
Kolkata : पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का काडर जमीनी स्तर पर चुपचाप भाजपा की मदद कर रहा है. टीएमसी चीफ और राज्य की सीएम ममता बनर्जी इस बदले हुए परिवेश का कारण है. राजनीतिक गलियारों में माना जाता है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. यह कहावत पश्चिम बंगाल की सियासत में चरितार्थ होती नजर आ रही है. बता दें कि लोकसभा चुनाव 2019 में बंगाल में भाजपा सत्ताधारी टीएमसी को कड़ी टक्कर देती दिख रही है. जानकारों के अनुसार भाजपा वोट शेयर में बड़ा उछाल आ सकता है. बदलते राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा को एक अस्वाभाविक सहयोगी मिला है. खबर है कि बंगाल में सीपीएम काडर जमीनी स्तर पर चुपचाप भाजपा की मदद कर रहा है.
बंगाल में भाजपा के पास उत्तर भारत समेत अन्य राज्यों जैसे मजबूत संगठन का अभाव है. इस वजह से जमीनी स्तर पर टीएमसी और यहां तक कि प्रभावहीन हो चुकी कांग्रेस और लेफ्ट के मुकाबले भाजपा कमजोर है. पार्टी के चुनावी प्रबंधकों ने माना है कि वे दूसरे अप्रत्याशित लोगों से समर्थन पर निर्भर हैं. इनमें कहीं न कहीं ग्राउंड लेवल पर सीपीएम वर्कर्स भी शामिल हैं. माकपा के जमीनी कार्यकर्ता सत्ताधारी पार्टी टीएमसी के कथित उत्पीड़न और बढ़ती ताकत को टक्कर देने के लिए ममता के खिलाफ हैं, इसके लिए उन्हें भगवा खेमे से हाथ मिलाना पड़ रहा है. चर्चा है कि 34 साल तक वाम के शासन के बाद अब टीएमसी के बढ़ते हमलों से परेशान सीपीएम कार्यकर्ता बूथ और वॉर्ड लेवल पर बूथ मैनेजमेंट में भाजपा की मदद कर रहे हैं. यहां तक कि जिन वॉर्डों में लेफ्ट की थोड़ी सी भी पकड़ है तो वहां सीपीएम काडर चुपचाप भाजपा के लिए प्रचार कर रहा है
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भाजपा सीपीएम से सहायता ले रही है
कोलकाता उत्तर संसदीय क्षेत्र में 1862 पोलिंग बूथ हैं. भाजपा को उम्मीद है कि इस बार उसके पास सिटिंग टीएमसी एमपी सुदीप बंदोपाध्याय को हराने का मौका है, हालंकि उसके कार्यकर्ताओं की पहुंच केवल 500 बूथों तक है. सूत्रों के अनुसार सीपीएम वर्कर्स ने भाजपा को मदद की पेशकश की है. भाजपा सीपीएम से सहायता ले रही है. बता दें कि भाजपा के चुनावी प्रबंधक कुछ इलाकों में डोर टू डोर कैंपेन के लिए सीपीएम के साथ सावधानी से लगातार बैठकें कर रहे हैं. नारेबाजी और शोर के बिना यह अंदरूनी खेल चल रहा है. दोनों पक्षों के बीच एक अलिखित समझौता यह भी है कि मतदान के दिन जिन बूथों पर भाजपा के एजेंट न हों वहां सीपीएम के कार्यकर्ता निगरानी रखें. बंदोपाध्याय के खिलाफ भाजपा ने राहुल सिन्हा को उतारा है.
यह कोई इकलौता मामला नहीं है जिसे सीनियर भाजपा पदाधिकारी मान रहे हैं; इसी तरह का अनुभव भाजपा को त्रिपुरा में हुआ था, जब उसने माणिक सरकार के नेतृत्व वाली लेफ्ट की सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया था. बंगाल में जमीनी स्तर पर चल रही उठापटक के बारे में माणिक सरकार ने साफ इशारा किया है. मंगलवार को बंगाल में पार्टी के पक्ष में प्रचार करते हुए सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्य ने कहा, खुद को तृणमूल कांग्रेस से बचाने के लिए भाजपा को चुनने की गलती मत करें. त्रिपुरा में देखिए. सिर्फ 14 महीनों के दौरान उन्होंने त्रिपुरा में जो किया वह टीएमसी के आतंक से बहुत आगे है. उन्हें न्योता मत दीजिए; यह एक भयंकर भूल और आत्मघाती फैसला होगा.
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ममता बनर्जी को समझ में आ रहा है
भाजपा को सीपीएम काडर से मिल रहे सहयोग को भांपते हुए ममता ने पार्टी कार्यकर्ताओं को सावधान रहने को कहा है. अपनी रैलियों में वह कहती रहती हैं, सीपीएम कार्यकर्ता ऐसा फिर कर रहे हैं. उनसे सावधान रहें, वे हमारे शत्रुओं की मदद कर रहे हैं. सतर्क और होशियार रहिए. बंगाल में बदल रहे सियासी समीकरण सीपीएम के लिए अच्छी खबर नहीं है. अपने किले में पहले से हाशिए पर चल रही पार्टी के सामने अपने छोटे से वोट शेयर को भी खोने का खतरा बढ़ता दिख रहा है. वह अपने कैंडिडेट के बजाय कई भाजपा उम्मीदवारों को उसका काडर मदद पहुंचा रहा है. सीपीएम कार्यकर्ताओं का नारा है, उन्नीसै हाफ, इक्कीसै साफ (2019 में आधा और 2021 में साफ. सीपीएम 2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी को सत्ता से बाहर करने की बात कर रही है.
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