
Pratik Piyush
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Jamshedpur : कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम के बाहरी हिस्से को जुस्को और अस्पताल प्रबंधन ने मिलकर चकाचक कर दिया है, लेकिन अंदरूनी हकीकत इससे ठीक विपरीत है. एमजीएम अस्पताल का परिसर खतरनाक मेडिकल कचरे का अंबार बनता जा रहा है. यह कचरा गंभीर संक्रामक रोगों का कारण बन सकता है. यह हालत तब है कि जब स्वास्थ्य मंत्री नियमित रूप से अस्पताल का दौरा करते हैं और उनके द्वारा नियुक्त स्वास्थ्य प्रतिनिधि भी यहां निरंतर निगरानी रखते हैं. एमजीएम अस्पताल में करोड़ों की लागत से लायी गयी इंसीनरेटर मशीन लगभग 9 माह से ज्यादा समय से खराब पड़ी है. सफाई कर्मचारी अस्पताल की सफाई तो करते हैं, लेकिन सफाई के दौरान जमा किये गये मेडिकल वेस्ट को अस्पताल परिसर में ही किसी बंद पड़े कमरों में जमा कर दिया जा रहा है. ताकि इसपर किसी की नजर न पड़े.
कैंटीन से मात्र 100 मीटर दूरी पर जमा है मेडिकल वेस्ट
अस्पताल परिसर के अंदर मरीजों को स्वच्छ और पौष्टिक आहार देने जिम्मेदारी अस्पताल प्रबंधन की होती. लेकिन लापरवाही का आलम यह है कि जहां अस्पताल रसोई से महज 100 मीटर की दूरी पर मेडिकल वेस्ट का अंबार लगा है. ऐसे में रसोई में बननेवाला भी लोगों को बीमार ककर सकता है.
मेडिकल वेस्टेज से फैल सकती हैं गंभीर बीमारियां : सीएस
जिले के सिविल सर्जन डॉक्टर एके लाल ने बताया कि अगर अस्पताल परिसर में रखे गए इन मेडिकल वेस्ट के कारण लोगों को कई तरह की संक्रमण वाले गंभीर का सामना करना पड़ सकता है. यह मेडिकल वेस्टेज का संक्रमण अगर खुले खाने तक पहुंचेगा, तो मरीजों के लिए यह और खतरनाक साबित होता है.
हमारा इंसीनरेटर कुछ माह से खराब हो गया है. इसे बनाने के लिए इंजीनियर की टीम भी आयी थी, पर उसमें कुछ तकनीकी खामियों के कारण अभी कुछ समय और लगेगा. इसी के चलते कुछ मेडिकल वेस्टेज जमा हो गया है. इसे हटाने की तैयारी चल रही है. – डॉ अरुण कुमार अधीक्षक एमजीएम अस्पताल
कोरोना आने के बाद बढ़ गया मेडिकल वेस्ट

– वेस्ट कई तरह के होते हैं, इनमें मेडिकल वेस्ट सबसे खतरनाक होता है. अस्पताल, क्लीनिक और मेडिकल स्टोर से निकलने वाले कचरे को मेडिकल वेस्ट कहते हैं. इस्तेमाल की गयी पट्टियां, इंजेक्शन, सिरिंज, दवा के रैपर, ड्रिपिंग पाइप, दवा की बोतल जैसा हॉस्पिटल से निकला हर सामान मेडिकल वेस्ट होता है.
– कोरोना वायरस आने के बाद से मेडिकल वेस्ट की तादाद और ज्यादा बढ़ गयी है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के अनुसार भारत में रोजाना 702 मीट्रिक टन मेडिकल वेस्ट निकल रहा है. इसमें से 17% यानी 101 मीट्रिक टन मेडिकल वेस्ट सिर्फ कोरोना के कारण निकल रहा है.
– मेडिकल वेस्ट का दायरा बहुत बड़ा है. इलाज के दौरान कई बार मरीज का खून निकल आता है, इसे साफ करने के लिए यूज किये जानेवाले कपड़े या टॉवेल भी मेडिकल वेस्ट होते हैं. सर्जरी के दौरान मरीज के शरीर से निकलने वाले टिश्यूज भी मेडिकल वेस्ट होते हैं। मरीज का रक्त, यूरीन और स्वाब जैसे सैंपल भी मेडिकल वेस्ट ही होते हैं. संक्रामक रोग से पीड़ित मरीज के कमरे से निकलने वाला हर सामान मेडिकल वेस्ट होता है.
5 तरह के होते हैं मेडिकल वेस्ट
मेडिकल वेस्ट की 5 कैटेगरी होती हैं, जिन्हें जानना बेहद जरूरी है. जानकारी के अभाव में लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं या कहीं भी फेंक देते हैं. ऐसे में संक्रमण होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

मेडिकल वेस्ट के क्या नुकसान हैं?
– मेडिकल वेस्ट से होनेवाले नुकसान आम कचरे से कहीं ज्यादा हैं. ज्यादातर मेडिकल वेस्ट डिस्पोजेबल नहीं होते इसलिए इन्हें नाले, नदी या समुद्र में फेंकना पर्यावरण में जहर मिलाने जैसा है.
– WHO के अनुसार मेडिकल वेस्ट को सही तरह से मैनेज न किया जाये, तो इसमें संक्रामक बैक्टीरिया पनप जाते हैं, जो महामारी तक की वजह बन सकते हैं.
– एक्सरे जैसे रेडियो एक्टिव मेडिकल वेस्ट हजारों सालों तक नष्ट नहीं होते. इनसे मिट्टी में प्रदूषण का स्तर बहुत तेजी से बढ़ता है.
– इंसानों और पशुओं का कोई भी सैंपल संक्रामक साबित हो सकता है. इनसे संचारी रोग यानी एक से दूसरे को होने वाली बीमारियां हो सकती हैं.
– फार्मास्यूटिकल से जुड़े वेस्ट जैसे एक्सपायर दवाएं और केमिकल्स जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों के लिए बेहद नुकसानदेह हैं.