
Latehar/ Hazaribagh : स्वास्थ्य सेवा पर राज्य सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के कारण लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. एक तरफ जहां सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त कराने की बात करती है. वहीं दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों के लोग स्वास्थ्य विभाग की लचर व्यवस्था से परेशान हैं. कहीं एक पिता मृत बेटे के शव को लेकर कई किलोमीटर तक पैदल चलता है तो कहीं एक पिता सर्पदंश की शिकार बेटी को कंधे पर उठाए अस्पताल में इधर से उधर बेहाल फिरता है. यही तो है झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था का कड़वा सच. लातेहार जिला का भी बुरा हाल है. दरअसल, मामला जिले के मनिका स्थित सामुदायिक स्वास्थय केंद्र का है. जहां रीमा देवी नाम की एक महिला ने मृत बच्चे को जन्म दिया था. जिसके बाद महिला के पति मनोज भुइंया ने स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी राजू कच्छप से मृत बेटे के शव को लो जाने के लिए वाहन उपलब्ध कराने की मांग की थी. लेकिन स्वास्थ्य केंद्र की उदासीनता की वजह से उसे वाहन तक उपलब्ध नहीं कराया गया.

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गोद में शव उठाकर पिता ने पांच किलोमीटर की दूरी तय की
प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी ने वाहन उपलब्ध कराने के बारे में कहा कि वह उसे नवजात बेटे के शव को ले जाने के लिए वाहन उपलब्ध नहीं करा सकते हैं. जिसके बाद निराश पिता ने मृत बेटे के शव को गोद में उठाया और पैदल ही पांच किलोमीटर की दूरी तय की. वो पैदल ही बांझीपोखर गांव पहुंचे और नवजात के शव को दफन किया. उल्लेखनीय है कि मंगलवार की सुबह नौ बजे ही नवजात की मृत्यु हो चुकी थी.
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क्या है मामला
स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टरों के मुताबिक महिला रीमा देवी ने मृत बच्चे को जन्म दिया था. जिसके बाद उसके पति ने वाहन की मांग की थी लेकिन वह सुविधा उसे नहीं मिली. महिला के पति मनोज भुइंया ने बताया कि रीमा को अस्पताल से घर ले जाने के लिए ममता वाहन तक की सुविधा नहीं दी गयी. मनोज ने बताया कि उसने प्रसव के बाद स्वास्थ्यकर्मियों ने उससे कहा कि बच्चे के शव को वो घर ले जाएं और प्रसूता को वहीं रहने दें. जिसपर मनोज ने वहां के प्रबंधन से कहा कि उसके पास पैसे नहीं है. उसे शव को ले जाने के लिए वाहन उपलब्ध करा दिया जाए. बारिश के वक्त पर वो कैसे मृत बच्चे को लेकर गांव जाएंगे. लेकिन इसके बावजूद किसी ने उसकी सूध तक नहीं ली. और ना ही किसी का दिल पिघला.
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क्या कहना है प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी का
वहीं दूसरी ओर वाहन उपलब्ध नहीं कराने के संबंध में जब प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अस्पताल में शव को ले जाने के लिए किसी तरह की कोई सुविधा नहीं है. इसी वजह से वाहन उपलब्ध नहीं कराया गया.
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पहले भी स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता देखने को मिली है
यह कोई एक मामला नहीं जब स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता देखने को मिली हो. अक्सर इस तरह के मामले देखने को मिल जाते हैं जो स्वास्थ्य विभाग पर सवाल खड़े करते हैं. ऐसा ही एक मामला हजारीबाग का भी है जहां एक बेबस पिता बेटी को अपने कंधे पर उठाए इलाज के लिए इधर-उधर भटकता रहा. उल्लेखनीय है कि जिले के चतरा गिद्धौर प्रखंड सिंदवारी गांव निवासी सीताराम यादव की बेटी को सांप ने डंस लिया था. जिसके बाद पिता अपनी बेटी को लेकर इलाज के लिए सदर अस्पताल पहुंचा था. लेकिन लेकिन अस्पताल में स्ट्रेचर तक उसे उपलब्ध नहीं कराया गया. जिसके बाद बेबस पिता बेटी को कंधे पर उठाए लगभग एक घंटे तक अस्पताल में एक जगह से दूसरी जगह घूमता रहा. लेकिन किसी भी स्वास्थ्यकर्मी ने उसकी मदद तक नहीं की. इस घटना के बाद एक सवाल यह भी उठता है कि क्या अस्पताल में किसी बीमार के लिए एक स्ट्रेचर तक उपलब्ध नहीं है ? क्या लोग आज इतने ज्यादा कठोर हो गए हैं कि मदद तक करना उचित नहीं समझते ? क्या स्वास्थ्य विभाग इतना संवेदनशून्य हो चुका है कि उसे किसी मरीज की फिक्र ही नहीं रह गयी है ? देश का आम नागरिक हर दिन इस तरह की घटना का शिकार है. क्या कभी स्थिति में सुधार होगा ?
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