
Uday Chandra
New Delhi : रामसेतु से जुड़ा सच जल्दी ही बाहर आनेवाला है. भारतीय पुरातत्व विभाग ने समुद्र में मौजूद इस पुल से जुड़े रहस्यों को सुलझाने का बीड़ा उठाया है. इसके तहत समुद्र के अंदर अध्ययन कर पता लगाया जायेगा कि आखिर रामसेतु जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘एडेम्स ब्रिज’ के नाम से जाना जाता है, उसके पीछे का सच क्या है.
रामायण के अनुसार रामसेतु का निर्माण भगवान राम की वानर सेना द्वारा भारत के दक्षिणी भाग रामेश्वरम में किया गया था, जिसका एक छोर श्रीलंका के मन्नार से जुड़ा है. हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब लंकापति रावण माता सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गये थे, तो भगवान राम की वानर सेना ने समुद्र के बीचों-बीच एक पुल का निर्माण किया था, जो बाद में राम सेतु कहलाया.
बीच समुद्र में मौजूद रामसेतु पुल को कब, किसने और कैसे बनाया इसे लेकर हमेशा से विवाद होता आया है. लेकिन अब इसका प्रामाणिक और वैज्ञानिक आधार और जवाब जानने के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग ने एक विशेष रिसर्च को मंजूरी दी है.
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इसके तहत समुद्र के नीचे एक परियोजना चलायी जायेगी जिसमें वैज्ञानिक भी हिस्सा लेंगे. वैज्ञानिकों की मानें तो इसके जरिए उन्हें रामायण काल के बारे में और अधिक जानकारी हासिल हो सकती है.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआइ) ने इसके लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत आनेवाले सीएसआइआर-नेशनल इंस्टी(ट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी, गोवा के साथ एक करार किया है. पर्यावरणीय डाटा के जरिये इस सेतु का अध्ययन किया जायेगा. इस रिसर्च के लिए एनआइओ की तरफ से सिंधु संकल्पत या सिंधु साधना नाम के जहाजों को उपयोग में लाये जाने की योजना है.
रामसेतु को लेकर ऐसी मान्यता रही है कि इसके निर्माण में वैसे पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था, जो पानी में नहीं डूबें, बल्कि पानी की सतह पर ही तैरते रहें.
कुछ लोग इसके पीछे अलौकिक शक्ति को मानते हैं तो कुछ लोगों का कहना है कि वो विशेष प्रकार के पत्थर थे, जो पानी में नहीं डूबे. ऐसी मान्यता भी है कि निर्माण पूर्ण होने के बाद इस पुल की लम्बाई 30 किलोमीटर और चौड़ाई 3 किलोमीटर थी.
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