
New Delhi : हिन्दू धर्मावलंबी स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाये जाने की मांग की है. अपनी याचिका में स्वामी जितेद्रानंद ने कहा है कि देश की आधी समस्याओं के लिए सीधे तौर पर देश की अनियंत्रित गति से बढ़ रही आबादी जिम्मेदार है. सरकार लगातार बढ़ती आबादी को न तो रोजगार उपलब्ध करवा पा रही है और न ही सबके भोजन-आवास और पानी जैसी जरूरतें पूरी कर पा रही है, इसलिए लोगों की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जल्द से जल्द सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानून लाया जाना चाहिए. उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण कानून न लाये जाने की स्थिति में देश के टूटने की भी आशंका जताई है.
हमारी आबादी दुनिया की लगभग 20 फीसदी
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती की इस याचिका पर एक अन्य याचिका के साथ 20 अप्रैल को सुनवाई हो सकती है. अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद ने अमर उजाला से कहा कि हमारे देश के पास विश्व की केवल दो फीसदी भूमि है, विश्व की कुल जल संपदा का केवल चार फीसदी जल हमारे पास है, जबकि हमारी आबादी दुनिया की लगभग 20 फीसदी हो चुकी है. यह अभी भी अनियंत्रित गति से आगे बढ़ रही है.

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संविधान की समवर्ती सूची में जनसंख्या नियंत्रण संबंधी कानून का है जिक्र
गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री की भूमिका का भी निर्वहन कर रहे स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि केंद्र सरकार बढ़ती आबादी में सबको भोजन, पानी या रोजगार कुछ भी उपलब्ध नहीं करवा पा रही है. देश के हर राज्य में अपराध में बढ़ोतरी हो रही है. इन सब समस्याओं की जड़ बढ़ती आबादी में ही निहित है. अगर देश की जनसंख्या कम होगी तो सबको रोजगार के साथ-साथ साफ पर्यावरण और भोजन-पानी दे पाना संभव हो सकेगा.
उन्होंने कहा कि संविधान की समवर्ती सूची में देश में जनसंख्या नियंत्रण संबंधी कानून लाये जाने की बात कही गई है. यह किसी धर्म के विरुद्ध नहीं है. वोट बैंक के कारण अब तक कोई भी सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून लाये जाने से बचती रही है. यही कारण है कि वे इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में जाने को मजबूर हो गये हैं.
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इसके पहले भी चल रहा है मामला
सुप्रीम कोर्ट में इसके पहले से ही जनसंख्या नियंत्रण कानून लाये जाने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई हो रही है. सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दाखिल की गई इस याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. लेकिन केंद्र सरकार या कानून मंत्रालय ने अभी तक इस मामले में कोई जवाब दाखिल नहीं किया है.
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केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस मामले पर अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाये जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. लेकिन इस मामले में कोई पक्षकार न होने के कारण इस पक्ष को कोर्ट में स्वीकार नहीं किया गया है. मामले की सुनवाई जारी है.
वेंकटचेलैया आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का दिया था सुझाव
संविधान के 42वें संशोधन के दौरान 1976 में संविधान की समवर्ती सूची की सातवीं अनुसूची की तीसरी सूचि में ‘जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन’ शब्द जोड़े गये थे. समवर्ती सूचि में होने के कारण इस विषय पर राज्य और केंद्र दोनों ही कानून बना सकते हैं. लेकिन याचिकाकर्ता ने मांग की है कि चूंकि यह किसी एक राज्य की नहीं, अपितु पूरे देश की समस्या है, इस पर केंद्र सरकार को ही कानून बनाना चाहिए जो पूरे देश पर लागू हो सके.
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान 11 सदस्यीय वेंकटचेलैया आयोग का गठन कर संविधान समीक्षा का काम किया गया था. आयोग ने संविधान में अनुच्छेद 47A जोड़ने और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था. फिलहाल, आयोग के इस सुझाव पर भी कोई अमल नहीं किया गया है.
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