
Ranchi. राज्य में बच्चों में कुपोषण के खिलाफ जंग की बातें होती रहती हैं. पोषण वीक, पोषण माह मनाये जाते रहे हैं. पर जंग से लड़ाई को सेनापतियों की भारी कमी है. महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग, झारखंड की मानें तो राज्यभर में 224 सीडीपीओ (बाल विकास परियोजना) के पद स्वीकृत हैं. पर इसके एवज में राज्य में इसके आधे कर्मी भी अभी राज्य में उपलब्ध नहीं है. विधायक समीर कुमार मोहंती ने पिछले दिनों सदन में इसे लेकर सवाल भी उठाया था. बाल विकास विभाग ने इसके जवाब में बताया कि अभी 78 सीडीपीओ के भरोसे काम चलाया जा रहा है. बाकी जगहों पर स्थानीय व्यवस्था के तहत संवर्गीय पदाधिकारियों को अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है. जाहिराना तौर पर बच्चों में कुपोषण और दूसरी चुनौती बढ़ती जा रही है.

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NFHS-4 सर्वे में कुपोषण पर चिंता
सीएम हेमंत सोरेन ने 6 सितंबर को पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था. कहा था कि NFHS-4 सर्वे में राज्य में बच्चों के कुपोषण पर चिंता जतायी गयी है. इसके मुताबिक 0 से 6 साल तक के बच्चों में हर दूसरा बच्चा कुपोषित है. 45 फीसदी बच्चे मानक से कम वजन के हैं. 29 फीसदी बच्चे दुबले पतले हैं. 11.3 फीसदी बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हैं. 40.3 फीसदी बच्चे अल्प विकसित हैं. इन समस्याओं को देखते भारत सरकार के कार्यक्रमों के अलावे अपने सीमित संसाधनों से कुपोषण की समस्या से लड़ने का निर्णय राज्य सरकार ने लिया है. केंद्र ने पूरक पोषाहार कार्यक्रम के लिये 15वें वित्त से राज्यों को 7735 करोड़ रुपये आवंटित करने का फैसला लिया है. झारखंड के लिये तय राशि 312 करोड़ रुपये का आवंटन जल्द से जल्द किया जाय.
40 सालों से कुपोषण पर हवा हवाई काम
खाद्य सुरक्षा अभियान से जुड़े बलराम कहते हैं कि 40 सालों से भी अधिक समय से बच्चों में कुपोषण एक गहरा सवाल रहा है. पोषण सप्ताह औऱ पोषण माह मनाये जाते हैं. दिलचस्प यह है कि पोषण माह पर भी कई जगहों पर बच्चों के हिस्से का अनाज नहीं पहुंच पाने की खबर है. केंद्र को तो राज्यों का पैसा समय पर देना ही चाहिये, राज्य सरकार को भी ऐसे विषय पर संवेदनशीलता दिखानी होगी. 50 फीसदी सीडीपीओ भी नहीं हैं. आंगनबाड़ी सेंटर और कर्मियों की कमी का मसला भी है. समय समय पर जिम्मेदार पदाधिकारियों, कर्मियों को ट्रेनिंग नहीं मिल रही. ऐसी स्थिति में कुपोषण के खिलाफ लड़ाई का संघर्ष केवल कागजी ही कहा जायेगा.
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