
Gyan Ranjan
Ranchi: झारखंड में जुलाई महीने में खाली हो रही राज्यसभा की दो सीटों के लिए मंगलवार से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गयी है. प्रत्याशी 31 मई तक नामांकन दाखिल कर सकते हैं. भारत निर्वाचन आयोग द्वारा तय कार्यक्रम के अनुसार एक जून को उम्मीरदवारों के नामांकन पत्रों की जांच होगी तथा तीन जून तक प्रत्याशी अपना नाम वापस ले सकेंगे. 10 जून को राज्यसभा चुनाव के लिए मतदान होगा. चुनाव में यदि दो से ज्यादा प्रत्याशी नहीं होंगे तब निर्विरोध निर्वाचन की घोषणा की जायेगी. यदि दो से ज्यादा प्रत्याशी होंगे तो मतदान होगा.
मतदान संध्या चार बजे तक चलेगा और वोटों की गिनती संध्या पांच बजे से शुरू होगी. मुख्तार अब्बास नकवी और महेश पोद्दार का कार्यकाल जुलाई में समाप्त होने के चलते भाजपा कोटे से खाली हो रही इन दो सीटों के लिए पक्ष-विपक्ष दोनों की दावेदारी मजबूत दिख रही है. इस बीच जिस तरह का बयान सत्ता पक्ष के नेताओं की तरफ से आ रहा है वह इस बात का संकेत दे रहा है कि इस बार राज्यसभा चुनाव में खेला होगा. पिछले चार-पांच दिनों से धनकुबेरों की इंट्री की चर्चा आम है. जानकारी मिल रही है कि ये धनकुबेर राज्यसभा चुनाव में कैसे आंकड़ों को अपने पक्ष में किया जाय, इसके जानकारों से मिल रहे हैं. एक थैलीशाह को तो भाजपा कार्यालय के पास भी देखा गया है.



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पहले भी कई बार राज्यसभा चुनाव में बदनाम हो चुका है झारखंड
अलग राज्य बनने के बाद झारखंड का पहला राज्यसभा चुनाव बिना पूरी तरह से स्वच्छ हुआ था. इसके बाद के राज्यसभा चुनाव से ही झारखंड में खेला शुरू हो गया. सबसे पहले राज्यसभा चुनाव में खेला का नेतृत्व पूर्व मंत्री मधु सिंह ने शुरू किया था. परिणाम यह हुआ था कि राज्यसभा चुनाव में गड़बड़ी में शामिल होने के कारण उन्हें अर्जुन मुंडा मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया था. इसके बाद से तो मानो झारखंड पूंजीपतियों के लिए चारागाह बन गया. कई पूंजीपतियों ने यहां से अपने भाग्य आजमाए. हर मुद्दे पर मूलवासियों की वकालत करनेवाली पार्टी झामुमो ने भी कई बार हरियाणा, दिल्ली और कोलकाता के थैलीशाहों को राज्यसभा का टिकट दिया है.
भाजपा भी इसमें पीछे नहीं रही है. निर्दलीय प्रत्याशी परिमल नाथवानी को जिताने के लिए भाजपा ने भी खेला किया है. झारखंड ही ऐसा प्रदेश है जहाँ 15 वोट लाकर भी प्रत्याशी राज्यसभा पहुंचे हैं. यही वह प्रदेश है जहां राज्यसभा चुनाव में पैसे के खेल को लेकर सीबीआई और इनकम टैक्स का छापा पड़ा है. डेढ़ दर्जन से ज्यादा विधायक सीबीआई जांच के दायरे में आये थे, जिसमें कई मंत्री भी थे. इतना ही नहीं एक ही दल के विधायक तीन-तीन प्रत्याशियों के प्रस्तावक बनने का भी रिकार्ड बनाया है जबकि सीट दो ही थे.
कहीं इस बार पुराने इतिहास को दोहराने की तैयारी तो नहीं?
झारखंड के राजनितिक गलियारे में इस बार की चर्चा आम है कि इस बार के राज्यसभा चुनाव में कोई बड़ा खेला हो सकता है. एक तो आजसू के दो, एनसीपी के एक और दो निर्दलीय विधायकों की विधानसभा के बजट सत्र के दौरान बने गुट के बाद से ही यह चर्चा थी कि राज्यसभा चुनाव के लिए ही यह गुट बना है. आंकड़ों पर गौर करें तो सत्ताधारी गठबंधन हो या विपक्ष किसी के पास दोनों सीट निकालने की संख्या नहीं है. विधानसभा के दलगत स्थिति को देखें तो सामान्य तौर पर एक सीट सत्ताधारी गठबंधन को और एक सीट विपक्ष को जाता हुआ दिख रहा है. दो से ज्यादा प्रत्याशी होने की स्थिति में द्वितीय प्राथमिकता के वोटों की गिनती होती है.
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लेकिन यदि पहली प्राथमिकता में दो प्रत्याशियों को 28-28 वोट आ जाते हैं तो द्वितीय प्राथमिकता को नहीं जोड़ा जाता है. झारखंड में दो-दो बार प्रत्याशी द्वितीय प्राथमिकता के वोट से भी राज्यसभा पहुँच चुके हैं. पिछले दिनों राज्यसभा चुनाव को लेकर जिस तरह से झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य का बयान आया था वह इस बात का संकेत दे रहा है कि सत्ताधारी गठबंधन खासकर झामुमो में अंदरखाने कोई खिचड़ी पाक रही है. सुप्रियो ने कहा था कि जब रघुवर दास राज्यसभा चुनाव में खेला कर दो सीटें जीत सकते हैं तो अभी उनके पास रघुवर सरकार से ज्यादा विधायकों का समर्थन है.
प्रत्याशी के नाम पर अबतक किसी भी दल में नहीं बनी है सहमति
राज्यसभा चुनाव 2022 में गिनती के दिन शेष बचे हैं, लेकिन अभी तक झारखंड में किसी भी दल ने अपने प्रत्याशी को लेकर पत्ता नहीं खोला है. हालांकि, कई नामों को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है. भाजपा की ओर से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और झारखंड के पूर्व मुख्योमंत्री रघुवर दास का नाम सबसे आगे चल रहा है. इसके आलावा प्रदेश महामंत्री प्रदीप वर्मा, आदित्य साहू, प्रतुल नाथ शाहदेव, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिनेशानंद गोस्वामी, प्रदेश कोषाध्यक्ष दीपक बांका ने भी पार्टी के समक्ष दावेदारी पेश की है. वहीं कांग्रेस और झामुमो में रुठने-मनाने का खेल अभी चल रहा है. कांग्रेस जहां राज्यसभा की एक सीट पर अपनी दावेदारी कर रही है.
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वहीं झामुमो दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है. हालांकि अबतक झामुमो की तरफ से किसी का नाम आगे नहीं किया गया है. कांग्रेस का तर्क है कि पिछली बार पार्टी ने आत्मसंयम रखते हुए बढ़-चढ़कर झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन का समर्थन किया था. इसलिए झामुमो को गठबंधन की मजबूती के लिए इस बार कांग्रेस को मौका देना चाहिए. कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर का नाम उम्मीदवारों में सबसे आगे बताया जा रहा है. इसके आलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार, पूर्व सांसद फुरकान अंसारी के नाम की भी चर्चा है. सत्ताधारी गठबंधन की तरफ से साझा उम्मीदवार पर भी बातें हो रही है जिसमें कपिल सिब्बल का नाम सामने आ रहा है.