
News Wing Team
Ranchi: आयुष्मान भारत योजना के तहत केंद्र सरकार ने विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए एक रकम तय कर दी है. वहीं तय राशि को देखकर निजी अस्पताल प्रबंधन के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं. इसमें सामान्य बीमारियों से लेकर हृदय रोग और कैंसर तक की बीमारी शामिल की गयी है. साधारणत: किडनी स्टोन के इलाज में एक व्यक्ति को निजी अस्पतालों में 40,000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. पर योजना में सूचीबद्ध अस्पतालों को 15,000 से 18 हजार रुपये तक ही मिलेंगे. वहीं योजना की स्थिति पर पूर्ण जानकारी राजधानी के अधिकांश निजी अस्पतालों को नहीं है. योजना के विषय में न्यूज विंग टीम शहर के विभिन्न निजी हॉस्पिटल में इससे जुड़ी जानकारी लेने पहुंची. सभी अस्पताल प्रबंधनों में संशय की स्थिति बनी हुई है. विदित हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत रविवार को स्वास्थ्य बीमा से जुड़ी एक महत्वपूर्ण योजना लांच की. नाम है ‘आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना’. योजना के तहत पांच लाख तक स्वास्थ्य बीमा देने की बात कही गयी है. जिसमें राज्य के करीब 57 लाख परिवारों को लाभान्वित होने का दावा किया गया है. इसके लिए राजधानी के 19 निजी अस्पतालों को चयनित कर योजना में शामिल भी कर लिया गया है.
जमीनी हकीकत को देखा जाए, तो यहीं निजी अस्पताल योजना के क्रियान्वय पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. क्योंकि अस्पताल प्रबंधकों का कहना है कि उन्हें योजना लागू होने के बाद भी अबतक इसकी पूरी जानकारी नहीं दी गयी है. साथ ही प्रत्येक अस्पताल में प्रति बीमारी के लिए निर्धारित बीमा पैकेज पर इनकी नाराजगी है. इनका कहना है, अगर संबंधित बीमारियों पर योजना से अधिक राशि खर्च हो जाती है, तो उसका भुगतान किस तरह से होगा, यह स्पष्ट नहीं है. ऐसे कई निजी अस्पतालों में सेवा सदन, जगन्नाथ हॉस्पिटल, हिल व्यू,मेडिका जैसे अस्पताल शामिल हैं. नाम नहीं लिखने की शर्त पर हॉस्पिटल प्रबंधकों सहित आईएमए के डॉक्टरों ने बताया कि अगर योजना से हॉस्पिटलों को नुकसान होता है कि वे इससे बाहर जाने से भी परहेज नहीं करेंगे.
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डॉक्टरों ने योजना पर खड़े किए सवाल
अपर बाजार स्थित सेवा सदन के प्रबंधक से जुड़े लोगों व विभिन्न डॉक्टरों ने योजना के क्रियान्वयन पर सवाल खड़े कर दिए हैं. उनका कहना है कि सरकार योजना बनाकर निजी हॉस्पिटलों को इसमें शामिल कर देती है, लेकिन इसकी पूरी जानकारी संस्थान को देना उचित नहीं समझती है. संस्थान द्वारा विभिन्न बीमारियों पर तय राशियों को देखा जाए, तो सरकार द्वारा तय की गयी राशि इससे बहुत कम है. जिस कारण निजी हॉस्पिटल में आयुष्मान योजना के तहत इलाज को लेकर संशय बनी हुई है. कई बीमारियों के इलाज में लोगों को लाखों रुपये तक खर्च हो जाते हैं, लेकिन सरकार ने उक्त बीमारियों के लिए कम राशि तय कर रखी है. ऐसी कई बीमारियों के इलाज में लगने वाली राशि एवं सरकार द्वारा तय राशि निम्न है.
बीमारी/इलाज योजना में देय राशि (रूपये) निजी अस्पतालों में लगने वाली फीस (रूपये)
एपिन्डिसाइटिस 15,000 से 18,000 35,000
गॉल ब्लाडर 15,000 से 18,000 40,000
प्रोस्टेट 25,000 40,000
सिजेरियन 9,000 25,000 से 45,000
किडनी स्टोन 15,000 से 18,000 40,000
आर्थोपेडिक्स सर्जरी 50,000 1.50 लाख
निमोनिया प्रतिदिन 1800 पांच दिन का चार्ज 20,000
ग्रेगियोन 3,000 8,000 से 10,000
डरमोइड सिस्ट 2,000 से 3,000 10,000
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अस्पताल प्रंबधकों की योजना पर दी गयी राय
बरियातू स्थित हिलव्यू हॉस्पिटल प्रबंधन ने बताया कि निजी अस्पतालों को योजना की पूरी जानकारी नहीं दी गयी है. अभी तक योजना से जुड़ने के लिए रजिस्ट्रेशन की कोई प्रक्रिया पूरी नहीं की गयी है. न ही कोई निरीक्षण टीम हॉस्पिटल में पहुंची है. इसके विपरित कुछ अखबारों में यह खबर प्रकाशित हुई है कि योजना में करीब 19 अस्पतालों को शामिल कर लिया गया है कि जिससे मैं सहमत नहीं हूं. वहीं आईएमए के एक सदस्य ने बताया कि योजना को लेकर सभी निजी हॉस्पिटलों की एक बैठक की जानी थी. लेकिन मुहर्रम, करमा, पीएम विजिट की वजह से बैठक नहीं की जा सकी. अगले एक-दो दिन में बैठक कर स्थिति साफ हो सकेगी.
बूटी मोड़ स्थित मेडिका के डॉ. आनंद श्रीवास्तव ने न्यूज विंग को बताया कि इस योजना से सीधे तौर पर सरकारी अस्पताल भी लाभान्वित होंगे. जो मुफ्त में इलाज करते थे. अब वे बीमा कंपनियो से उक्त सभी बीमारियों के लिए इस योजना के तहत पैसे वसूलेंगे. मेडिका को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा, क्योंकि हम कंपनियों से इलाज के बदले पैसे तो लेगें ही. पर आयुष्मान भारत योजना के तहत हमारे साथ अभी प्रकिया अधूरी हैं. जिसे पूरा होने में कम से कम 10 दिन लगेंगे.
इधर जगन्नाथ हॉस्पिटल प्रबंधन ने बताया कि योजना की सबसे बड़ी समस्या सरकार की ओर से दी जाने वाली बीमा राशि से है. बीमा कंपनियों के साथ हमारा प्रतिदिन का संबंध रहता है, लेकिन योजना में सरकार की जो हिस्सेदारी है, उसे कैसे लिया जाए. क्योंकि आज सरकारी तंत्र की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. उनका कहना था कि योजना के सभी पहलूओं को पूरी तरह से नहीं पढ़ा गया है. पढ़ने के बाद अगर ऐसा लगेगा कि योजना से संस्थान को नुकसान होता है कि वह इससे बाहर हटने से भी पीछे नहीं हटेंगे.