
Ranchi : झारखंड में प्रकृति को नजदीक से देखते हुए नये साल का जश्न भी मनाना चाहते हैं तो राज्य के कई पर्यटन स्थल आपको आकर्षित कर सकते हैं. जहां की मनमोहक वादियां आपके दिल को छू लेंगी. राज्य में कई ऐसे मनमोहक स्थल हैं,जहां आप अपने मानसिक और शारीरिक अवसादों से मुक्त हो जाएंगे.
विभागीय आंकड़ों के हिसाब से राज्य के लगभग 65 प्रतिशत क्षेत्र पहाड़ी क्षेत्रों में आते हैं. जिन्हें देखना अपने आप में अद्भुत अनुभव प्रदान करता है. नेतरहाट की वादियां हों या राज्य के जलप्रपातों की इठलाती जलधारा लोगों को मोह लेती है. आप राज्य के किसी भी हिस्से में क्यों ना रहते हों सभी स्थानों में आपके लिए कुछ ना कुछ जरूर है.
झारखंड के कुछ प्रसिद्ध पर्यटन स्थल


हजारीबाग की पाषाणकालीन गुफाएं- हजारीबाग के बड़कागांव प्रखंड में अवस्थित इन पाषाणकालीन गुफाओं में प्राचीन चित्रकारी के नमूने अब भी लोगों को आश्चर्य में डाल देते हैं. नये साल में घुमने आने वाले लोगों को यहां आकर काफी सुकून मिलता है.




हुंडरू जलप्रपात, रांची – रांची-मुरी मार्ग में स्वर्णरेखा नदी पर स्थित यह झरना प्रकृति का अनुपम उपहार है. हुंडरू जलप्रपात झारखंड में सर्वाधिक ऊंचाई से गिरने वाला प्रपात है. यहां सालो भर सैलानी पहुंचते हैं, लेकिन नये साल के मौके पर यहां की रौनक कुछ और ही देखने को मिलती है.
जोन्हा जलप्रपात, रांची -यह रांची-मुरी रोड पर है, इसकी सुंदरता देखते ही बनती है. जोन्हा जलप्रपात की विशेषता ये भी है कि यहां लोगों को पिकनिक के साथ ही अध्यात्मिक शांति मिलती है.
दशम जलप्रपात – राजधानी में जलप्रपातों की कोई कमी नहीं है. रांची-जमशेदपुर रोड पर बुंडू से पहले स्थित दशम जलप्रपात लोगों में
खासा प्रसिद्ध है. इस जलप्रपात के और भी प्रसिद्ध होने का कारण यहां की शांति भी है.
पंचघाघ जलप्रपात – छोटा नागपुर पठार के प्रदेश का यह जलप्रपात रांची-चाईबासा के बीच खूंटी-चकरधरपुर इलाके में पड़ता है. ये राजधानी के सबसे सेफ जलप्रपात माना जाता है.
बेतला अभयारण्य – पलामू का बेतला राष्ट्रीय उद्यान देश की प्रमुख बाघ और हाथी परियोजना के रूप में भी मशहूर है. इस परियोजना ने एक और जहां वन्य प्राणियों को आश्रय प्रदान किया है, वहीँ आसपास के इलाकों जैसे नेतरहाट को प्रसिद्ध कर दिया है. बेतला का पार्क हाथियों के सरंक्षण के अलावा सैलानियों के आकर्षण का भी केंद्र है.
नेतरहाट के पहाड़ और सनसेट प्वाइंट – गर्मियों में भी नेतरहाट का मौसम बेहद सुकून भरा रहता है, यहां मंगोलिया पॉइन्ट, पाइन
फारेस्ट, नेतरहाट स्कूल दर्शनीय स्थल हैं. हाल के दिनों में नेतरहाट के लोकप्रियता काफी बढ़ गयी है. अब नेतरहाट देश के साथ ही विदेशी सैलानियों को भी आकर्षित करने लगा है.
दलमा अभयारण्य – रांची-जमशेदपुर मार्ग पर अवस्थित दलमा अभयारण्य सैकड़ों वन्य प्राणियों का प्राकृतिक आश्रय स्थल है. विशेष कर छोटे बच्चे इस अभ्यारण में आकर खासा खुश होते हैं.
बिरसा जैविक उद्यान, ओरमांझी – रांची-हजारीबाग रोड पर स्थित यह उद्यान सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है. बता दें कि हाल कि दिनों में शुरु की गयी बोटिंग की व्यवय्था लोगों को खासा आकर्षित करती है.
संजय गांधी जैविक उद्यान, हजारीबाग – कभी हजारीबाग को हजार बाघों का शहर कहा जाता था, यह जैविक उद्यान उसी कड़ी का एक हिस्सा है. ऐसे तो यहां सालभर सैलानी पहुंचते हैं, लेकिन नये साल के मौके पर कुछ और ही रौनक देखने को मिलती है.
बाबा टांगीनाथ धाम– डुमरी गुमला झारखंड के प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बाबा टांगीनाथ धाम पहाड़ी पर स्थित है बाबा टांगीनाथ धाम सेफ स्थल होने के साथ-साथ शक्ति तथा सूर्य एवं वैष्णव धर्म समूह के प्राचीन मूर्तियां देखने को मिलती है.यहां का विशेष आकर्षण अद्भुत अद्वितीय अक्षय त्रिशूल जो कि खुले आकाश के नीचे लगभग चैथी से छठी शताब्दी के आसपास से यहां पर बिना जंग के खुले आसमान के नीचे अपना सीना तान खड़ी है यहां महाशिवरात्रि तथा श्रावण मास कार्तिक पूर्णिमा में हजारों लाखों श्रद्धालु एवं भक्त पूजा के लिए आते हैं.
वैद्यनाथ धाम, देवघर – देवघर में हर साल सावन के महीने में और महाशिवरात्रि में लाखों श्रद्धालु भगवान शिव लिंग को जल अर्पित करने कई राज्यों से आते हैं. बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित होने के कारण इस स्थान को देवघर नाम मिला है.
वासुकीनाथ मंदिर, दुमका- देवघर के शिवालय के अलावा लोग इसके दर्शन के लिए भी आते हैं. वैद्यनाथ मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक दुमका जिला के वासुकीनाथ मंदिर में दर्शन नहीं किये जाते.
रजरप्पा का छिन्मस्तिका मंदिर – इसे देश का प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है. रामगढ़ जिले में इस मंदिर की रौनक मंदिर के बगल से बहने वाली नदी बढ़ाती है.
जगन्नाथ मंदिर और मेला, रांची – उड़ीसा के पुरी जगन्नाथ रथ की तरह यहां भी रथ मेला लगता है और मंदिर भी पुरी धाम की अनुकृति है. यहां भी लोग नया साल मनाने जुटते हैं.
इटखोरी का बौद्ध अवशेष और काली काली मंदिर – इस जगह पर बुद्ध परंपरा के प्राचीन अवशेष हैं और पास में ही भद्रकाली का भव्य मंदिर है.
पहाड़ी मंदिर, रांची – शहर के मध्य में स्थित शिव का यह मंदिर बेहद लोकप्रिय है.
सूर्य मंदिर, बुंडू – भगवान सूर्य की आराधना के लिए समर्पित यह मंदिर बेहद मनोहारी है.
दिउड़ी मंदिर, तमाड़ – यहां देवी दुर्गा की प्राचीन प्रतिमा है, जो बहुत से लोगों को आकर्षित करती है.
पारसनाथ स्थल – श्री समेद शिखरजी तीर्थस्थल जैनियों का पवित्र स्थल है.
मैक्लुस्कीगंज, रांची – एंग्लो-इंडियन समुदाय के एकमात्र गांव को एक इंग्लिश अफसर मैक्लुस्की ने देश भर के एंग्लो-इंडियन को बुलाकर बसाया था हालांकि पहले वाली बात नहीं रही और ना उस संख्या में एंग्लो इंडियन समुदाय, पर अब भी कई कॉटेज, हवेली यहां मौजूद हैं, जिसे देखने लोग आते हैं.
झारखंड वार मेमोरियल, रांची – यह सैनिकों की अदम्य वीरता की याद कायम करने के लिए दीपाटोली सैनिक छावनी के प्रांगण में स्थापित किया गया है.
नक्षत्र वन, रांची – राजधानी रांची स्थित राजभवन के सामने में इसे औषधीय पौंधों और फूलों के बगीचे के साथ इसे बनाया गया है.
रातू का किला – छोटानागपुर महाराजा का इस्टेट और महल रांची से आठ किलोमीटर दूरी पर है, जो कई समारोह का केंद्र बनता है.
जुबली पार्क, जमशेदपुर – टाटा कंपनी के सौजन्य से यह पार्क जमशेदपुर में बनाया गया है, जो शहर की शान है.
खनन पर्यटन
झारखंड राज्य खान और खनिज, उद्योग और वन्यजीव विहार के लिए जाना जाता है. धनबाद शहर के पास कई खान स्थित हैं. छोटानागपुर में खनिज, हजारीबाग में वन्य जीव, जमशेदपुर और बोकारो में उद्योग है. यह लोहा और इस्पात, कोयला और मीका में समृद्ध है. छोटानागपुर लौह अयस्क के क्षेत्र में समृद्ध है. बोकारो लोहा और इस्पात के लिए जाना जाता है. जमशेदपुर राज्य की औद्योगिक राजधानी है.
हेरिटेज पर्यटन
झारखंड में ऐतिहासिक धरोहरों की भी कोई कमी नहीं है. हेरिटेज पर्यटन के नाम से इन्हें विकसित किया जा सकता है. बड़ी संख्या में पर्यटक इन्हें देखने राज्य के अंदर आना चाहेंगे. मसलन पलामू किला के बारे में कहा जाता है कि वहां के चेरों के राजा मेदनीराय ने अपने पुत्र प्रतापराय के लिए इस किले का निर्माण करवाया था. इसकी नीव 1562 में पड़ी थी. इसका सबसे अधिक आकर्षक पक्ष इसका दरवाजा है, जिसे नागपुरी शैली का दरवाजा कहा जाता है. पलामू किला से दो किलोमीटर की दूरी पर कमलदह झील का किला है जो मेदनीराय की रानी का था.
जनजातीय पर्यटन
झारखंड के संताल भारत के सबसे प्राचीनतम जनजातियों में से है. यह आदिवासी वर्ग उनके संगीत, नृत्य और रंगबिरंगे पोशाक के लिए जाना जाता है. झारखंड में जनजातीय पर्यटन की यात्रा संथाल के विभिन्न गांवों में और छोटानागपुर पठार में कर सकते हैं. संथाल के किसी गांवों में यात्रा करके बांस हस्तशिल्प और अन्य रंगबिरंगे हस्तनिर्मित वस्त्र को भी खरीद सकते हैं. आदिवासी समुदाय के मेलों और त्यौहारों में भी आपको उनके सामाजिक जीवन की झलक मिलेगी.
धार्मिक पर्यटन
झारखंड में धार्मिक पर्यटन की अपनी अलग महिमा है. लाखों श्रद्धालु इन धार्मिक स्थलों पर सालों भर आते हैं. देवघर का शिव मंदिर विश्व प्रसिद्ध है. देवघर और दुमका में लाखों लोग धार्मिक यात्रा में मंदिरों में पूजा करने के लिए हर वर्ष यहां आते है. यह धार्मिक पर्यटन के विकास का अच्छा अवसर है. ऐसे कई धार्मिक महत्व के स्थल पूरे राज्य में हैं.