
FAISAL ANURAG
कोविड 19 का दौर कई तरह के संकटों को गहरा बना रहा है. अभूतभूर्व संकटों की दस्तक की आहट अब सुनायी देने लगी है. एक तरफ जहां हेल्थ सेवाओं की स्थिति को ले कर चिंताएं बढ़ गयी हैं. वहीं अर्थव्यवस्था के संकट के गहराने का खतरा साफ दिखने लगा है.
कोरोना वायरस के पहले से भारत का आर्थिक तंत्र मंदी का शिकार था. विशेषज्ञ भी ठोस सुझाव नहीं दे पा रहे हैं कि इलाकों के संकट से किस तरह निपटा जाये.


एक तरफ भारत के कई ग्रामीण सप्लायी चेन को ले कर गंभीर सवाल सुनायी पड़ रहे हैं, वहीं मध्यवर्ग संतोष् के साथ हिंदू-मुसलमान डिबेट में उलझा हुआ है. यह तो तय है कि कोई भी महामारी किसी धर्मविशेष को नहीं प्रभावित करती है. ठीक उसी तरह आर्थिक विकास की गति का कम होना सब के लिए चिंता का विषय है.




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इस बीच भारत में बेरोजगारी खतरे के निशान से ऊपर जाने का संकेत देने लगा है. बेरोजगारी को ले कर सीएमआइई (Centre for Monitoring Indian Economy ) के आंकड़े बेहद विश्वसनीय माने जाते हैं. जारी ताजा आंकडो के अनुसार बेरोजगारी की दर 23.4 प्रतिशत हो गयी है. आंकड़ों के अनुसार दो करोड़ से ज्यादा लोग हाल ही में रोजगारहीन हुए हैं.
सीएमआइई के मुख्य कार्याधिशासी तथा निदेशक महेश व्यास का कहना है, ‘इस हफ्ते बेरोजगारी की दर 23.4 प्रतिशत, श्रम-बल की प्रतिभागिता दर 36 प्रतिशत तथा रोजगार की दर 27.7 प्रतिशत है.’ मतलब, नौकरियों का सीधे-सीधे 20 प्रतिशत का नुकसान हुआ है. और इतनी बड़ी तादाद में नौकरियों का खत्म होना किसी भी देश के लिए बड़ी बुरी खबर है.
आंकड़े से निकलकर आती सबसे बुरी बात तो ये है कि जिस उम्र को काम-धंधे की उम्र माना जाता है, उस आयु-वर्ग के मात्र 27.7 प्रतिशत लोग ही किसी ना किसी रोजगार में लगे हैं. अगर रोजगार की ऐसी परिभाषा लेकर चलें तो कोरोना-काल तथा तालाबंदी से पहले यानि फरवरी 2020 में भारत में लगभग 40 करोड़ (40.4 करोड़) लोगों को रोजगार हासिल था. ऐसा सीएमआइई की रिपोर्ट में लिखा है. तालाबंदी से तुरंत पहले के वक्त में भारत में बेरोजगार लोगों की तादाद रिपोर्ट के मुताबिक 3.4 करोड़ थी.
लाकउाउन के समय में 40.4 लोग राजगार में थे इनमें से एक करोड़ लोगों को रोजगार खोना पड़ा है. यह भयावह आंकड़ा है. यदि शहरी बेरोजगारों की संख्या देखी जाये तो उसका प्रतिशत 31 है. यह बेहद चिंताजनक है. यानी शहरों में हर सौ में 31 लोग बेरोजगार हैं.
भारत का एक बडा संकट यह भी है कि वह प्री कोराना समय में भी आर्थिक मामलों में चमकीले आंकड़ों को गढ़ता रहा है. आर्थिक क्षेत्र के अनेक विशेषज्ञों के अगाह किये जाने के बाद भी भारत के घोषित और वास्तविक आंकड़ों का मायाजाल बना रहा है.
यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी के कभी विशेष आर्थिक सलाहकार रहे प्रमुख अरविंद सुब्रमण्यम ने सार्वजनिक तौर पर भारत में आंकडों की हेराफेरी का आरोप लगाया. बजटीय खाते और उसके प्रावधान के बीच के अंतर का सवाल भी जनरअंदाज किया जाता रहा है. मोदी सरकार की आर्थिक प्राथमिकताओं को ले कर भी कई बार सवाल उठाए जाते रहे हैं. चूंकि लोकतंत्र को लोकप्रियता और चुनावी कामयाबी के बर अक्श खड़ा कर दिया गया है.
वैसी स्थिति में वास्तविकता को ले कर भ्रम बना रहता है. वैश्विक रेटिंग एजेसियों के भारत संबंधी आकलन को ले कर कई बार इस तरह का संदेह व्यकत किया जाता रहा है.
वैश्विक स्तर पर भारत पांचवीं आर्थिक ताकत है. जर्मनी उससे केवल एक पायदान ऊपर है. लेकिन दोनों देशों के बेराजगारी के सवाल बताते हैं किस तरह दोनों देशों के एप्रोच में अंतर है.
जानकार मानते हैं कि भारत ने आर्थिक सुदृढीकरण के अवसरों का बेहतर इस्तेमाल नहीं किया है. भारत को यह समझने की जरूरत है कि लॉकडाउन के पहले भारत में बेरोजगारों का आंकड़ा 3.4 करोड़ था.
पिछले तीन सालों से यह बात कही जाती रही है कि भारत में रोजगार सृजन के अवसर और वास्तविक बेरोजगारी के बीच बडा अंतर है. इस अंतर को पाटने की प्रतिबद्धता को ले कर भी सवाल उठाये जाते रहे हैं.
सीएमआइई के सर्वेक्षण के नतीजों से यह आसानी से समझा जा सकता है कि भारत में तेजी से पसरती बेरोजगारी सभी सेक्टर को ग्रस रही है. देश में 11 करोड़ कामगार ऐसे हैं जिन्हें जीविका खेती-बाड़ी से अलग के क्षेत्र में रोजगार हासिल है. कुल 6 करोड़ लोग स्वरोजगार में लगे हैं. और 2.5 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें वेतनभोगी तो कहा जा सकता है लेकिन जिनकी नौकरी स्थायी किस्म की नहीं है.
इनमें से ही ज्यादातर लोगों ने रोजगार खोया है. यानी रोजगार खोने वालों में ज्यादातर गैर कृषि कार्य में लगे हुए थे. कृषि सेक्टर भी इससे अछूता नहीं बच सकेगा. पंजाब जैसे राज्यों में बिहार और झारखंड के लोग खेतीहर मजदूरी करते आये हैं. लॉकडाउन के बाद उन्होंने पलायन किया है. इसका असर कृषि संकट को और पेचीदा कर सकता है.
कोरोना वायरस का असर वैश्विक है. इससे वैश्विक आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं. दुनिया के लगभग सभी देशों में बेरोजगारी दर बढ़ी है. लेकिन यूरोप-अमेरिका के देशों में बेरोजगारों के लिए अनेक प्रभावी सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध हैं. इस मामले में भारत जैसे देशों को बड़े संकट का सामना करना पड़ रहा है.
एक रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के अनुसार कोरोना वायरस के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2020 के बाद सबसे कम रहेगी. इसके जानकारों के मुताबिक़ विगत नवम्बर में किये गये 2.9% के अनुमान से घटकर यह दर अब 2.4% रहेगी.
महामारी के लम्बा खिंचने और ज्यादा तीव्र होने पर यह दर और घटकर 1.5% तक आ सकती है. संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (UNCTAD) के अनुसार कोरोना वायरस के कारण 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी नुक़सान होने की संभावना है. कोरोना वायरस का आर्थिक नतीजा यूएस, यूरोपियन यूनियन एवं जापान में मंदी एवं उत्पादन में कुल 2.7 ट्रिलीयन डॉलर का नुक़सान, जो यूके के कुल जीडीपी के बराबर है- के रूप में सामने आ सकता है. मिंट अखबार ने अपना पूरा एक पेज बेरोजगारी के संकट को कंद्र में रख कर समर्पित किया है. उसकी सुर्खी है- जाबलेसनेस इनफेक्टस भारत.
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