
Ranchi : यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के झारखंड प्रभारी आरपीएन सिंह ने अपना इस्तीफा सोनिया गांधी को भेज दिया है और अपराह्न तीन बजे भाजपा में शामिल हो गये. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, यूपी विधानसभा चुनाव के प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय में आरपीएन सिंह को विधिवत भाजपा में शामिल कराया. इससे पहले आरपीएन सिंह ने ट्वीट कर कहा “आज, जब पूरा राष्ट्र गणतन्त्र दिवस का उत्सव मना रहा है, मैं अपने राजनैतिक जीवन में नया अध्याय आरंभ कर रहा हूं. जय हिंद” .
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मालूम हो कि पिछले एक सप्ताह से ही राजनीतिक गलियारे में आरपीएन सिंह के भाजपा में शामिल होने की बात चल रही थी. मालूम हो कि मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके आरपीएन सिंह वर्तमान में झारखंड के कांग्रेस प्रभारी हैं. आरपीएन के नेतृत्व में ही पिछले विधानसभा चुनाव में झामुमो, कांग्रेस और राजद का महागठबंधन हुआ था. चुनाव में महागठबंधन को बड़ी सफलता मिली थी. झारखंड अलग राज्य बनने के बाद कांग्रेस को सबसे बड़ी सफलता भी झारखंड में वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में मिली थी और 16 सीटों पर पार्टी के विधायक जीत कर आये थे.

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कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह (आरपीएन सिंह) यूपी और बिहार की सीमा पर स्थित पडनौरा विधानसभा से आते हैं. देवरिया जिले से अलग कर कुशीनगर जिला बनाया गया है, इसी जिले का एक विधानसभा क्षेत्र है पडनौरा. आरपीएन पडरौना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर वर्ष 1996, 2002 और वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में 3 बार विधायक रह चुके हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में जीतकर वह सांसद बने और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में गृह राज्यमंत्री की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. हालांकि इसके बाद वह कोई और चुनाव नहीं जीत सके हैं.
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पिछले कुछ महीने से हाशिये पर चल रहे थे आरपीएन
कांग्रेस के कद्दावर नेता आरपीएन सिंह का पार्टी से इस्तीफा देना महज एक संजोग नहीं है. वे पिछले कुछ महीने से हाशिये पर चल रहे थे. झारखंड कांग्रेस का प्रभारी तो वह पिछले पांच वर्षों से थे, लेकिन कांग्रेस को झारखंड की सत्ता का स्वाद पिछले विधानसभा चुनाव में चखा. प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी रहते हुए उनकी बातों को सरकार में तरजीह नहीं मिल रही थी. राज्य में 20 सूत्री कमिटी के गठन को लेकर पिछले डेढ़ वर्षों से वह लगे हुए थे. लेकिन उनकी बातों को सरकार में दरकिनार किया जा रहा था. और भी कई मामले हैं जिसके कारण आरपीएन ने अलग राह चुनी है.
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