
Patamda : आदिवासी सेंगेल अभियान की पटमदा-बोड़ाम प्रखंड कमेटी के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार को 5 सूत्री ज्ञापन सौंपकर प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया गया. सती प्रथा की तरह डायन प्रथा आदिवासी गांव-समाज में व्याप्त एक पुरानी और बीमार मानसिकता का खतरनाक अमानवीय परंपरा है. डायन प्रथा आदिवासी गांव-समाज में झारखंड, बंगाल, उड़ीसा, असम, बिहार आदि प्रांतों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों और खासकर संताल समाज में वृहद स्तर पर व्याप्त है. जहां आदिवासी सेंगेल अभियान विगत दो दशकों से ज्यादा समय से आदिवासी सशक्तिकरण के कार्य में प्रयासरत है. एएसए के अनुसार यह अंधविश्वास से ज्यादा आदिवासी गांव- समाज की विकृत मानसिकता का प्रतिफल है. डायन हिंसा, हत्या, प्रताड़ना आदि की घटनाओं के पीछे घटित आदिवासी महिलाओं की हत्या, हिंसा, प्रताड़ना, निवस्त्र कर गांव में घुमाना, दुष्कर्म करना, मैला पिलाना आदि के खिलाफ अधिकांश शिक्षित- अशिक्षित, पुरुष-महिला आदिवासी चुप रहते हैं. अधिकांश आदिवासी सामाजिक-राजनीतिक संगठनों के अगुआ और आदिवासी स्वशासन के प्रमुख आदि भी ऐसे घिनौने, हैवानियत से भरे अमानवीय कृत्यों का विरोध करने की बजाय अप्रत्यक्ष रुप से सहयोग करते दिखाई पड़ते हैं. यह संविधान-कानून द्वारा संचालित भारतीय जनजीवन में मानवीय गरिमा, न्याय और शांति के रास्ते पर आतंकवादी हमले की तरह एक अहम चुनौती है.
ये थे शामिल
बोड़ाम प्रखंड अध्यक्ष सुरेन चंद्र हांसदा, सचिव सुनील मुर्मू, पंचायत टावर विनंद टुडू, बोड़ाम प्रभारी उदय मुर्मू, सेंगेल माझी बलदेव मांडी, शिव मांडी, तिलोका सोरेन, रबनी मुर्मू, सागुन टुडू व रंजीत टुडू आदि मौजूद थे.


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