
Ranchi : 3 दिसंबर को परमवीर चक्र विजेता अल्बर्ट एक्का का शहादत दिवस है. उनके बारे में तथा वह युद्ध, जिसमें उन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था, वो जानने से पहले उस परिस्थिति को जानना अनिवार्य है, जिसने इतिहास में एक नये अध्याय को जोड़ा. 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के जुल्मों से आतंकित होकर लाखों बांग्लादेशी भारत में आ गए थे.

भारत ने मानवीय आधार पर उन्हें शरण तो दे दी थी पर भारत के लिए भी वह अभूतपूर्व मानवीय, राजनीतिक और आर्थिक संकट का समय था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तब अमेरिका की धमकी को नजरअंदाज करते हुए पूर्वी फ्रंट पर हमला करने के आदेश दे दिए थे. इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच वह युद्ध हुआ जिसने दुनिया में एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ.
बंकरों में छुपे गोली बरसा रहे थे पाकिस्तानी सैनिक
भारतीय सेना के 14 गार्डस को पूर्वी मोरचे पर अगरतल्ला की सीमा पर स्थित एक रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ने के आदेश मिले थे. लांस नायक अल्बर्ट एक्का भी सैनिकों की उस टुकड़ी के साथ थे जो रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ रहे थें जहां पर पाकिस्तानी सैनिकों ने मजबूत बंकर बना रखे थें उनके मुकाबले भारतीय सैनिक खुले में थे.
वह 3 दिसंबर 1971 की रक्त को जमा देनेवाली सर्द सुबह थी. खामोशी से आगे बढ़ते भारतीय सैनिकों का पाकिस्तानी सैनिकों ने स्वागत किया अपनी लाइट मशीनगनों की भारी फायरिंग से. आगे बढ़ती भारतीय सैनिकों को इससे काफी नुकसान हुआ. उनके कदम वहीं रूक गए. पाकिस्तानी सैनिक बंकरों में सुरक्षित छिपे थे और वहीं से वे फायरिंग कर रहे थें. आगे बढ़ने के कोई आसार नहीं थे ऐसे में लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने असाधारण निर्णय लिया.
संगीन से दुश्मनों को बेध डाला
उनकी नजरों ने उस बंकर को देख लिया था जहां से भारी फायरिंग हो रही थी. जमीन पर रेंगते हुए वे आगे बढ़े और पहले बंकर में कूद पड़े. अपनी राइफल की संगीन से उन्होंने दो पाकिस्तानी सैनिकों को वहीं भेद दिया. इसके बाद उन्होंने बंकर में मौजूद बाकी दुश्मनों को भी खत्म कर दिया. इससे उस बंकर की मशीनगन शांत हो गई. इस दौरान अल्बर्ट एक्का खुद बुरी तरह घायल हो चुके थे.
लेकिन नहीं रूके वे फिर से रेंगते हुए आगे बढ़े और दुश्मनों के दूसरे और फिर तीसरे बंकर को तबाह कर दिया. अल्बर्ट एक्का के बाकी साथियों को इससे आगे बढ़ने का मौका मिला. दूसरी ओर अल्बर्ट एक्का बुरी तरह घायल हो चुके थे और वे दुश्मन के एक बंकर के पास ही बेहोशी की हालत में थे. फिर थोड़ी ही देर बाद यह वीर सिपाही हमेशा के लिए शांत हो गया.
मरणोपरांत मिला परमवीर चक्र
अल्बर्ट एक्का उन भारतीय सैनिकों में से एक थे जिन्होंने युद्ध के पहले ही दिन अपनी शहादत दे दी थी. इस असाधारण वीरता के लिए उन्हे भारत सरकार ने बहादुरी के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से (मरणोपरांत) सम्मानित किया. शहादत के समय उनकी उम्र सिर्फ 28 साल थी.
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