
Dilip Kumar
Palamu : झारखंड सरकार स्वच्छ पेयजल घर-घर पहुंचाने का दम भरती है, लेकिन जमीनी स्तर पर यह दावे खोखले साबित होते हैं. पलामू जिला मुख्यालय मेदिनीनगर से सटे चैनपुर जलापूर्ति योजना को देखने से तो यही प्रतीत होता है.
करीब 6 करोड़ की जलापूर्ति योजना कुछ हजार रूपये की मरम्मत के अभाव में दो महीने से बंद पड़ी है. लोगों को न स्वच्छ पानी नहीं मिल पा रहा है और ना ही कर्मियों को बकाया मानदेय का भुगतान हो रहा है. बरसात में भी गर्मी का आलम रहने के कारण लोग पेयजल के लिए तरस रहे हैं.
क्यों बनी ऐसी स्थिति?
दरअसल, वर्ष 2008-09 में चैनपुर जलापूर्ति योजना की शुरुआत की गयी. चैनपुर की छह पंचायतों के एक दर्जन से अधिक गांवों में स्वच्छ पेयजल पहुंचाना इस योजना का उद्देश्य था.
तीन वर्ष तक निर्माण कंपनी द्वारा जलापूर्ति केन्द्र का संचालन किया गया. बाद में पंचायती राज व्यवस्था के तहत पंचायत ने इस व्यवस्था को अपने हाथ में लिया. छह पंचायतों को मिलाकर बहुपंचायत बनायी गयी और अध्यक्ष सहित अन्य पदधारियों ने इसका संचालन शुरू किया.
कुछ दिन इस व्यवस्था के प्रभावी रहने के बाद बहुपंचायत की अध्यक्ष और चैनपुर की तत्कालीन मुखिया पूनम सिंह ने अन्य मुखिया और जलसहिया द्वारा जलकर की भारी भरकम राशि पर कुंडली मारकर बैठे रहने का आरोप लगाकर जलापूर्ति कराने से हाथ खड़े कर दिये.
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निगम चुनाव के बाद पार्षद के हाथ आयी व्यवस्था
मेदिनीनगर के नगर निगम हो जाने और शाहपुर और चैनपुर के इलाके निगम के अंतर्गत आ जाने पर वार्ड 30 से लेकर 35 के पार्षदों ने इस व्यवस्था को अपने हाथों में लिया.
समिति बनाकर जलापूर्ति सुचारू कराने का प्रयास किया, लेकिन जलापूर्ति नियमित कराने में उनकी स्थिति तो मुखिया से भी बदतर रही. एक वर्ष के भीतर लगातार खराबी आने के कई बार जलापूर्ति प्रभावित हुई.
अब स्थिति यह हो गयी है कि पिछले दो माह से मामूली खराबी के कारण जलापूर्ति बंद है और इसकी मरम्मत पर किसी का कोई ध्यान नहीं है.
मेयर ने आश्वासन दिया, लेकिन नहीं कराया फंड का कोई प्रबंध: पार्षद
वार्ड 31 की पार्षद और निगम के जोन सात की अध्यक्ष प्रमीला देवी ने बताया कि करीब एक माह पहले मेयर अरुणा शंकर ने चैनपुर जलापूर्ति केन्द्र का जायजा लिया था. स्थिति से अवगत हुई थीं.
इस दौरान उन्हें बताया गया कि वार्ड पार्षदों की समिति के पास फंड का अभाव है. लंबे समय से चलने के कारण कई पार्ट्स पुराने और जर्जर हो चुके हैं. किसी भी वक्त धोखा हो सकता था.
मेयर ने उन्हें आश्वस्त किया था कि किसी फंड से आर्थिक सहयोग किया जायेगा, लेकिन एक माह से अधिक समय बीत जाने के बाद भी सहयोग नहीं मिला.
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क्या है खराबी?
दरअसल, जलापूर्ति केन्द्र कई तरह की खराबियों से गुजर रहा है. शाहपुर स्थित इंटकवैल और चैनपुर प्रखंड स्थित जलापूर्ति केन्द्र में लंबे समय से एक ही पार्ट्स का उपयोग होने के कारण ऐसी स्थिति बनी है.
दो महीने पहले इंटकवैल की पाइप में लगा फुटबॉल जाम हुआ. उसे ठीक कराया गया तो दो दिनों तक जलापूर्ति हुई. इसके बाद सोफ्ट मार खा गया. कई दिनों तक उसे ठीक कराने की कोशिश की गयी. कई बार बना, लेकिन कारगर नहीं रहा.
एक्सपर्ट तकनीशियन ने जब उसे ठीक किया तो पैनल बोर्ड खराब हो गया. पैनल बोर्ड खराब होने के कारण वायरिंग सिस्टम ठप हो गया है. उसे ठीक कराने में 10 हजार रूपये खर्च होंगे.
इतने पैसे वार्ड पार्षदों की समिति के पास नहीं है. नतीजा जलापूर्ति को बंद करा दिया गया है. कामगारों का मानना है कि अगर पैनल बोर्ड को दुरुस्त करा दिया गया तो अगलो नंबर स्टेबलाइजर का आयेगा. उसमें भी खराबी हो सकती है.
दशहरा में भी पानी मिलेगा कि नहीं, संशय की स्थिति
जिस तरह से जलापूर्ति व्यवस्था को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, उससे नहीं लगता कि दशहरा में भी लोगों को स्वच्छ पानी नसीब हो सकेगा. इससे उपभोक्ताओं में भारी आक्रोश देखा जा रहा है. लोग जनप्रतिनिधियों को कोसते नजर आ रहे हैं.
लाखों रुपये जल कर का क्या हुआ?
यहां गौर करने लायक प्रश्न यह है कि उपभोक्ताओं से लिए जाने वाले जलकर का क्या होता है? इलाके में 18 सौ से अधिक उपभोक्ता हैं, जिन्हें पानी दिया जाता है?
पूनम सिंह जब बहुपंचायत की अध्यक्ष थीं तो उन्होंने उस समय जलकर का 1 से 2 लाख रुपया मुखिया और जहिया के पास जमा दिखाया था. उन पैसों का क्या हुआ? क्या सारे पैसे मुखिया और जल सहिया अपने पास अभी भी रखे हुए हैं. अगर ऐसा है तो सारे पैसे रिकवर क्यों नहीं हुए?
पार्षदों ने जब जलापूर्ति केन्द्र को अपने जिम्मे लिया तो क्या उन्होंने जलकर के बकाये पैसों को वापस लेने की कोशिश की या नहीं? पार्षदों के कार्यकाल में वसूले गये जल कर की क्या स्थिति है?
कई सवाल खड़े होते हैं, जिसका जवाब नगर आयुक्त, मेयर, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग को संबंधित मुखिया, पार्षद और जलसहिया से लेना चाहिए.
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