
Ranchi: पूर्व मंत्री सरयू राय और महाधिवक्ता अजित कुमार के बीच का विवाद अब और बड़ी शक्ल लेने जा रहा है. इन दोनों के बीच का विवाद जगजाहिर है. सरयू राय ने 20 घंटे पहले ट्विट कर इस बात की जानकारी दी है. उन्होंने कहा है कि “झारखंड के महाधिवक्ता के विरूद्ध मुकदमा करने के लिए डॉ सुब्रमण्यम स्वामी एवं दिल्ली के कतिपय अन्य वरीय अधिवक्ताओं से कल (मंगलवार) मिलना तय हुआ है.
झारखंड के महाधिवक्ता के विरूद्ध मुकदमा करने के लिये डॉ० सुब्रमण्यन स्वामी एवं दिल्ली के कतिपय अन्य वरीय अधिवक्ताओं से कल मिलना तय हुआ है.भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में महाधिवक्ता की शह पर झारखंड बार काउंसिल द्वारा मेरे विरूद्ध पारित निन्दा प्रस्ताव पर अब क़ानूनी लड़ाई निश्चित है.
— Saryu Roy (@roysaryu) January 12, 2020


भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में महाधिवक्ता की शह पर झारखंड बार काउंसिल ने मेरे विरूद्ध पारित निन्दा प्रस्ताव पर अब क़ानूनी लड़ाई निश्चित है.” सरयू राय के इस बयान के बाद चर्चा का बाजार गर्म है. सरयू राय 2019 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से उभर कर सामने आए हैं. उससे उनसे जुड़ी हर बात को राजनीतिक गलियारों में गंभीरता से लिया जाने लगा है.




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क्या है सरयू और महाधिवक्ता के बीच का विवाद
23 नवंबर को बार काउंसिल की एक बैठक हुई. बैठक में बतौर बार काउंसिल के अध्यक्ष होने के नाते एक बयान को लेकर महाधिवक्ता अजित कुमार ने सरयू राय के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया. जिसके बाद से सरयू राय लगातार इस बात का विरोध कर रहे हैं.
उन्होंने इसकी शिकायत तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास से भी की थी. साथ ही बार काउंसिल को भी चिट्ठी लिखी थी. सरयू राय ने कैबिनेट की बैठक में इस बात को उठाया था. लेकिन सरकार की तरफ से किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की गयी थी. जिसके बाद सरयू राय ने बार काउंसिल को चिट्ठी लिखकर निंदा प्रस्ताव के पारित होने पर ऐतराज जताया.
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सरयू राय का बार काउंसिल से चंद सवाल
उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि बार काउंसिल के अध्यक्ष ने महाधिवक्ता के कंडक्ट को लेकर बैठक कैसे आहूत की, जिसमें दोनों व्यक्ति एक ही थे. उन्होंने अपने दूसरे सवाल में कहा है कि क्या बैठक में मौजूद सदस्यों के सामने बैठक से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत किये गये थे. सिर्फ महाधिवक्ता द्वारा कही गयी बातों को ही जारी किया गया था.
मैं यह कहना चाहता हूं कि महाधिवक्ता की ओर से एकतरफा बातें बैठक में रखी गयीं. मैं कहना चाहता हूं कि 23 नवंबर की बैठक में महाधिवक्ता की ओर से रखी गयी बातों पर काउंसिल के सदस्यों द्वारा सहमति दी गयी. ऐसे संवैधानिक और प्रशासनिक तंत्र में कई बार न्यायिक हितों का टकराव होता है.
मैं एक कैबिनेट स्तर का मंत्री हूं. मुझे लगता है कि मुख्य कानूनी सलाहकार की भूमिका में महाधिवक्ता ने कोई काम नहीं किया है. इससे झारखंड सरकार और यहां के नागरिकों को काफी नुकसान हो रहा है.
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