके मन में झारखंड के आदिवासी समुदाय के साथ जुड़कर काम करने की इच्छा हुई.
जेवियर डायस बताते हैं, “फादर ने फिलीपींस (मनीला) की यूनिवर्सिटी से भी ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उन्होंने यूरोप के शहर ब्रासेल्स में भी उच्च शिक्षा प्राप्त की. मनीला में रहते हुए उन्होंने वहां के तानाशाह मार्कोस के खिलाफ चल रहे आंदोलन को करीब से देखा. बताया जाता है कि इस आंदोलन ने भी उनके मन में गहरा प्रभाव डाला.”
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बगईचा की नींव डाली, जनांदोलनों के साथ जुड़े
झारखंड (रांची) में आकर फादर स्टेन स्वामी ने नामकुम में बगईचा नामक संस्थान की नींव डाली. यह संस्थान चर्च के सहयोग से बना. इसमें वे झारखंड से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर सेमिनार, प्रशिक्षण के कार्यक्रम करते रहे हैं. झारखंड में चलनेवाले जनांदोलनों का उन्होंने खुलकर साथ दिया. उन्हें बौद्धिक दिशा दिखायी.
जनजातीय परामर्शदात्री परिषद (TAC) के पूर्व सदस्य रतन तिर्की ने कहा कि फादर के साथ लंबे अरसे तक काम करने का अनुभव रहा है. फादर इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट बेंगलुरु के निदेशक के पद पर भी काम कर चुके हैं. यहां उनके साथ झारखंडी ऑर्गेनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स (जोहार) में काम करने का अवसर मिला है.
रतन तिर्की कहते हैं, “फादर ने झारखंड में आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार, समता जजमेंट, विस्थापन, मानवाधिकार, जल, जंगल जमीन जैसे विषयों पर गंभीरता से काम किया. उन्होंने जेल में बंद विचाराधीन कैदियों के विषय पर भी काम किया. उन्होंने उन विषयों को उठाया, इसलिए वे सरकार और पूंजीपतियों की आंखों की किरकिरी बन गये.”
झारखंड में वे कितने लोकप्रिय थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी गिरफ्तारी के बाद से ही रांची में लगातार उनकी रिहाई के लिए आंदोलन चल रहे हैं. लोग सोशल मीडिया पर भी उनके समर्थन में आगे आ रहे हैं.
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