
Faisal Aurag
औद्योगिक ग्रोथरेट निगेटिव में पहुंच जाना, अर्थव्यस्था की मंदी के तथ्य को चीख-चीख कर बता रहा है. बावजूद इसके मोदी सरकार हालात के संदर्भ में वास्तविकता बताने के बजाय उसे झुठलाने की कोशिश ही कर रही है. पीएमसी बैंक की घटनाओं के बाद तो बैंकिंग सेक्टर को ले कर संशय का माहौल धीरे-धीरे पसरता ही जा रहा है.
अब बैंकर दीपक पारेख ने बेहद गंभीर बात कह दी है. बारूद के ढेर पर बैठी अर्थव्यवस्था को लेकर इंडस्ट्री का असंतोष अभी मुखर तो नहीं हुआ है, लेकिन इसकी चर्चा इंडस्ट्री खुले तौर पर करने लगी है. जिस तरह कश्मीर के नार्मल होने के प्रचार का अब सरकार का ही एक विज्ञापन पर्दाफाश कर रहा है.
इस विज्ञापन का मूल थीम कश्मीर के हालात के नार्मल नहीं होने का संकेत है.
इसे भी पढ़ेंः #Bollywood अभिनेत्री अमीषा पटेल के खिलाफ रांची कोर्ट से अरेस्ट वारंट जारी, प्रोड्यूसर ने दर्ज करवायी थी एफआइआर
Notice the pleading tone of state admin in a front page ad for Greater Kashmir. Despite the brutal lockdown since 5th August, Kashmiris have been resolute about a civil curfew as a mark of protest. If the authorises truly cared for people, they’d lift the telecom ban pic.twitter.com/RC64DrO676
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) October 11, 2019
इसे भी पढ़ेंः राजधानी में हर दिन 8 अपराधियों को गिरफ्तार कर रही पुलिस, पिछले 9 महीनों में 2248 की हुई गिरफ्तारी
राकेश कायस्थ एक रिपोर्ट में लिखते हैं: टाइम्स ऑफ इंडिया के मुंबई संस्करण ने अपने पहले पन्ने पर देश के टॉप बैंकर दीपक पारेख का गौर करने लायक बयान छापा है.
एचडीएफसी बैंक के चेयरमैन पारेख कह रहे हैं कि यह सिस्टम जमाकर्ता और निवेशकों की खून-पसीने की कमाई की हिफाजत करने में सक्षम नहीं है.
अब इस बात का क्या मतलब निकाला जाये? कॉरपोरेट जगत के महारथी जानते हैं कि इस सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलने के नतीजे क्या हो सकते हैं. इसलिए पहले तीन लाइन में तारीफ आती है और उसके बाद धीरे से कोई यह कहता है कि फाइव ट्रिलियन इकोनॉमी का का दावा सिर्फ छलावा है.
इसे भी पढ़ेंः #Modi-XiJinping meeting में आतंकवाद पर हुआ मंथन, पर कश्मीर मुद्दा गायब रहा, चीनी राष्ट्रपति नेपाल रवाना
लेकिन कॉरपोरेट सेक्टर ने हाल के दिनों में मुंह खोला है और ऑटोमोबाइल से लेकर बैकिंग तक के लोग बोलने लगे हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पानी अब सिर के ऊपर से गुजर रहा है.
दीपक पारेख कह रहे हैं कि जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे इधर-उधर झोंक देने से मूर्खतापूर्ण और गैर-जिम्मेदार कदम कोई और नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि बड़े-बड़े लोन चुटकियों में माफ कर देने की जो नीति है, उसका खामियाजा देश के आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है.
यह बार-बार स्पष्ट है कि देश की पूरी अर्थव्यस्था बारूद के ढेर पर है.
दीपक पारेख की बातें उस बेचैनी को स्पष्ट कर रही हैं, जिससे ईमानदार बैंकर परेशान हैं. सरकार की नीतियों को लेकर बैंकरों के एक सेक्शन में नारजगी गहरा रही है.
पारेख की बातों का निहितार्थ स्पष्ट है कि सरकार को गंभीरता से अपनी आर्थिक हालत को समझते हुए फैसला लेना चाहिए. 2014 में नरेंद्र मोदी को ले कर बैंक में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों में उत्साह का माहौल था.
इस उत्साह का बेचैनी में बदल जाना बताता है कि रिजर्व बैंक की स्वायत्ता से खिलवाड़ करने की प्रवृति और कुछ खास कारपोरेट को लेकर पक्षधरता को ले कर नारजगी बढ़ रही है.
आइये देखते हैं कि पिछले 6 सालो में बैंको ने जो रकम राइट ऑफ की है यानी बट्टा खाते में डाली है, उसमें उत्तररोत्तर कितनी वृध्दि हुई है.
आपको जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि CNN NEWS 18 को आरबीआइ से RTI के जरिये जो बैंकों का डाटा मिला है, उसमें पता लगा है कि 2018-19 में सभी कॉमर्शियल बैंकों द्वारा 100 करोड़ रुपये व उससे अधिक के बैड लोन का कुल 2.75 लाख करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाल दिया गया है. यानी राइट ऑफ कर दिया गया है.
अब आप देखिये कि सरकारी बैंकों ने पिछले 6 साल में कितने बैड लोन को राइट ऑफ किया था.
2013-14 | 34,409 करोड़ |
2014-15 | 49,018 करोड़ |
2015-16 | 57,585 करोड़ |
2016-17 | 1,08,374 करोड़ |
2017-18 | 161,328 करोड़ |
2018-19 | 2.75 लाख करोड़ |
यानी 2013-14 में 34,409 करोड़ रुपये और 2018-19 में सीधे 2.75 लाख करोड़ रुपये. क्या ये कमाल भी नेहरू जी ने किया है?
देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने 2016-17 में 20,339 करोड़ रुपये के फंसे कर्ज को बट्टा खाते डाला था. और 2018 -19 में भारतीय स्टेट बैंक ने 76,000 करोड़ रुपये के फंसे कर्ज को बट्टा खाते में डाल दिया है.
यानी मात्र 2 साल में यह रकम तिगुनी से भी अधिक हो गयी है.
पीएमसी बैंक को ले कर यह बात सामने आ चुकी है कि किसी एक को फेवर करने और कर्ज देने के कारण वह डूबने की स्थिति में पहुंचा.
इंडस्ट्री का निगेटिव ग्रोथ ऑटो सेक्टर का संकट से नहीं उबरना बल्कि और ज्यादा उसमें फंसना बता रहा है कि वित मंत्री की उन घोषणाओं का कोई सकारात्मक असर इंडस्ट्री पर नहीं पड़ा है, जिन्हें उबारने के लिए राहत देने की बात कही गयी थी.
इसे भी पढ़ेंः पश्चिम बंगाल : #SoniaGandhi चाहती हैं राज्य में वाम मोर्चे के साथ कांग्रेस का गठबंधन बने