
Ranchi: झारखंड (Jharkhand) के किसानों से धान की सरकारी स्तर पर खरीदारी के पहले बिचौलिए सक्रिय हो उठे हैं. हाल यह है कि किसानों से मात्र 10 से 11 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिचौलिए धान खरीद रहे हैं, जबकि सरकार ने धान खरीद के लिए 2050 रुपये प्रति क्विंटल की दर निर्धारित की है.
सरकार ने धान क्रय के जो केंद्र बनाये हैं, वहां किसानों से खरीदारी शुरू नहीं हुई है. कई जिलों में अभी धान क्रय केंद्र बनाये भी नहीं जा सके हैं. ऐसे में बिचौलिए किसानों से औने-पौने भाव पर धान खरीद रहे हैं. हालांकि कुछ क्रय केंद्रो में सूखे धान की खरीदारी की जा रही है, लेकिन उन्हें अभी तक वादे के मुताबिक पैसों का भी भुगतान तत्काल नहीं किया जा रहा है.
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सरकारी खरीदारी 15 दिसंबर से होगी
सरकार ने किसानों से 15 दिसंबर के बाद से धान की खरीदारी करने का निर्देश दिया है. बिचौलिए धान की कीमत तत्काल अदा करने का लालच देकर किसानों से 10-11 रुपए किलो धान की खरीदारी कर रहे हैं. राजधानी स्थित रातू ब्लॉक के किसान बताते हैं कि कोरोना काल में आर्थिक तंगी से जूझने के बाद अब धान की कीमतों में भी भारी गिरावट दिख रही है. जो धान पिछले वर्ष 16 रुपए किलो तक बिका है वो आज 11 रुपए बिक रहा है. इससे किसानों का मेहनताना भी नहीं निकल पा रहा है।
सरकार 2050 रुपये क्विंटल खरीदेगी धान
सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में धान की खरीदारी के लिए 2050 रुपए प्रति क्विंटल की दर तय की है, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी बिचैलिए अभी से ही हावी होते नजर आ रहे हैं. सरकार ने फिलहाल गीला धान खरीदने पर रोक लगायी है, लेकिन आश्वासन दिया है कि सरकारी स्तर पर धान की खरीदारी मार्च अंत तक करेगी.
लेकिन छोटे किसानों के समक्ष सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उनके पास धान को घर में रखने की जगह नहीं है. दूसरी बात, रबी फसल के लिए उन्हें तत्काल नगदी की जरूरत है. नतीजतन वे आसानी से बिचौलियों के ट्रैप में आ रहे हैं.
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अभी केंद्र बंद हैं, लेकिन 20 प्रतिशत अधिक केंद्र खोलने की तैयारी
सूबे में धान खरीदारी के लिए लगभग सभी केंद्रो में ताला लटका है. लेकिन सरकार का कहना है कि इस बार 20 प्रतिशत ज्यादा धान क्रय केंद्र खोले जायेंगे. इस बार सरकार ने धान खरीदारी का लक्ष्य भी बढ़ाया है. इस बार राज्य सरकार 4.50 लाख क्विंटल धान खरीदारी का लक्ष्य रखा है. खाद्य-आपूर्ति विभाग को अनुसार इस बार भी रिकार्ड धान की खरीदारी होने की उम्मीद है.
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