
Newswing Bureau
Ranchi: झारखंड की राजनीति इन दिनों अजीब मोड़ पर आ खड़ी है. राज्य में झामुमो- कांग्रेस-राजद गठबंधन वाली हेमंत सोरेन की सरकार है, भाजपा प्रमुख विपक्षी दल है. लेकिन, आरोप-प्रत्यारोप के तीर प्रकारांतर से भाजपा के भीतर ही चल रहे हैं और सत्तासीन पार्टियां बस मजे ले रही हैं. जी हां, आप सही समझ रहे हैं, हम पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनकी ही कैबिनेट में लगातार 5 सालों तक मंत्री रहे सरयू राय के बीच जारी आरोप-प्रत्यारोप के खेल की ही बात कर रहे हैं.
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प्रदेश भाजपा क्यों खड़ी नहीं दिखती रघुवर के साथ?
कभी-कभी तो ये लगता है, बल्कि इस बात के मजबूत संकेत मिल रहे हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास केवल सरयू राय या सत्ताधारी खेमे के ही नहीं, बल्कि अपनी पार्टी यानी भाजपा की मौजूदा प्रदेश स्तरीय टीम का भी टारगेट बने हुए हैं. ऐसा माननेवाले दलील दे रहे हैं कि ऐसे वक्त में जब ये स्थापित करने की कोशिश हो रही है कि रघुवर दास अकेले पड़ गए हैं, भाजपा क्या कर रही है? पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री पर सार्वजनिक तौर पर हमला हो रहा है, मीडिया में रोज खबरें आ रही हैं, लेकिन भाजपा खेमे में अजीबोगरीब चुप्पी सी है. झारखंड भाजपा के वरिष्ठ नेता इतना तो समझ ही रहे होंगे कि पार्टी की पूर्ववर्ती सरकार के हर निर्णय पर सवाल उठाये जाएंगे और भाजपा अगर अपने नेताओं को पिटने देगी, जवाबी हमला नहीं करेगी तो साख तो भाजपा की ही गिरेगी.
बंगाल, दिल्ली, केरल आदि प्रदेशों में भाजपा भले ही पिट रही हो लेकिन पार्टी ने सरकार चला रही विरोधी पार्टियों से लड़ना नहीं छोड़ा है. भाजपा की स्टेट यूनिट की सक्रियता के कारण ऐसे कई मुद्दे खड़े हो रहे हैं या किये जा रहे हैं जिनकी वजह से उन राज्यों में सत्तासीन विरोधी दलों को भी गाहे-बगाहे डिफेंसिव होना पड़ता है. इससे और कुछ हुआ हो या नहीं, उन राज्यों में भाजपा का मनोबल मजबूत है, जिसका अभाव झारखंड में दिख रहा है.
इस मामले में बाबूलाल का स्टैंड क्या है
सवाल भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी की भूमिका पर भी उठ रहे हैं. भाजपा से अलग होकर भाजपा के खिलाफ बाबूलाल मरांडी की लंबी लड़ाई अब इतिहास बन चुकी. मौजूदा परिदृश्य में बाबूलाल जी पर झारखंड में भाजपा को नेतृत्व देने की जिम्मेवारी है. फिलहाल पार्टी विपक्ष में है तो उनसे मौजूदा सरकार के कामकाज पर सवाल उठाने में सक्रियता दिखाने की उम्मीद होगी तो भाजपा की ओर आनेवाले हमलों का जवाब देने की अपेक्षा भी होगी. ऐसे में, बाबूलाल जी अगर फ्रन्ट पर नहीं खेलेंगे तो नुकसान उन्हें भी होगा. राज्य सरकार ने तो नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता न देकर हाशिये पर डाल रखा ही है, भाजपा के भीतर भी उन्हें हाशिये पर डालने की कोशिश जारी है, इसमें शक नहीं. मरांडी जी की शिथिलता इन कोशिशों को सफल परिणति तक पहुंचा देगी.
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कार्यसमिति की बैठक में होगी इस मसले की चर्चा?
एक जुलाई को भाजपा कार्यसमिति की बैठक होनी है. उस बैठक में भी अगर झारखंड भाजपा के नेता अपनी पूर्ववर्ती सरकार पर हो रहे हमले की चर्चा कर जवाबी रणनीति नहीं बनाते तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि बंदूक भले ही सरयू राय के हाथ में दिख रही हो पर रघुवर दास के शिकार में झारखण्ड भाजपा के प्रभावी नेताओं को भी दिलचस्पी है, राज्य की सत्ता पर काबिज गठबंधन के दलों के लिए तो यह बैठे-बिठाये मिलनेवाला बोनस है ही.
बात निकली है तो दूर तलक जायेगी
जब बात निकली है तो दूर तलक जायेगी भी. सरयू राय के हमले से उत्साहित झामुमो ने पूर्ववर्ती सरकार के पूरे कामकाज की जांच के लिए आयोग बनाने की मांग उठा ही दी है. यानि आनेवाले वक्त में केवल रघुवर दास ही नहीं, उनकी सरकार में शामिल रहे कई दूसरे नेता भी टार्गेट बनेंगे. विभागवार आरोप लगेंगे तो स्वाभाविक है कि निशाने पर केवल तत्कालीन मुख्यमंत्री ही नहीं, संबंधित विभागों के मंत्री भी आयेंगे. जहां तक राज्य की मौजूदा सरकार में शामिल गठबंधन दलों का सवाल है, वे इस खेल में बस मज़ा ले रहे हैं. सरयू राय के प्रति मौजूदा सरकार को बहुत हमदर्दी हो या सरकार बिल्कुल उनके आरोपों के हिसाब से काम करेगी, ऐसा जो कोई भी माने बैठा हो, गलतफहमी का शिकार है. सरयू राय ने तो आयरन ओर का मसला भी उठाया है, लेकिन अब तक तो नहीं लगा कि राज्य सरकार ने इसका संज्ञान भी लिया हो, सरकार के कान पर जूं भी रेंगी हो. जानकार तो यहां तक मानते हैं कि अगर सरयू राय ने ज्यादा आक्रामक रवैया अपनाया और सरकार के लिए समस्या बने तो मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन कई मामलों में रघुवर दास के साथ सरयू राय को भी लपेट लेगा. अभी तो एक इवेंट में बंटे टॉफी-चॉकलेट की बात हो रही है, सरयू राय के बयानों से असहज महसूस करते ही सत्ताधारी गठबंधन रघुवर सरकार के वक्त पूरे 5 साल तक राज्य भर में बंटे गेहूं – चावल यानि खाद्य आपूर्ति विभाग के कामकाज पर उतर आयेगा.
प्रदेश भाजपा चुप रहेगी या ?
सरयू राय और रघुवर दास के बीच आरोप-प्रत्यारोप का ये खेल आजकल में खत्म हो जायेगा, ऐसा मानना खुद को गलतफहमी में रखने जैसा होगा. दिलचस्प यह देखना होगा कि इस जुबानी जंग मे भाजपा की प्रदेश इकाई की क्या भूमिका होती है. विकल्प तो दो ही हैं – रघुवर दास को अकेले छोड़कर चुपचाप पहली बार पूरे 5 साल का कार्यकाल पूरा करनेवाली अपनी ही सरकार के कामकाज पर लगातार सवालिया निशान लगता देखे, बतौर मुख्यमंत्री रघुवर दास के सारे कामकाज से पल्ला झाड़कर यह साबित कर दे कि भाजपा सरकार बनाने के लिए वोट मांगती है, सरकार बनने पर उसके कामकाज की जिम्मेवारी नहीं लेती या फिर रघुवर दास के साथ खड़े होकर उनपर लगनेवाले आरोपों का तुर्रा ब तुर्रा जवाब दे.