
Jamshedpur : राज्य के पूर्व मंत्री तथा जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने ठेका-टेंडर मैनेज करने के खेल का खुलासा करते हुए मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने सरकार के उस परिपत्र को वापस लेने की मांग की है, जिसके अनुसार संवेदक कोई काम तभी शुरू कर पायेगा, जब उस क्षेत्र के विधायक कार्य का शिलान्यास करेंगे. सरयू राय ने रघुवर सरकार में मुख्य सचिव रही राजबाला वर्मा की ओर इशारा करते हुए लिखा है कि पूर्ववर्ती सरकार में निविदाओं को मैनेज करने का जो सिस्टम तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा मुख्यमंत्री की जानकारी में विकसित किया गया था. मौजूदा शासन में उसका विस्तार प्रखंड एवं विधानसभा स्तर पर हो गया है. सरयू राय ने मुख्यमंत्री को बताया है कि इस प्रक्रिया का शिकार झारखंड विधानसभा भवन और झारखंड उच्च न्यायालय भवन हो चुके हैं, जिनकी न्यायिक जांच कराने का आदेश आपकी सरकार ने दिया है. वर्तमान में इस अनुभव की आजमाइश प्रखंड एवं विधानसभा स्तर की निविदाओं में धड़ल्ले से हो रही है.

सरकार के परिपत्र की आड़ में हो रहा भ्रष्टाचार

टेंडर मैनेज के खेल का खुलासा करते हुए सरयू राय ने लिखा है कि पिछले माह जमशेदपुर के एक युवा ठेकेदार ने उन्हें बताया कि उसने जल संसाधन विभाग के दो टेंडर प्रचलित परंपरा को चुनौती देकर हासिल किया है. लेकिन एक महीने बाद भी उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा है, कहा जा रहा है कि क्षेत्रीय विधायक के शिलान्यास करने पर ही काम शुरू हो सकेगा. ठेकेदार ने बताया कि शिलान्यास की जो शर्तें हैं, उन्हें पूरा करना उसके लिए संभव नहीं है. इस कारण उसे काम शुरू करने की अनुमति नहीं मिल रही है. सरयू राय ने कहा है कि सरकार के परिपत्रों में केंद्र और राज्य सरकार की किसी परियोजना के शिलान्यास एवं उद्घाटन के समय आमंत्रित किये जाने वाले विभिन्न श्रेणी के माननीयों की प्राथमिकता तय की गयी है, लेकिन इसकी आड़ में एक अस्वस्थ और अनधिकृत परंपरा को प्रोत्साहन मिल रहा है जो अनियमित है और भ्रष्ट आचरण को प्रोत्साहित करनेवाला है, सरयू राय को मुख्यमंत्री से इस व्यवस्था को जनहित में समाप्त करने की सलाह दी है साथ ही इस भ्रष्ट प्रक्रिया को प्रोत्साहित एवं विस्तारित करनेवालों पर कठोर कारवाई करने की बात कही है.
क्या है टेंडर मैनेज करने का सिस्टम
सरकार के किसी विभाग में निविदा का निष्पादन करने की प्रक्रिया में पहले ही तय हो जाता है कि यह निविदा किसके पक्ष में निष्पादित होनी है. इसी के अनुसार यह भी तय हो जाता है कि कौन-कौन संवेदक इस निविदा में भाग लेगा. तयशुदा संवेदक को ही निविदा डालने का मौका मिलता है. उनमें से एक ठेकेदार, जिसके पक्ष में निविदा जानी है, जितनी दर अपने टेंडर पेपर में डालता है, उससे अधिक दर बाकी संवेदक अपने-अपने टेंडर पेपर में भरते हैं. इन्हें सहयोगी या सहायक संवेदक कहा जाता है. सहायक संवेदक ऐसा इस आश्वासन पर करते हैं कि इसी प्रक्रिया के अनुसार उन्हें भी आगे काम मिलेंगे. इस प्रक्रिया में आम तौर पर निविदा निष्पादन की दर निविदा के प्राक्कलन दर से ऊंची रहती है. यदि पसंदीदा ठेकेदार की वित्तीय क्षमता प्राक्कलित दर के अनुरूप नहीं रहती है, तो उसकी मदद में प्राक्कलित दर घटा दी जाती है और पसंदीदा संवेदक के पक्ष में निर्णय हो जाने के बाद कार्य अवधि में किसी न किसी बहाने प्राक्कलित दर में वृद्धि कर दी जाती है. यदि कोई संवेदक इस प्रक्रिया को चुनौती देकर निविदा हासिल करने में सफल हो जाता है, तो उसके सामने अनेक अड़चनें खड़ी की जाती हैं ताकि या तो वह काम छोड़ दे या थोपी गयी मनमानी शर्तों को मानने के लिए मजबूर हो जाये.
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