
New Delhi: प्रधानमंत्री मोदी के महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत अभियान को लेकर सवाल उठ रहे हैं. पीएम मोदी ने खुले में शौच मुक्त भारत को लेकर जो आंकड़े बताये हैं, वो एनएसओ के आंकड़े से बहुत अलग है.
दरअसल, 2 अक्टूबर, 2019 को प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि देश के ग्रामीण इलाकों का 95 फीसदी हिस्सा “खुले में शौच” से मुक्त कर दिया गया है. जबकि, NSO के मुताबिक उस अवधि के लिए यह आंकड़ा 71 फीसदी ही था.
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NSO का आंकड़ा पीएम की घोषणा से अलग


एनएसओ का सर्वे जुलाई से दिसंबर 2018 के बीच किया गया था. एनएसओ के आंकड़ों के अनुसार, उस वक्त तक झारखंड में करीब 42 फीसदी परिवारों के पास शौचालय की सुविधा नहीं थी. जबकि तमिलनाडु में 37 फीसदी और राजस्थान में 34 प्रतिशत परिवारों में शौचालय नहीं था.
इतना ही नहीं गुजरात जिसे पहले ही ओडीएफ घोषित किया जा चुका था. अक्टूबर 2017 में गुजरात के ग्रामीण इलाकों में करीब 25 फीसदी लोगों को शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं थी.
आंकड़ों में कई अन्य बड़े राज्यों जिनका जिक्र किया गया था उनमें भी बड़ा अंतर था. कर्नाटक में 30 फीसदी, मध्यप्रदेश में 29 फीसदी, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में 22-22 फीसदी लोगों के पास शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं थी.
गौरतलब है कि खुले में शौच मुक्त घोषित होने का मतलब है कि उस राज्य में 100 फीसदी परिवारों के पास शौचालय सुविधा उपलब्ध है और सभी लोग इसका इस्तेमाल करते हैं.
एनएसओ का सर्वे शुरू होने से पहले आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान को ओडीएफ घोषित किया जा चुका था. वहीं, सर्वे के दौरान ही झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और तमिलनाडु को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया था.
2018-19 में 15,343 करोड़ रुपये स्वच्छ भारत मिशन का बजट
स्वच्छ भारत मिशन के लिए वित्तीय वर्ष 2018-19 में 15,343 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था. वहीं 2017-18 के बजट में स्वच्छ भारत मिशन के लिए 16,248 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. जबकि साल 2016-17 में यह राशि पहले 9000 करोड़ रुपये थी, लेकिन बाद में इसे संशोधित कर 12800 करोड़ रुपये कर दिया गया था.