
राष्ट्रपति के नाम पत्र, प्रधानमंत्री के नाम पत्र, पिता के नाम पत्र, पुत्र या पुत्री के नाम पत्र की बात हम पहले भी सुन चुके हैं. पर, इस बार सोशल मीडिया पर एक अलग तरह पत्र वायरल हो रहा है. पत्र, देश के सभी अखबार, न्यूज चैनल और वेब पोर्टल के संपादकों के नाम है. यह पत्र इंदौर में तैयार किया गया है. जिसके बाद से सैकड़ों लोग इसे शेयर कर चुके हैं. यह पत्र वर्तमान समय में संपादकों व पत्रकारों को पढ़ने और खुद की जिम्मेदारी व प्रतिबद्धता के बारे में सोंचने को मजबूर करता है. इसलिए हम इस पत्र को हू-ब-हू छाप रहे हैं- संपादक
यह खुला पत्र सभी मीडिया घरानों – प्रिंट मीडिया, टीवी न्यूज़ चैनल और डिजिटिल वेब मीडिया में एडिटोरियल कंटेंट तय करने वाले संपादक बंधुओं के लिए है. संपादक एक ऐसी संस्था मानी जाती है, जो अखबार, टीवी या वेब मीडिया में प्रकाशित/ प्रसारित हर कंटेंट के छपने के लिए जिम्मेदार होती ही है. संपादक का सामाजिक उत्तरदायित्व यह भी है कि वह किसी अहम खबर के प्रकाशन/प्रसारण न होने के लिए भी खुद को जिम्मेदार मानें.
सभी सम्मानीय संपादक बंधु,


आज हम सभी भारी मन से आपको यह खुला पत्र लिखने को मजबूर हैं.




इस कोरोना काल में जिस तरह से देश में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अनेक ऐसे कार्य किये गये और लगातार किये जा रहे हैं, जो सामान्य स्थितियों में किये जाते तो उस पर व्यापक रूप से चर्चा होती.
चाहे वह आरोग्यसेतु जैसी सर्विलांस एप्प को अनिवार्य करना हो या विभिन्न राज्य सरकारों के द्वारा किये गए श्रम कानूनों में बदलाव, या फिर वह सीनियर सिटीजन को रेलवे में दी जा रही छूट को वापस लेना हो या गुजरात का वेंटिलेटर घोटाला हो, वित्त मंत्री के 21 लाख करोड़ के पैकेज की असलियत हो या फिर कोरोना संक्रमण की आड़ में बचाव सामग्री की नियम विरुद्ध खरीद और कोरोना के इलाज में निजी अस्पतालों को उपकृत किया जाना या अस्पतालों में गैरकानूनी क्लीनिकल ट्रायल का खुला खेल ही क्यों न हो.
क्या इन सभी को महामारी से पैदा हुए अवसर का लाभ लेने का अवसर समझ लिया गया है?
अगर ये सारे घोटाले, गैर कानूनी काम मुख्य धारा की मीडिया से बाहर हैं, तो इसे भी ‘संपादक रूपी संस्था’ के लिए एक अवसर क्यों नहीं माना जाना चाहिए?
आज जब पूरी दुनिया इस कोरोना के कहर से सन्धि काल में खड़ी हुई है तो भारत जैसे बड़े देश में खबरों को दबाने, छिपाने, छानबीन न करने, सरकार की बात को सही मानकर प्रकाशित/प्रसारित करने का एक ऐसा अवसर, जो आपके पाठक/श्रोता वर्ग को धोखा देने के बराबर नहीं है?
इस संदर्भ में हम संयुक्त रूप से कुछ सवाल आपसे पूछना चाहते हैं. उम्मीद है इसका हमें तुरंत सीधा जवाब मिलेगा।
1. आप सभी की इस अवसरवादिता से आपको किस तरह का लाभ मिल रहा है?
2. मीडिया का काम है आम जनता की आवाज बनना। आप सरकार की आवाज क्यों बनना चाहते हैं?
3. हम इस पत्र के साथ सोशल मीडिया पर हमारे द्वारा उठाए गए कुछ मुद्दों के लिंक दे रहे हैं. आप हमें जवाब दें कि आपके अखबार/इलेक्ट्रॉनिक/वेब मीडिया पर ये मुद्दे क्यों प्रमुखता से नहीं उठाए गए?
4. क्या आपके संस्थान को जन मुद्दे उठाए जाने पर किसी कार्रवाई का डर है? हां तो स्पष्ट करें.
5. क्या आपको सरकार/प्रशासन या किसी सरकारी एजेंसी ने आम लोगों के लिए अहम मुद्दों को न उठाने के लिए कहा गया है? स्पष्ट, सीधा जवाब दें.
आपका जवाब देश की अवाम के लिए सिर्फ आप सभी का पक्ष ही नहीं, उपरोक्त अहम सवालों पर स्पष्टीकरण भी है. यह स्पष्टीकरण आपके मीडिया संस्थान की विश्वसनीयता और लोगों के प्रति प्रतिबद्धता को प्रभावित करेगा.
आपका जवाब