
Palamu : आदिम जनजातियों के विकास का दावा झारखंड सरकार खूब करती है, लेकिन जिले के पांडू प्रखंड की सिलदिली पंचायत के बरवाही-बिसहिया टोला की दुर्दशा देखकर तमाम उपाय और घोषणाएं दम तोड़ती नजर आती है. पांडू प्रखंड मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर जंगल में बसे इस गांव में 100 परहिया जनजाति के लोग रहते हैं और आजादी के 70 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. गांव में इन दिनों पेयजल की भारी किल्लत है. एक जलमीनार तक यहां नहीं लगाया गया है.
सूखी लकड़ी बेचकर या जंगल के कंद-मूल खाकर जीवन बसर करने को यहां के परहिया समाज के लोग मजबूर हैं. इस आदिवासी बाहुल्य गांव में आने-जाने के लिए ना तो ढंग की सड़क है, ना पानी का उत्तम प्रबंध. सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस गांव तक पहुंचने के लिए तीन नदी को पार करना पड़ता है. बरसात के दिनों में यहां का आदिवासी परिवार चारों तरफ से घिर जाते हैं.
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यहां के लोगों की माने तो सिलदिली के मुखिया भी इस आदिवासी परिवार के लिए आज तक ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे लोगों का भला हो सके. घर जंगलों में बसे होने के कारण कोई भी सरकारी पदाधिकारी वहां जाने से कतराते हैं. ग्रामीणों की माने तो यहां आंगनबाड़ी या स्कूल, सबकी स्थिति बेहद खराब है.




ज्ञात हो कि कुछ वर्ष पूर्व इसी गांव के एक बीमार युवक मुन्ना परहिया को सड़क के अभाव में डोली खटोली से उपस्वास्थ केंद्र पांडु ले लाया जा रहा था, जिसकी रास्ते में हीं मृत्यु हो गयी थी. मामला चर्चा में आने के बाद कई बार इस गांव की खबर समाचार पत्रों में आयी.
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इस पर पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में सड़क एवं पुल पुलिया की मापी कराई गई थी, परंतु आज तक यह मामला सिर्फ मापी पुस्तिका में सिमट कर रह गया. सड़क एवं पुल पुलिया नहीं बनी.
विवश ग्रामीणों ने झारखंड सरकार एवं उपायुक्त पलामू से आग्रह किया है कि जितनी जल्दी हो उनकी सूध ली जाये.
मौके प्रभावित आदिवासियों में सतेंदर परहिया, ललन परहिया, बिहारी परहिया, पूर्व वार्ड सदस्य सुनरवा देवी, सोहरी कुंवर, सोना देवी सहित सैकड़ों लोग शामिल हैं.
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