
- डालसा के सहयोग से जरूरतमंद कैदियों को पहुंचा रहे कानूनी मदद
Ranchi : खुशबू मर्डर केस तो याद होगा ही आपको. 27 अप्रैल 2011 की घटना थी. रांची के संत जेवियर्स कॉलेज में इंटर का एग्जाम लिखकर हॉल से निकल रही थी खुशबू. इसी दौरान उसका सिर भुजाली से एक ही झटके में काटकर धड़ से अलग कर दिया था एक लड़के ने. उस लड़के का जुर्म कोर्ट में साबित हुआ और उसे फांसी की सजा सुनायी गयी. बाद में उसकी फांसी की सजा उम्रकैद की सजा में तब्दील हो गयी. विजेंद्र उर्फ गोलू. यही नाम है उस मुजरिम का. उसने जो अपराध किया, उसकी सजा वह होटवार स्थित बिरसा मुंडा सेंट्रेल जेल में भुगत ही रहा था कि उसे जेल में अपने गुनाह का प्रायश्चित करने का एक मौका मिल गया. मौका जेल में सजा काट रहे दूसरे कैदियों को कानूनी सेवा देने का. खुद कानून तोड़ने की सजा काट रहे गोलू ने सहबंदियों को कानून का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया.
जी हां, खुशबू सहित समाज का गुनहगार गोलू जेल में पारा लीगल वॉलंटियर (पीएलवी) की भूमिका निभाने लगा. हालांकि, फिलहाल वह पेरोल पर जेल से बाहर है, लेकिन उस जैसे नौ अन्य सजायाफ्ता कैदी ऐसे हैं, जो आज गोलू की ही तरह अपने साथी कैदियों को कानून का पाठ पढ़ा रहे हैं. ऐसा कर ये पीएलवी न सिर्फ अपने किये गुनाहों का प्रायश्चित कर रहे हैं, बल्कि इस सेवा के एवज में इन्हें एक तयशुदा राशि भी मिलती है.


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जेल में दो महिलाएं और सात पुरुष निभा रहे पीएलवी की भूमिका
गौरतलब है कि होटवार स्थित बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में लगभग 3000 कैदी अपने गुनाहों की सजा काट रहे हैं. इनमें कुछ चोरी, छिनतई जैसे मामूली अपराध में सजा काट रहे हैं, तो कुछ हत्या जैसे गंभीर अपराधों में. कुछ माफिया हैं, कुछ राजनीतिक बंदी, तो कुछ डकैती और अन्य अपराधों के लिए जेल की सलाखों के पीछे बंद हैं. इन्हीं में नौ कैदी, जो हत्या और अन्य गंभीर अपराधों के लिए सजा काट रहे हैं, जेल के बाकी कैदियों को कानून का पाठ पढ़ा रहे हैं. इनमें दो महिलाएं हैं और सात पुरुष. ये सजायाफ्ता कैदी होने के साथ-साथ पीएलवी भी हैं.
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कैदियों की समस्याओं को जेल प्रशासन और डालसा के समक्ष रखते हैं
जेल में पीएलवी की भूमिका निभा रहे इन कैदियों की दिनचर्या बाकी कैदियों से थोड़ी अलग है. ये जेल में बंद कैदियों के बीच कानूनी जागरूकता फैलाने का काम करते हैं. ऐसे कैदी, जो पढ़े-लिखे नहीं हैं, उनके लिए आवेदन लिखते हैं. ऐसे कैदी, जो गरीब हैं और उन्हें अपने मुकदमों की पैरवी के लिए वकील की जरूरत है, तो उनके लिए जेल प्रशासन और जिला विधिक सेवा प्राधिकार (डालसा) के जरिये वकील उपलब्ध कराते हैं. डालसा के जरिये लगनेवाली जेल अदालतों में सहयोग करते हैं और यह देखते हैं कि साथी बंदियों को किस तरह की समस्या है. ये उनकी समस्याओं को जेल प्रशासन और डालसा के समक्ष रखते हैं. इनके लिए अपने गुनाहों के प्रायश्चित का शायद यह सबसे बेहतर तरीका है.
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कैसे बनते हैं जेल के कैदी पीएलवी
जिला विधिक सेवा प्राधिकार (डालसा) को जेल में अपने कार्यों के निष्पादन के लिए पैनल लॉयर के अलावा पीएलवी की जरूरत होती है. बाहर से जेल में पीएलवी नहीं जा सकते, इसलिए कैदियों में से ही पीएलवी चुने जाते हैं. जेल प्रशासन उन कैदियों के नामों की अनुंशसा पीएलवी के काम के लिए करता है, जो पढ़े-लिखे हों. साथ ही जो लंबी अवधि की सजा काट रहे हों. इसके अलावा इनका आचरण, सेवा भाव सहित अन्य बातों को भी देखा जाता है. डालसा इन कैदियों को पीएलवी का प्रशिक्षण देता है. इसके बाद इन्हें काम पर लगा दिया जाता है. इन पीएलवी को इन कामों के लिए एक निश्चित राशि का भुगतान भी किया जाता है. अभी जो नौ पीएलवी कार्यरत हैं, उनके जिम्मे जेल के अलग-अलग वार्ड हैं.
“जेल के अंदर कार्यरत पारा लीगल वॉलंटियर हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण हैं. इन कैदियों को अलग-अलग वार्डों की जिम्मेदारी मिली है. ये कैदियों के बीच कानूनी जागरूकता फैलाते हैं. जेल अदालतों और अन्य कामों में भी सहयोग करते हैं.”
-अभिषेक कुमार, सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकार
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