
Baijnath Mishra
महाराष्ट्र की अघाड़ी (गठबंधन) सरकार ने बाला साहेब ठाकरे को अभूतपूर्व श्रद्धांजलि दी है. बाला साहब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली इस सरकार ने शिवसेना के संस्थापक के आदर्शों, उद्देश्यों को तिलांजलि दे दी है.
इस सरकार ने घोषणा की है कि लता मंगेशकर, सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली, अक्षय कुमार, अजय देवगन, सुनील शेट्टी आदि के ट्वीट की जांच करायी जायेगी. इन हस्तियों ने अपने ट्वीट में देश को एकजुट रहने और विदेशी षड्यंत्रकारियों के दुष्प्रचार के प्रभाव में न आने का आह्वान किया है.
यह आह्वान रेहानाओं, खलिफाओं और ग्रेटाओं जैसे विदेशी खुराफातियों की भारत विरोधी तिकड़मी चालों के विरुद्ध किया गया है. महाराष्ट्र सरकार में शामिल कांग्रेस को यह हजम नहीं हुआ कि किसान आंदोलन के बहाने नरेंद्र मोदी की सरकार को परेशान करने में लगी विदेशी ताकतों के खिलाफ भारत रत्न सचिन तेंदुलकर, लता मंगेशकर और फिल्मी सितारे कुछ भी बोलें-लिखें.
इसलिए कांग्रेस ने महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्री अनिल देशमुख (एनसीपी) से भारत को गौरवान्वित करनेवाली नामचीन हस्तियों के खिलाफ जांच की गुहार लगा दी. अनिल देशमुख मानो इसी गुहार के इंतजार में ही बैठे थे. सो, उन्होंने तत्काल जांच का आदेश भी दे दिया. इससे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे फंस गये. महाराष्ट्र में इन दिनों औरंगाबाद बनाम संभाजी नगर का एक द्वंद्व चल रहा है.
शिवसेना औरंगाबाद का नाम बदल कर संभाजी (शिवाजी के पुत्र) नगर करना चाहती है, लेकिन कांग्रेस-एनसीपी इसके खिलाफ हैं. इसी द्वंद्व के चलते अघाड़ी के घटक दलों में सर्प चालें चली जा रही हैं. इसी का परिणाम है देश के शलाका व्यक्तित्वों के ट्वीट के खिलाफ जांच का आदेश.
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उद्धव ठाकरे जानते ही होंगे और शायद मानते भी होंगे कि जांच का यह आदेश बाला साहेब की वैचारिक कमाई और शिवसेना की जमा पूंजी पर डाका है, लेकिन वह कुछ कर नहीं सकते. सरकार चलानी है तो हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की अपनी थाती छोड़नी ही पड़ेगी और अपने चटक भगवा रंग का इस्तेमाल छोड़ना ही पड़ेगा.
ऐसा नहीं है कि सरकारें बनाने-बचाने के लिए राजनीतिक दल अनैतिक और बेशर्म समझौते नहीं करते हैं. लेकिन सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर शिवसेना की नींव की ईंट मराठी मानुस के अप्रतिम गौरव हैं. वे महाराष्ट्र ही नहीं, राष्ट्र का मान-सम्मान और अभिमान हैं.
यदि बाला साहेब होते तो क्या एक सरकार के लिए विदेशी साजिशकर्ताओं के खिलाफ आवाज उठानेवाली अपनी नायाब हस्तियों के खिलाफ कोई जांच होने देते?
शाहबानो मामले में फैसला देनेवाले मुख्य न्यायाधीश यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के खिलाफ जब हाजी मस्तान के नेतृत्व में प्रदर्शन हुआ और चंद्रचूड़ के पुतले फूंके गये, पुतलों को जूतों की मालाएं पहनाई गईं, तब बाला साहेब ने अपनी एक सिंह गर्जना ‘ इन लोगों को कराची-लाहौर भेजना होगा’ से समूची माफिया मंडली की बोलती बंद कर दी थी. इसी प्रकार जब थल सेनाध्यक्ष अरुण श्रीधर वैद्य की खालिस्तानियों ने हत्या कर दी थी, तब बाला साहेब ने शिवसेना की हर शाखा पर स्टेनगन लगाने की चेतावनी देकर महाराष्ट्र में खालिस्तान समर्थकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था.आज उन्हीं के पुत्र उद्धव ठाकरे की सरकार लताजी, तेंदुलकर आदि से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीनना चाहती है. बाला साहेब को ऐसी श्रद्धांजलि उद्धव ठाकरे देंगे, यह अकल्पनीय था.
अब सवाल है कि जांच क्या होगी? गृह मंत्री अनिल देशमुख का कहना है कि ट्वीट की टाइमिंग सही नहीं है और यह जांचना जरूरी है कि कहीं भाजपा या केंद्र सरकार के दबाव में तो ट्वीट नहीं किये गये. यह बयान ही बचकाना लगता है. कौन कब क्या ट्वीट करेगा, इसे तय करने का कोई कानून तो है ही नहीं.
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यदि विदेशी विषकन्याओं ने हमारे देश में उथल-पुथल मचाने के लिए ट्वीट नहीं किया होता तो हमारे हर दिल अजीज सितारे ट्वीट क्यों करते? यह है टाइमिंग का जवाब. जहां तक किसी के कहने पर ट्वीट करने का सवाल है तो ऐसा करना किस कानून की किस धारा के तहत संज्ञेय या दंडनीय अपराध है?
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या हमारे आदर्श नायकों से कोई पार्टी या सरकार जबरन कोई बयान दिलवा सकती है या कुछ भी लिखवा सकती है? क्या ये इतने पिलपिले और रीढ़विहीन लोग हैं जिनसे कुछ भी लिखवाया जा सकता है?
खैर देखिए, जांच क्या होती है और उसका परिणाम क्या होता है, लेकिन ऐसा लगता है कि शिवसेना का पराभव काल शुरू हो गया है. ऐसा लगता है कि शिवसेना का टाइगर श्रृगाल हो गया है. अब वह गुर्राता-दहाड़ता नहीं है, सिर्फ हुआं-हुआं करता है.
इस संदर्भ में एक सवाल अभिव्यक्ति की आजादी के कर्कश ढिंढोरचियों और लोकतंत्र पर खतरे के हरकारों से है कि वे कहां ओझल हो गये हैं? कहीं कोई सुगबुगाहट तक नहीं सुनाई दे रही है. यही गिरोहबंदी है राष्ट्रवाद के खिलाफ, लोकतंत्र के खिलाफ और अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ.
ये सारे धतकर्म इनके खातों में डिपॉजिट होते रहे हैं. इसलिए ये अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं और जब इनपर शिकंजा कसता है, तब ये मिमियाने लगते हैं. तब इन्हें कहीं कोई आसरा नहीं मिलता है. नरेंद्र मोदी जब चुनाव प्रचार के दौरान इनकी परतें खोलते हैं, जनता को समझाते हैं, तब इनकी बोलती बंद हो जाती है.
नामचीन हस्तियों के ट्वीट की जांच का आदेश देनेवाले महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख की हराकिरी पर गौर कीजिए. देशमुख साहेब सबसे पहले मनोहर जोशी की सरकार में बतौर निर्दलीय विधायक मंत्री बने थे. सरकार गई तो पाला बदल कर शरद पवार के नयनतारे बन गये और 2014 तक मंत्री बने रहे. इन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति में कई गुल खिलाये हैं.
ये वही महानुभाव हैं, जिनके कथित इशारे पर डीएलएफ ग्रुप के घोटालेबाज कपिल बाधवान और धीरज बाधवान को कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान आईपीएस अधिकारी अमिताभ गुप्ता के सहयोग से पिकनिक, तीर्थाटन का अवसर मिला था.
उस समय बाधवान बंधु गिरफ्तारी से बचने के लिए भागे फिर रहे थे. उन्होंने बाधवान बंधुओं की सेवा करनेवाले आइपीएस अमिताभ गुप्ता को फिलहाल पुणे का पुलिस कमिश्नर बना दिया है.
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