
Ranchi: झारखंड के प्रभारी मुख्य सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर चौधरी 8 मई को रिटायर हो रहे हैं. उनके रिटायरमेंट के बाद आयोग में अगली नियुक्ति होने तक तालाबंदी की नौबत होनी तय है. यह पहली बार होगा जब राज्य सूचना आयोग, झारखंड में एक भी सदस्य नहीं होगा.
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इसके कारण आयोग में ना सिर्फ 6000 से भी अधिक मामले लंबित पड़े रह जायेंगे बल्कि लगभग 30 कर्मचारियों को वेतन के लाले भी पड़ जायेंगे. प्रभारी सीआइसी हिमांशु शेखर चौधरी ने अपने स्तर से सूचना आयोग के प्रति लोगों का भरोसा बहल करने की दिशा में कई सार्थक प्रयास किये हैं.


अपने कक्ष में सीसीटीवी लगाने की बात हो या सुदूरवर्ती इलाकों में बैठे लोगों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई का मौका दिलाना, उन्होंने इसके लिए सकारात्मक पहल भी की. न्यूज़विंग से बातचीत में उन्होंने आयोग में अपने कार्यकाल के अनुभव और राज्य में सूचना कानून की स्थिति पर अपने विचार साझा किये.


आयोग के प्रति घटता भरोसा
हिमांशु शेखर चौधरी के अनुसार, जब उन्होंने इनफॉर्मेशन कमिश्नर का पद संभाला तो महसूस किया कि सूचना आयोग के प्रति लोगों का भरोसा निरंतर कम हो रहा था. आवेदकों को 5-7 सालों से सूचना पाने में समस्या आ रही थी.
जनसूचना पदाधिकारी और यहां तक कि सूचना आयोग आरटीआइ आवेदनों के मामले में समुचित गंभीरता नहीं दिखाता था. लोगों का आयोग के प्रति विश्वास बढ़े, इसके लिए अलग-अलग जिलों में जागरूकता अभियान चलाया गया.
पीआइओ, विभागीय पदाधिकारियों को आरटीआइ आवेदनों पर जवाबदेही लेने को कहा गया. हालांकि यह भी दिखा कि कई आवेदनकर्ता सूचना कानून के उपयोग के मामले में बेहद सतही रवैया अपना रहे हैं. किसी आवेदन पर अपने मनमुताबिक निर्णय नहीं आने पर आयोग के खिलाफ विरोध, धरना-प्रदर्शन को औजार बनाने लगते हैं. कायदे से किसी निर्णय के खिलाफ उन्हें अदालतों (हाईकोर्ट) में जाना चाहिये.
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आयोग में पारदर्शिता की मुहिम
हिमांशु शेखर चौधरी ने अपने कक्ष में सीसीटीवी लगवाए जाने की पहल की थी. उनके मुताबिक इससे किसी आवेदन पर सुनवाई क्रम में पारदर्शिता और आवेदकों का भरोसा बढ़ाने में मदद मिली.
आयोग में आने वाले सभी आवेदनों को आयोग की वेबसाइट पर दिए जाने की व्यवस्था बनवायी. खासकर जिन मामलों में जजमेंट होता है, उससे संबंधित सूचनाएं अगले दिन वेबसाइट पर उपलब्ध करायी जाती हैं.
दूर-दराज के इलाकों में रहनेवाले लोगों की सहूलियत के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा आयोग के स्तर से की जाती रही है. ज्वाइंट बेंच के जरिये आवेदनों पर सुनवाई किये जाने की भी पहल हुई थी. इससे ऐसे आवेदक जिनके 100 से भी अधिक केस आयोग में लंबित पड़े हैं, उन्हें जल्द-से-जल्द सूचनाएं मुहैया कराये जाने में मदद की गयी.
पदाधिकारियों के पीपुल फ्रेंडली होने से बनेगी बात
हिमांशु शेखर चौधरी के मुताबिक, जवाबदेह पदाधिकारियों में लोगों के साथ सहयोग की भावना उतनी बेहतर नहीं है. अगर रही होती तो सूचना कानून की जरुरत ही नहीं पड़ती. आवेदन पर महीनेभर में सूचना देने, प्रथम अपील पर सूचना उपलब्ध कराये जाने की प्रवृत्ति अगर पदाधिकारियों में हो तो आयोग का काम आसान होता.
पर ऐसा नहीं होने के कारण ही आयोग में हजारों मामले लंबित पड़े हैं. हालांकि सूचना आयोग में पूरी टीम नहीं होने से भी इसका असर पड़ा है. लंबित आवेदनों पर सुनवाई करने को लॉकडाउन से पूर्व हर दिन दूसरी पाली में 70 से 80 मामलों की सुनवाई की जा रही थी. हर सप्ताह लगभग 500 केस का निष्पादन किया जा रहा था.
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आवेदनों से भयादोहन
प्रभारी मुख्य सूचना आयुक्त के अनुसार, कुछ जगहों से पीआइओ (जन सूचना पदाधिकारी) की शिकायत आती रही कि आवेदनकर्ता आरटीआइ के जरिये उनका भयादोहन कर रहे हैं. हालांकि कोई भी इसे साबित नहीं कर सका. उनसे कहा गया कि अगर जन सूचना पदाधिकारी नियमतः सारी सूचनाएं उपलब्ध किया करें तो यह स्थिति नहीं बनेगी. आवेदकों को भी चाहिये कि वे करप्शन की जड़ें काटने में आरटीआइ का उपयोग करें ना कि आरटीआइ की जड़ें काटे.
आयोग में सरकारी पदाधिकारियों की नियुक्ति से चुनौती
हिमांशु शेखर चौधरी के मुताबिक, सूचना आयोग में 55 से 60 वर्ष की आयु के क्रियाशील लोगों को लाया जाना स्वागतयोग्य होगा. सरकारी पदाधिकारियों का रिटायरमेंट के बाद आयोग में आना किसी के लिए उत्साहजनक नहीं दिखता. 60 से नीचे की आयु सीमा रहने से दायित्वों को लेकर ज्यादा जवाबदेही दिखती है. आयोग के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ाने वाले लोगों की नियुक्ति आयोग में हो, टाइमपास करनेवालों से बचा जाए.
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