
Ranchi : मोरहाबादी स्थित डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान दिशोम गुरु शिबू सोरेन पर शोध करा रहा है. शोध की जिम्मेदारी मिली है दिल्ली यूनिवर्सिटी के सत्यवती कॉलेज के इतिहास विभाग को. शोध की अवधि तकरीबन एक साल की है और इस पर काम शुरू भी हो चुका है. शिबू सोरेन झारखंड के शायद इकलौते नेता हैं जिन पर किसी भी तरह का शोध सरकारी स्तर पर किया जा रहा है.
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यह अध्ययन मूल रूप से सोनोत संथाल समाज पर किया जाएगा. सोनोत संथाल समाज वह संगठन था जिससे आज से कई साल पहले झामुमो जैसी राजनीतिक पार्टी का उद्भव हुआ. गुरुजी ने 1969-1970 के दौर में जमींदारी-महाजन प्रथा के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया था. इसी काल में उन्होंने सोनोत संथाल समाज की स्थापना की.
इस आंदोलन व संगठन का प्रभाव आदिवासी समाज में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी गहरे पड़ा. अध्ययन में यह देखा जाएगा कि इस संगठन और आंदोलन के शुरू होने की क्या परिस्थिति रही. साथ ही शुरूआती समय में इस आंदेालन व संगठन में कौन-कौन लोग जुड़े. उनकी क्या भूमिका रही और शुरूआती समय से लेकर आंदोलन के अंत तक और वर्तमान में संगठन की क्या भूमिका समाज में बनी हुई और उससे जुड़े लोगों के राजनीतिक-सामाजिक स्तर पर बाद में क्या बदलाव हुआ.
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इसी अध्ययन में टुंडी आश्रम आंदोलन का भी उल्लेख होगा. क्योंकि सोनोत संथाल समाज के आंदेालन के साथ-साथ उक्त आंदोलन भी कोयलांचल में कोयला और भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों पर साथ-साथ चल रहा था. इसलिए यह अध्ययन अब विभागीय स्तर पर दस्तावेजीकरण के रूप में कराया जा रहा है.
इसमें कोई शक नहीं कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन एक करिश्माई व्यक्तित्व के नेता रहे हैं. एक ऐसे नेता जिसका अपना एक बड़ा जनाधार है. उनकी जिंदगी में कुछ पन्ने स्याह रंग के भी हैं. लेकिन एक समय में जनता के लिए उन्होंने जो किया वह उन्हें हमेशा झारखंड के सबसे बड़े जननेता के रूप में स्थापित करता है. संस्थान के निदेशक रणेंद्र ने कहा कि इस शोध के लिए तीन चार प्रस्ताव आये थे पर सत्यवती कॉलेज की ओर से जो प्रेजेंटेशन दिया गया था वह सबसे बेहतर था.