
Naveen Sharma
Ranchi : एक बार ओशो अपने गुरु मस्तो के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिलने उनके आवास पहुंचे थे. वहां पहले से पंडित नेहरू की कैबिनेट के मिनिस्टर मोरारजी देसाई भी मिलने के लिए पहुंचे हुए थे.
मोरारजी का उसी समय मिलने का एप्वायमेंट था. जैसे ही मस्त हो और ओशो वहां पहुंचे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन दोनों को मिलने के लिए पहले बुला लिया.
मोरारजी को इंतजार करने को कहा गया. जवाहरलाल नेहरू ने अनजाने में ही उनका अपमान कर दिया. परंतु मुरारजी देसाई तो शायद आज भी उसे नहीं भूल सके. वे उस नवयुवक (ओशो) को शायद भूल गए हो किंतु उन्हें मस्तो तो याद होगा. हम लोग भीतर गये और वहां 5 मिनट नहीं एक घंटा और 30 मिनट रहे. मोरारजी को 90 मिनट इंतजार करना पड़ा, उनके लिए सहन करना मुश्किल हो गया.
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नेहरू राजनीतिज्ञ नहीं वरन कवि थे
जीवन में पहली बार मैं हैरान रह गया क्योंकि मैं तो वहां एक राजनीतिक से मिलने गया था. लेकिन जिससे मैं मिला वो राजनीतिज्ञ नहीं वरन कवि था. नेहरू राजनीतिज्ञ नहीं थे. अफसोस है कि वह अपने सपनों को साकार नहीं सके.
वहीं मोरारजी बाहर बैठकर इंतजार कर रहे थे. हम लोग ध्यान की बात कर रहे थे. अभी भी मैं उस दृश्य को देख सकता हूं. मोरारजी मन ही मन गुस्से से जल रहे होंगे. उसी दिन से हम दोनों की शत्रुता निश्चित हो गयी, उस पर मुहर लग गयी.
मेरी ओर से नहीं, मेरा अपना तो कोई विरोध नहीं है. उन्होंने जिन बातों का विरोध किया यह मूर्खतापूर्ण है. उनका क्या विरोध करना. उन पर बस हंसा जा सकता है. यही मैंने किया. उनके नाम और उनके यूरिन थेरेपी (उनका अपने ही पेशाब को पीना) के साथ.
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मोरारजी ने मुझे नुकसान पहुंचाने की भरपूर कोशिश की
मोरारजी को बर्दाश्त से बाहर तब हो गया जब जवाहरलाल नेहरू उस 20 साल के लड़के (ओशो) को विदा करने के लिए खुद पोर्च में आये. उस समय मोरारजी ने देखा कि प्रधानमंत्री मस्त बाबा से नहीं वरन खड़ाऊ पहने हुए एक अजीब से लड़के से बात कर रहे थे.
नेहरू ने स्वयं कार का दरवाजा बंद किया और तब तक वहीं खड़े रहे तब तक हमारी कार वहां से रवाना नहीं हो गयी. और बेचारे मोरारजी देसाई यह सब देख रहे थे. वे तो कार्टून हैं, लेकिन यह कार्टून मेरा दुश्मन बन गया सदा के लिए.
उन्होंने मुझे नुकसान पहुंचाने की भरपूर कोशिश की किंतु वे इसमें सफल नहीं हो सके. हम उस भवन से बाहर आ गये जो बाद में त्रिमूर्ति भवन के नाम से प्रसिद्ध हुआ. मोरारजी देसाई बाद में जनता पार्टी की सरकार में प्रधानमंत्री बने थे.
(ओशो की आत्मकथात्मक पुस्तक स्वर्णिम बचपन में वर्णित घटना)
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